भागलपुर : सफेद चावल मगर धंधा काला. बाजार में खुलेआम डुप्लीकेट कतरनी बिक रहा है. आप जिस चावल को कतरनी समझ कर खरीद रहे हैं. दरअसल वह सोनम चावल है. सोनम की खुशबू भी कतरनी जैसी होती है. रही सही कसर पूरी करने के लिए इस पर इसेंस से लेकर पाउडर तक का छिड़काव कर दिया जाता है.
फिर इसी सोनम को कतरनी बता कर बाजार में धड़ल्ले से बेचा जा रहा है. इस खेल में कुछ माफिया भी सक्रिय हैं जो डुप्लीकेट कतरनी बाजार में उतार कर जी का स्वाद छलनी कर रहे हैं.
हैरानी की बात यह है कि प्रशासन पूरे मामले को जानते समझते हुए भी अनजान बना बैठा है. डुप्लिकेट कतरनी बेचनेवालों के खिलाफ
सफेद चावल, काला…
कार्रवाई नहीं हो रही है जबकि यह गोरखधंधा लंबे समय से चल रहा है.
500 एकड़ में ही कतरनी का उत्पादन
जिले में महज 500 एकड़ में ही कतरनी चावल का उत्पादन हो रहा है. भागलपुर, मुंगेर और सुलतानगंज में कतरनी का उत्पादन सिमट चुुका है. रजौन, बांका और जगदीशपुर में ही थोड़ा बहुत उत्पादन हो रहा है. किसान खुद अपने खाने के लिए यह रख लेते हैं. बांकी चावल बाहर के बाजारों में भेज दिया जाता है. फिर भागलपुर के अलावा आसपास के शहरों में कतरनी के नाम पर बिकनेवाला चावल डुप्लिकेट ही होता है.
इसेंस के छिड़काव के बाद सोनम बन जाता है कतरनी
मुख्यमंत्री दरबार में उठ सकता है मामला : 16 को विज्ञान भवन में किसान सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. भागलपुर के 16 किसान इसमें भाग लेंगे. सम्मेलन के दौरान बाजार में बिक रहे डुप्लिकेट कतरनी के अलावा इसके घट रहे उत्पादन और शुद्ध बीज का मामला उठ सकता है.
इतनी पेच, कौन करे शिकायत : सोनम व कतरनी एक जैसा होता है, इसलिए पकड़ना भी बेहद मुश्किल है. डुप्लिकेट बेचनेवालों पर कार्रवाई से पहले कैश मेमो चाहिए. न दुकानदार देता है न उपभोक्ता कैश मेमो लेते हैं. कैश मेमो ले भी लें, तो फिर उपभोक्ता फोरम जाना होगा. यानी शिकायत की राह में पेच बहुत है.
जलवायु परिवर्तन के कारण सिमटा उत्पादन : कतरनी के उत्पादन के सिकुड़ने के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेवार है. बढ़-घट रहे तापमान ने इसे काफी नुकसान पहुंचाया है. रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग और अच्छी वैराइटी का बीज का नहीं होने के कारण भी कतरनी अब कुछ गांवों में ही उपजाया जा रहा है.
कतरनी के नाम पर बिक रहे
दूसरे चावल : कृषि अधिकारी
जिला कृषि अधिकारी अरविन्द कुमार झा कहते हैं कि कतरनी के नाम पर इससे मिलते-जुलते चावाल बाजार में बिक रहे हैं. उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है. कतरनी को अंतरराष्ट्रीय पहचान जल्द मिलनेवाली है. जीआइ (ज्योग्राफिकल आइडेंटीफिकेशन) का काम आखिरी चरण में है. सबौर कृषि विश्वविद्यालय से कतरनी का शुद्ध बीज लिया जा रहा है. आत्मा के तहत पाठशाला में किसानों को शिक्षित किया जा रहा है. कतरनी उत्पादक संघ भी बनाये गये हैं.