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आती-जाती सरकारें, पर डटीं हैं समस्याएं

कब बदलेंगे हालात. सफाई, पेयजल आपूर्ति, सड़क और नाला निर्माण कार्य अब भी हैं अधूरे अनिकेत त्रिवेदी/प्रभात रंजन पटना : चुने गये जनप्रतिनिधि नगर सरकार बनाते हैं. हर पांच वर्ष पर शहर को निकाय स्तर पर नये जनप्रतिनिधि मिलते हैं. ये जनप्रतिनिधि एक मेयर का चुनाव करते हैं. फिर शहर के लोगों को एक नयी […]

कब बदलेंगे हालात. सफाई, पेयजल आपूर्ति, सड़क और नाला निर्माण कार्य अब भी हैं अधूरे
अनिकेत त्रिवेदी/प्रभात रंजन
पटना : चुने गये जनप्रतिनिधि नगर सरकार बनाते हैं. हर पांच वर्ष पर शहर को निकाय स्तर पर नये जनप्रतिनिधि मिलते हैं. ये जनप्रतिनिधि एक मेयर का चुनाव करते हैं. फिर शहर के लोगों को एक नयी नगर सरकार मिल जाती है. देश के अन्य बड़े शहरों की तरह ही पटना नगर निगम के पास भी काम करने का अपना सिस्टम है.
सरकार को चलाने व विकास के मुद्दे तय करने के लिए एक सशक्त स्थायी समिति गठित की जाती है. हर बार पार्षदों को लेकर निगम बोर्ड का गठन किया जाता है. बोर्ड में विकास के मुद्दों पर अंतिम निर्णय लिया जाता है.
कई मूलभूत सुविधाओं से दूर है शहर : नगर सरकार के तय किये गये एजेंडे को जमीन पर उतारने के लिए नगर अायुक्त व अधिकारियों की टीम होती है. इन तमाम लंबे-चौड़े सिस्टम के बावजूद शहर अब भी कई मूलभूत सुविधाओं से दूर है. चाहे शहर की खराब सफाई के स्तर की बात हो. दो माह से लागू डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन योजना की बात हो, अब तक हर दरवाजे तक यह योजना नहीं पहुंच सकी है. पुरानी जर्जर पाइपलाइन व आधे-अधूरे सिस्टम से शहर के आधे घरों तक भी अब तक सप्लाइ वाला पानी नहीं पहुंच सका है.
अवैध निर्माण पर रोक से लेकर राजस्व वसूली में भी नगर निगम फिसड्डी है. इन तमाम मापदंडों पर अपना शहर फेल होता जा रहा है. हर बार नगर सरकार से आखिर कहां चूक हो जाती है कि नगर निगम जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है.
नगर निगम की शहर में सबसे पहली प्राथमिकता सफाई होती है. फिलहाल पटना केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 के अनुसार देश भर के पांच सौ बड़े शहरों में 262 स्थान पर है. सफाई के लिए नगर निगम में 3200 मजदूर हैं. लगभग 20 करोड़ से अधिक लागत से सफाई उपकरणों की शहर में व्यवस्था की गयी है.
डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन: सात अप्रैल से शहर के तीन अंचलों में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन की योजना चल रही है. इसके बावजूद शहर की सफाई ठीक से नहीं हो रही है. मुख्य सड़कों को छोड़ कर कंकड़बाग, बांकीपुर व नूतन राजधानी अंचल के दर्जनों वार्डों में कचरा प्वाइंट से लेकर कई जगहों पर कचरा पसरा रहता है.
शहर की दूसरी बड़ी समस्या पेयजल है. फिलहाल 102 बोरिंग से शहर में पानी आपूर्ति होती है. इससे लगभग 40 फीसदी घरों तक ही पाइप से पानी पहुंच पाता है. पाइपलाइन 40 वर्षों से भी अधिक पुरानी है. अधिकतर मोहल्लों में निगम का पानी पीने योग्य नहीं होता. पाइप फटने व नाला का पानी पाइपलाइन के सहारे आने की शिकायत मिलती रहती है.
500 करोड़ की योजना अधर में: जेनुुुरूम 500 करोड़ की लागत के तहत बड़े वाटर टावर व नयी पाइपलाइन बिछाने की योजना पांच वर्ष से अधर में है. 18 वार्डों में तीन वर्ष से अधूरा वाटर टावर खड़ा है. सड़क निर्माण व रख-रखाव के लिए 30 करोड़ व स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए 33 करोड़ बजट में रखे गये हैं, जो एक छोटा बजट है.
फिर भी अधूरे पड़े हैं काम
नगर निगम में फंड की कमी शुरू से रही है. पहले पांच लाख से 50 लाख रुपये तक पार्षद अपने क्षेत्र में विकास की योजना अनुशंसा कर सकते थे, लेकिन वर्तमान वित्तीय वर्ष में एक पार्षद एक करोड़ दस लाख रुपये की योजना की अनुशंसा कर सकते हैं. इसके लिए बजट में 82.50 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है.
60 लाख पक्की नाली-गली निर्माण व 50 लाख अन्य मदों में विकास के लिए खर्च करने की अनुशंसा कर सकते हैं.
सफाई की बेहतर व्यवस्था नहीं. बारिश में जलजमाव.
सभी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति नहीं
योजना लागू होने के बावजूद हर घर से कचरा कलेक्शन नहीं होना.
बड़े नालों का खुला होना व गंदगी.
स्ट्रीट लाइटोें का मरम्मत नहीं होना.
निर्धारित समय पर जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं मिलना.
अवैध निर्माण व होर्डिंग पर सख्ती से कार्रवाई नहीं होना.

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