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जंगल में मोर रोया

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार मोर के संबंध में जितना चिंतन-मनन, शोध-अनुसंधान भारत में हुआ है, लगता नहीं कि इतना किसी और देश में हुआ होगा. इस बात का प्रमाण इससे ज्यादा और क्या होगा कि ‘मोर’ नाम तक हम भारतीयों ने ही उसे दिया है. अर्थ भले ही ‘मोर’ का अंगरेजी में ‘ज्यादा’ होता हो, […]

सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
मोर के संबंध में जितना चिंतन-मनन, शोध-अनुसंधान भारत में हुआ है, लगता नहीं कि इतना किसी और देश में हुआ होगा. इस बात का प्रमाण इससे ज्यादा और क्या होगा कि ‘मोर’ नाम तक हम भारतीयों ने ही उसे दिया है. अर्थ भले ही ‘मोर’ का अंगरेजी में ‘ज्यादा’ होता हो, पर मोर के बारे में सोचा-विचारा हमने ही ज्यादा और इस ज्यादा सोच-विचार के कारण हमने ही उसे ‘मोर’ भी कहा.
अंगरेजों ने तो पहले-पहल उसे देख कर मुर्गा यानी ‘कॉक’ ही समझ लिया था. बाद में जब उनका ध्यान उसके आकार की तरफ गया, वह भी पता नहीं खुद ही गया या किसी और ने दिलाया, और क्या पता मुर्गों ने ही दिलाया हो कि कहां हम नन्हीं-सी जान और कहां यह मुस्टंडा, तब भी वे इसमें इतनी-सी तबदीली करके रह गये कि ‘कॉक’ से पहले ‘पी’ भर जोड़ दिया और उसे ‘पीकॉक’ कहने लगे. जरूर पी रहे होंगे, जब उन्होंने ऐसा किया होगा.
सबसे पहले हमने ही यह बात ऑब्जर्व की कि मोर नाचता है, वह भी जंगल में, और यह देख कर लाख टके का यह सवाल भी सबसे पहले हमने ही दुनिया से पूछा कि ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?’
जाहिर है, पूरी दुनिया हमारी मेधा की कायल हो गयी होगी, मतलब जिस चीज की भी वह कायल हुई होगी, हमने उसी को मेधा माना. चूंकि सवाल का जवाब कहीं से नहीं आया, इसलिए हम हिंदुस्तानियों ने आपस में सलाह-मशविरा करके यह तय किया कि कभी जंगल में नहीं नाचना, वरना कोई नोटिस नहीं लेता. नाचना ही हो, तो शहर में ही नाचो, ‘नच बलिये’ टाइप के टीवी-कार्यक्रमों में नाचो, और नहीं तो किसी की बारात में ही नाच लो. और सबसे अच्छा तो यह होगा कि अपनी या किसी और की घरवाली की उंगलियों पर नाच लो. फिर देखो कि किस-किस रूप में कितना सवाब मिलता है.
मोर संबंधी अपनी इस खोज को हम इससे भी आगे ले गये हैं और अभी हाल ही में हमने पता लगाया है कि मोर नाचता ही नहीं, बल्कि रोता भी है और अपने भद्दे पैरों को देख कर इसलिए नहीं रोता कि उसे दुख होता है, बल्कि वह मोरनी को देख कर रोता है और वह इसलिए, कि आजन्म ब्रह्मचारी होने के कारण वह मोरनी के साथ अंतरंग संबंध नहीं बना पाता.
मोरनी बेचारी उसके उन आंसुओं को ही यथास्थान रख कर गर्भ धारण कर लेती है. यह जानकारी एक बहुत पहुंचे हुए ही नहीं, बल्कि पहुंच कर लौटे हुए जज साहब ने दी है. ज्ञान की पराकाष्ठा देखिये कि मोर से संबंध न बनाने के बावजूद उन्होंने मोरनी को ब्रह्मचारिणी नहीं कहा. आंसू पीकर ही सही, वह सृष्टि आगे बढ़ाने का पाप जो करती है!

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