बीजिंग : चीन के एक सरकारी समाचारपत्र ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में शामिल किया जाना दोनों देशों को उनके द्विपक्षीय मतभेदों को दूर करने में सहायता कर सकता है, हांलाकि ऐसी आशंकाएं हैं कि उनके बीच के तल्ख रिश्ते चीन के प्रभुत्व वाले इस संगठन की एकता को प्रभावित कर सकते हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने ‘चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशन्स’ में आतंकवाद निरोधक विशेषज्ञ ली वी के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा, ‘कुछ चिंताएं हैं कि भारत पाकिस्तान के बीच के वैर भाव संगठन की एकता को प्रभावित कर सकते हैं. हांलाकि एससीओ उन सदस्यों को अपने विवादों को इस संगठन की मूल भावना के साथ द्विपक्षीय तौर पर सुलझाने के लिए एक आदर्श मंच बनेगा.’
कजाकिस्तान की राजधानी आस्ताना में कल एससीओ सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को औपचारिक रूप से शामिल किया जायेगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ इस सम्मेलन में शिरकत करेंगे. शंघाई में 1996 में बने इस संगठन में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं.
अभी तक भारत और पाकिस्तान को अफगानिस्तान, बेलारुस, ईरान और मंगोलिया के साथ पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ था. भारत और पाकिस्तान को इसमें शामिल किये जाने से अब इस संगठन के कदम मध्य एशिया से दक्षिण एशिया की ओर और गहरे होंगे. ली ने कहा, ‘भारत और पाकिस्तान एक दूसरे पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का इल्जाम लगाते रहते हैं और यह आम तौर पर उनके घरेलू राजनीतिक एजेंडे और मतभेद के कारण हैं. एससीओ सदस्य इनको सहयोग देंगे और उन्हें मदद की पेशकश करेंगे न कि संगठन के भीतर उनके मतभेद का अंतरराष्ट्रीयकरण.’
रिपोर्ट में फूदान विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर लिन मिनवांग ने कहा, ‘संक्षेप में कहा जाए तो एससीओ भारत और पाकिस्तान के झगड़ने का स्थान नहीं है, बल्कि एक ऐसा मंच है जहां सदस्य अपने मतभेद दूर कर सकें.’ गौरतलब है कि आतंकवाद विरोधी सहयोग एससीओ का अहम मुद्दा है और संगठन आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक चरमपंथ के खतरों से निपटने के लिए 2003 से ‘पीस मिशन’ कोड नाम से द्विवार्षिक सैन्य अभियान चलाता आ रहा है.