मामला . वर्ष 2009-10 में केएन त्रिपाठी ने दी थी टैंकर
सियासत गरम, केएन त्रिपाठी ने उठाये सवाल
मेदिनीनगर : वर्ष 2009-10 में डालटनगंज के तत्कालीन विधायक केएन त्रिपाठी के विधायक निधि से आठ टैंकर व दो ट्रैक्टर का क्रय किया गया था. इसका संचालन की जिम्मेवारी डॉ जग्रनाथ मिश्रा शिक्षा विकास समिति को दी गयी थी. टैंकर द्वारा गरमी के मौसम में आम लोगों को जलापूर्ति के साथ साथ सामाजिक कार्यों में टैंकर से पानी उपलब्ध कराया जाता था. इसी बीच प्रशासन को यह शिकायत मिली थी कि समिति द्वारा टैंकर का अपेक्षित उपयोग नहीं हो रहा है.
जिस उद्देश्य को लेकर टैंकर दिया गया है, उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है. इसके बाद समिति को पत्र लिखकर ट्रैक्टर व टैंकर पेयजल व स्वच्छता विभाग को वापस करने को कहा गया था. पत्र मिलने के बाद शनिवार को समिति के अध्यक्ष दिलीप तिवारी व सचिव बागेंद्रनाथ त्रिपाठी सहित कई लोग डीडीसी आरएस वर्मा से मुलाकात की. कहा कि संस्था द्वारा आम लोगों की हित में कार्य किया जा रहा है. जरूरतमंदों तक पानी पहुंचाया जा रहा है. यदि प्रशासन को और कहीं पानी या फिर टैंकर व ट्रैक्टर की जरूरत है, तो बतायें समिति उपलब्ध करायेगी. आखिरकार ऐसे ही कार्यों के लिए टैंकर मिला है.
जिन शर्तों पर समिति को टैंकर व ट्रैक्टर उपलब्ध कराया गया है, उन्हीं शर्तों के मुताबिक काम हो रहा है. इसलिए प्रशासन को अपने निर्णय पर पुर्नविचार करने की जरूरत है. प्रतिनिधिमंडल में अजय तिवारी, परमेश तिवारी, कामेश्वर तिवारी, लक्ष्मीनारायण तिवारी, कौशल दुबे आदि शामिल थे. पूर्व मंत्री त्रिपाठी ने उठाये सवाल :
इस मामले को लेकर पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने सवाल उठाया है. कहा है कि इस तरह का आदेश बिना मुख्यमंत्री कार्यालय के सहमति के नही निकलता. यदि मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा इस तरह की यदि को नीति राज्य में तैयार की गयी है, तो उसके बारें में बताना चाहिए. पूर्व विधायकों ने संस्था को जनहित के कार्य के लिए यदि टैंकर व ट्रैक्टर उपलब्ध कराया गया है और संस्था द्वारा उस दिशा में सक्रियता के साथ कार्य किया जा रहा है, तो फिर आखिर उसे वापस करने के आदेश का मतलब क्या है?
पूर्व मंत्री श्री त्रिपाठी ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह की नियम सिर्फ डालटनगंज के पूर्व विधायक पर लागू होती है या फिर राज्य के दूसरे पूर्व विधायकों पर भी. इसका जवाब सरकार को देना चाहिए. पूर्व मंत्री श्री त्रिपाठी ने कहा कि इस तरह के मामले में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को नहीं पड़ना चाहिए. राजनीति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर शासन काम करेगी तो आखिर काम कैसे चलेगा?