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जानिए क्‍यों जून में देश के साथ-साथ बिहार की राजनीति भी रहेगी गरम

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक न 1975 के जून में इस देश की राजनीति में दूरगामी परिणामों वाली घटनाएं हुई थीं. वैसी बड़ी तो नहीं, पर कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं की आहट इस जून में भी जरूर सुनाई दे रही हैं. बिहार में राजद और भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के बीच गंभीर आरोप-प्रत्यारोप का दौर […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
न 1975 के जून में इस देश की राजनीति में दूरगामी परिणामों वाली घटनाएं हुई थीं. वैसी बड़ी तो नहीं, पर कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं की आहट इस जून में भी जरूर सुनाई दे रही हैं. बिहार में राजद और भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के बीच गंभीर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. आरोप भ्रष्टाचार को लेकर हैं. पता नहीं, इस मामले में आगे क्या-क्या होने वाला है. रोज नये-नये खुलासे हो रहे हैं. यदि इन आरोप-प्रत्यारोपों में कोई बड़ा मोड़ आ गया तो वह राजनीति और कुछ नेताओं के लिए यादगार बन सकता है. बिहार की जनता के लिए भी. इस बार की बिहार इंटर परीक्षा के रिजल्ट ने भी देश का ध्यान खींचा है.
दो-तिहाई परीक्षार्थी फेल कर गये हैं. इसको लेकर पीड़ित छात्र उद्वेलित हैं. राज्य सरकार उनकी समस्या के समाधान का भरोसा दिला रही है. देखना है कि वैसे परीक्षार्थियों की वाजिब मांगों का समाधान कब तक होता है! जितनी जल्द हो जाए,उतना ही अच्छा है. इस महीने यह भी देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में दलीय जोड़तोड़ को लेकर बिहार के महागठबंधन के नेतागण राष्ट्रीय स्तर पर कैसी भूमिका निभाते हैं! जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अभी होने वाली दलीय गोलबंदी, 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए पूर्व पीठिका का काम कर सकती है. यह महीना कश्मीर को लेकर भी काफी महत्वपूर्ण है.
पाकिस्तान ने पूरा जोर लगा दिया है. भारतीय सेना पहले की अपेक्षा अधिक ताकत से भारत विरोधी ताकतों को जवाब दे रही है. केंद्र सरकार ने जरूरत के अनुसार फौजी कार्रवाइयां करने की पूरी छूट सेना को दे दी है. ऐसा कम ही होता है जब सेना को पूरी छूट मिल जाए! हाल में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की खरीद-बिक्री पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया. इसको लेकर ‘सेक्युलर दल’ और उनकी राज्य सरकारें रोष में हैं.
इससे ध्रुवीकरण का खतरा भी सामने है. हालांकि ताजा खबर के अनुसार केंद्र सरकार इस मामले में कुछ सहूलियत देने को तैयार लग रही है. खबर यह भी आ रही है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में दिग्विजय सिंह ने जाकिर नाइक को कानूनी परेशानियों से बचाया था. हालांकि जाकिर ऐसा व्यक्ति नहीं जिसके साथ किसी देशभक्त की सहानुभूति हो सकती है. भारत के कई मुसलिम धर्मगुरु भी जाकिर की कार्य शैली के खिलाफ रहे हैं. याद रहे कि पुलिस ने जाकिर नाइक की आपत्तिजनक गतिविधियों के लिए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रस्ताव किया था. उस पर धर्म परिवर्तन का आरोप है. वह सार्वजनिक रूप से अन्य धर्मों की निंदा करता है. इन दिनों वह इस देश की पुलिस के डर से फरार है. पर सवाल है कि यह दिग्विजय सिंह भी कैसे नेता हैं जिनका नाम ऐसे विवादास्पद लोगों से यदाकदा जुड़ता रहता है? या फिर ऐसे लोगों से सिंह खुद को जोड़ लेते हैं?
कपिल मिश्र जैसे अपने ही पूर्व सहयोगी द्वारा अरविंद केजरीवाल तथा उनके सहकर्मियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं. इन आरोपों से एक नयी शैली की राजनीति के पतन की आहट मिल रही है. किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया होगा कि जन लोकपाल आंदोलन के जरिये 2011 में अन्ना हजारे के साथ उभरे अरविंद केजरीवाल की सरकार पर कुछ ही वर्षों में इतने संगीन आरोप लगेंगे. यह बात और है कि आरोपों को अभी साबित किया जाना है. पर आरोप लग ही क्यों रहे हैं? ऐसे आरोपों से स्वच्छ राजनीति की उम्मीद में बैठे आम नागरिकों को झटका लगता है. लगता है कि इसी जून में अरविंद मंडली पर लग रहे आरोपों को उनकी तार्किक परिणति तक पहुंचा दिया जायेगा.
जरा याद कर लें जून, 1975 भी! : 5 जून, 1975 को जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान की सभा में ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया था. यह और बात है कि वह सपना भी पूरा नहीं हुआ. 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का राय बरेली से लोकसभा का चुनाव खारिज कर दिया. अदालत ने लोकसभा में वोट देने का प्रधानमंत्री का अधिकार भी समाप्त कर दिया. उसी दिन यह खबर आयी कि गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी हार गयी.
जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से मांग की कि वह अब प्रधानमंत्री पद छोड़ दें. उस मांग पर जोर डालने के लिए 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने जनसभा की. सभा बड़ी थी. स्वतः स्फूर्त भी. उसी रात देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी. देश के लगभग सारे गैर कांग्रेसी नेता जेलों में बंद कर दिये गये. अखबारों पर कठोर सेंसरशीप लगा दी गयी. किसी एक महीने में एक साथ इतनी बड़ी घटनाएं संभवतः कभी नहीं हुईं जितनी जून, 1975 में हुईं.
देश बचाने के लिए कठोर कार्रवाई जरूरी : गत 29 मई, 2017 को यह खबर आयी कि कश्मीर में अलगाववादियों को मिल रही वित्तीय मदद के तार दिल्ली के हवाला कारोबारियों से जुड़े होने के सबूत एनआइए को मिले हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. क्योंकि हमारे देश का तंत्र चुस्त नहीं है. हवाला कारोबारियों पर कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हमारे देश के अनेक नेताओं और बड़े अफसरों का हवाला कारोबारियों से करीबी संबंध है.
नब्बे के दशक में वह संबंध उजागर हुआ था. तभी दोषियों को सजा हो गयी होती तो संभवतः आज कश्मीर के आतंकवादियों व अलगाववादियों को हवाला कारोबारियों की सेवाएं नहीं मिल पातीं. 27 मार्च, 1991 में जेएनयू का एक छात्र शहाबुद्दीन गोरी लाखों रुपये के साथ पकड़ा गया था. वे पैसे कश्मीर के आतंकवादियों के लिए थे. इसी तरह के राष्ट्रविरोधी धंधे में लगा हिजबुल मुजाहिद्दीन का अशफाक लोन उन्हीं दिनों गिरफ्तार हुआ था. इन लोगों से मिले सुराग के बाद पांच हवाला कारोबारी गिरफ्तार हुए. सीबीआइ ने 3 मई, 1991 को 20 स्थानों पर एक साथ छापे मारे. जिन स्थानों में छापामारी की गयी, उनमें जेके जैन का परिसर भी था. उसके यहां से सनसनीखेज डायरी मिली.
उस डायरी में दर्ज था कि देश के कई दलों के 115 अत्यंत ताकतवर नेताओं और बड़े अफसरों को हवाला के पैसों में से लाखों-करोड़ों रुपये दिये गये. नेताओं में कई पूर्व केंद्रीय मंत्री भी थे. यानी जो कश्मीर के आतंकवादियों को पैसे दे रहे थे, वहीं इस देश के बड़े नेताओं को भी खुश कर रहे थे. जांच हुई, पर सीबीआइ नामक तोता ने उसे रफा-दफा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा ने भी कहा था कि इस जैन हवाला कांड की तो सीबीआइ ने कोई जांच ही नहीं की.
और अंत में : किसी ने ठीक ही कहा है कि कफन में जेब नहीं होती. पर इस देश के अनेक नेताओं की तरह ही पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जयललिता भी इस उक्ति का मर्म नहीं समझ सकीं थीं.
कौन सी संपत्ति लेकर परलोक गयीं हैं जयललिता? ताजा खबर यह है कि तमिलनाडु सरकार ने जयललिता की निजी संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. याद रहे कि अदालत ने जायज आय से अधिक संपत्ति जब्त करने का आदेश दे रखा है. जयललिता ने कुल कितनी संपत्ति बनायी थी, उसके बारे में तो हमेशा अटकलों का बाजार ही गर्म रहा है.
पर सवाल है कि उन्होंने किसके लिए संपत्ति बनायी? शशिकला जिस केस में जेल की सजा भुगत रही हैं, उसी केस की मुख्य आरोपित जयललिता थीं. बंगलुरू की विशेष अदालत ने 27 सितंबर, 2014 को जयललिता को 4 साल की कैद और एक अरब रुपये का जुर्माना किया था. उन्हें जेल जाना पड़ा था. जयललिता पहले से ही अस्वस्थ चल रही थीं. जेल की अव्यवस्था ने उनकी बीमारी को और भी गंभीर बना दिया था. नतीजतन उनका असामयिक निधन हो गया.

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