जज्बा सारण के युवक ने अमनौर के लच्छकौतुका में मिले मृदभांड व बौद्ध स्तूप का लगाया पता
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अमनौर में बौद्धकालीन अवशेष मिले
जज्बा सारण के युवक ने अमनौर के लच्छकौतुका में मिले मृदभांड व बौद्ध स्तूप का लगाया पता छपरा(नगर) : सारण का बौद्धकालीन इतिहास एक बार फिर जीवंत होने के कगार पर है. जिले के अमनौर प्रखंड के लच्छकौतुका गांव में बौद्ध स्तूप, मृदभांड, ईंट तथा कई प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं. सारण जिले के रिविलगंज […]
छपरा(नगर) : सारण का बौद्धकालीन इतिहास एक बार फिर जीवंत होने के कगार पर है. जिले के अमनौर प्रखंड के लच्छकौतुका गांव में बौद्ध स्तूप, मृदभांड, ईंट तथा कई प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं. सारण जिले के रिविलगंज निवासी उद्भव शांडिल ने इस ऐतिहासिक धरोहर को खोजने में सफलता पायी है. भूगोल के छात्र उद्भव को पुरातात्विक धरोहरों के अध्ययन का शौक रहा है.
आज से आठ माह पहले वो लच्छकौतुका अपने नानी के घर छुट्टियों में आये थे. तब उन्हें यहां एक टीलानुमा स्थान दिखायी दिया था और वहां से उन्हें कुछ अलग से दिख रहे पत्थर भी प्राप्त हुए. हालांकि उस वक्त तो उद्भव इसे नजर अंदाज कर गये पर लच्छकौतुका नाम उनके जेहन में बार-बार घूमता रहा. उद्भव ने लच्छकौतुका का अर्थ जानने की पूरी कोशिश की पर उन्हें पता नहीं चला. पटना में लगे पुस्तक मेला में हिंदी पाली डिक्शनरी में खोजने के बाद उन्हें इसका अर्थ समझ में आया.
पाली में लच्छ का अर्थ लक्ष्य होता है. वहीं कौतुका अर्थात विजय पताका फहराना. लक्ष्य को प्राप्त करना जैसा वाक्य उन्हें बौद्धकालीन इतिहास की तरफ आकर्षित करने लग और उन्होंने इसकी खोज शुरू कर दी. उद्भव का दावा है कि लच्छकौतुका में एक विशाल बौद्ध स्तूप है होने की संभावना है. अगर इस जगह के आसपास खुदाई की गयी तो कई बुद्धकालिन अवशेष प्राप्त हो सकते हैं. फिलहाल उद्भव अपने तीन दोस्तों के साथ यहां कैंप किये हुए हैं.
अबतक उन्हें इस जगह के आसपास से कई बुद्धकालीन मृदभांड, ईंटे, ऊंचा टीला प्राप्त हो चुका है. गांव के लोगों से बात-चीत के बाद पता लगा कि लच्छकौतुक गांव में कई वर्ष पहले सात कुएं थे. इस बात का पता चलते ही उद्भव ने इसकी भी खोज शुरू की और उन्हें गांव के घने जंगलों में एक कुआं मिला जो सूख चुका था. जब उद्भव और उनके दोस्तों ने इस कुएं के ईंटों को निकाला तो ये ईंटे ठीक वैसी ही थी जैसी वैशाली जनपद में स्थापित स्तूप के आसपास मिलती है. जिसके बाद इन लोगों का दावा और भी मजबूत हो रहा है.
इतिहास में भी है जिक्र : हालांकि अमनौर में बौद्धकालीन अवशेषों का मिलना महज एक संयोग नहीं हो सकता. इतिहास में भी इस बात का जिक्र मिलता है.
बुद्ध से प्रभावित होकर सम्राट अशोक ने 84 स्तूप बनवाए थे. भारत सरकार पुरातत्व विभाग अब तक मात्र 8 स्तूपों को ही ढूंढ़ सका है. बुद्ध के सोलह महाजनपदों में सारण क्षेत्र या तो विज्ज या फिर मल्ल संघ के साथ था. दिघवारा जो पहले दीर्घद्वार के नाम से जाना जाता था वो इस जनपद का प्रवेश द्वार था. शीतलपुर में भी माही नदी बहती है जो बौद्धकालिन ही है.
ग्रामीणों ने भी बताये कई रोचक तथ्य
ग्रामीणों के अनुसार लच्छकौतुका में जो टीला है वो वर्षों से देखा जा रहा है. गंडक नदी के किनारे होने के बावजूद इस स्थान को आज तक कभी भी बाढ़ ने प्रभावित नहीं किया. ये बस एक दैविक कृपा नहीं बल्कि इसमें भी एक तथ्य है. अशोक ने जितने भी स्तूप बनाते वो शहर के ऊंचाई वाले स्थान पर हैं जहां बाजार वगैरह लगा करते थें.
लच्छकौतुका में भी जो टीला है काफी ऊंचाई पर है. इतना ही नहीं गांव में सैकड़ों वर्ष प्राचीन एक मूर्ति भी है जो बुद्धकालीन प्रतित होती है. एक दो दिनों में वो इसे पुरातत्व विभाग को सूचित करेंगे साथ ही सारण के जिलाधिकारी से मिल कर अपने रिसर्च के बारे में बतायेंगे.
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