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बाबू, अफसर और भ्रष्टाचार

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार सरकारी नौकरी में कई विभागों की कुछ सीटें ऐसी होती हैं, जिस पर पोस्टिंग के जुगाड़ में लोग भर्ती होते ही जुट जाते हैं. ये वो सीटें हैं, जिनमें बदनीयती प्रोग्राम्ड होती है. यानी आप चाहें या न चाहें, लेकिन आपको कमीनापन तो दिखाना ही पड़ेगा. जुगाड़ू येन-केन-प्रकारेण मलाईदार सीटों पर […]

वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
सरकारी नौकरी में कई विभागों की कुछ सीटें ऐसी होती हैं, जिस पर पोस्टिंग के जुगाड़ में लोग भर्ती होते ही जुट जाते हैं. ये वो सीटें हैं, जिनमें बदनीयती प्रोग्राम्ड होती है. यानी आप चाहें या न चाहें, लेकिन आपको कमीनापन तो दिखाना ही पड़ेगा.
जुगाड़ू येन-केन-प्रकारेण मलाईदार सीटों पर काबिज हो लेता है. जल्दी ही यह जुगाड़ू बाबू खुद को विभाग का दरोगा घोषित करता है. सीट की कमीनगी और जुगाड़ू बाबू का मिलन यानी हम तुम बने इक दूजे के लिए. बरसों उसी कुर्सी से फेविकोल लगा कर चिपका रहेगा. दुधारू ‘थन’ की तलाश में भटकते अफसर को बड़ी आसानी से यह जुगाड़ू बाबू ट्रैप कर लेता है.
हजारों निरीह और मजबूर प्राणियों को लूटेगा. अपना घर भरेगा और ऊपर वालों का हिस्सा उनके घर पहुंचायेगा. धर्मराज को छोड़ दुनिया की कोई सुनामी उसे हटा नहीं सकती. लाखों की हाय भी इस जुगाड़ बाबू का बाल भी बांका नहीं कर सकती.
हमारे एक जानकार बाबू सुबह ऑफिस आने से पहले आईने के सामने खड़े होकर लंबा-चौड़ा चंदन, केसर वगैरह का टीका लगाते हैं. आला अफसरान के अलावा मंत्री-संत्री तक के दुलारे हैं ये. हर समस्या का हल और जुगाड़ इनकी जेब में हर वक्त मिलता है. मंत्री जी के एक ‘दुलारे’ के प्रमोशन में एक सीनियर बाधा बन रहे थे. उसकी रिपोर्ट संतोषजनक थी. उसे पीछे खिसकाने का उपाय बाबू ने बता दिया. संतोषजनक के पहले ‘अ’ बढ़ा दें. एक टेंडर में मंत्री जी के दबाव में अफसर को स्वीकृत लिखना पड़ा. तभी सरकार बदल गयी. शिकायत हो गयी. अफसर के हाथ-पांव फूल गये. बाबू ने सुझाया- स्वीकृत से पहले ‘अ’ बढ़ा दें. अफसर बच गया.
एक विभाग के भ्रष्ट बाबू के दूसरे विभाग के अपने काउंटर पार्ट से अच्छी सांठ-गांठ रहती है.हमने एक जन्म से ईमानदार बाबू को देखा है. विभाग को दुरुस्त करने के बड़े-बड़े सपने लेकर तैनात हुए. लेकिन, कुर्सी में घुसी कमीनगी की प्रकृति और सिस्टम में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों के कारण वह परेशान हो गया. उधर उसका डीएनए उसे चैलेंज करता रहा. इधर बात-बात पर ऊपर के अफसर से बेवजह डांट खाता रहा. अंततः उसने हाथ जोड़ दिये. बाबू ‘बेवकूफ’ की पदवी से विभूषित करके शहर से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया. जो अपने जेब के पैसों से चाय पियेगा और दूसरों को भी पिलायेगा, उसका यही हश्र होना है.
किसी मलाईदार सीट से हमने किसी बाबू को जल्दी ट्रांसफर होते देखा है. गलत काम के लिए इसका जमीर गंवारा नहीं करता. इनके अंदर कमाने की चतुराई नहीं होती. न जमीर न चतुराई, ये जन्मजात भीरू होते हैं.

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