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पशुओं को नहीं मिल रहा चारा, हो रहा पलायन

मोकामा : मवेशियों के लिए हरा चारा खत्म होते ही पशुओं के साथ पशुपालकों का पलायन लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है. इन दिनों जमुई जिला से हजारों मवेशियों को लेकर पशुपालक अन्यत्र पलायन कर रहे हैं. मोकामा इलाके से रोजाना सैकड़ों मवेशियों के झुंड जमुई से दरभंगा जाते हुए दिख रहे […]

मोकामा : मवेशियों के लिए हरा चारा खत्म होते ही पशुओं के साथ पशुपालकों का पलायन लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है. इन दिनों जमुई जिला से हजारों मवेशियों को लेकर पशुपालक अन्यत्र पलायन कर रहे हैं. मोकामा इलाके से रोजाना सैकड़ों मवेशियों के झुंड जमुई से दरभंगा जाते हुए दिख रहे हैं. जमुई से चल कर लखीसराय के रास्ते मोकामा में रोजाना दर्जनों पशुपालक अपने सैकड़ों मवेशियों के साथ डेरा डाले हुए हैं. एक पशुपालक 75 से 100 मवेशी लेकर दरभंगा जाते हैं.
मोकामा इलाके में रोजाना यही सिलसिला देखने को मिल रहा है. जमुई के बड़ीबाग निवासी अर्जुन यादव अपने तथा पड़ोसियों और रिश्तेदारों के लगभग सौ से अधिक मवेशियों को लेकर दरभंगा जाते हुए नजर आये. पूछने पर उन्होंने बताया कि गरमी आने से पहले ही जमुई के पहाड़ी इलाकों में पशुचारा की गंभीर किल्लत हो जाती है. भूसा खिलाना काफी महंगा होता है और हरा चारा भी मवेशियों को नहीं मिल पाता. स्थिति यह हो जाती है कि पहाड़ी तथा जंगली इलाकों में भी चारे की गंभीर समस्या उत्पन्न होती है.
हरा चारा खत्म होते ही मवेशी लेकर पशुपालक दरभंगा के कुशेश्वरस्थान तथा अन्य जिलों की ओर प्रस्थान कर जाते हैं. अर्जुन यादव की मानें, तो हरा चारे की किल्लत होते ही देसी नस्लों के गायों तथा बछड़ों को पालना काफी मुश्किल हो जाता है. लिहाजा जिन इलाकों में चारे की अधिकता होती है वहीं पर अपने मवेशियों को लेकर चले जाते हैं. लगभग छह महीने तक सारे पशुपालक दूसरे जिलो में रहते हैं. बरसात के बाद उनके गृह क्षेत्र जमुई जिले के पहाड़ी गांवों में चारा उपलब्ध होते ही पशुपालक अपने मवेशियों को लेकर लौटने लगते हैं.
जमुई निवासी दरोगा यादव बताते हैं पशुपालन ही उनकी आय का एकमात्र जरिया है और घर- गृहस्थी चलाने के लिए पशुओं को पालना जरूरी है. दरोगा यादव की मानें, तो चारे की किल्लत के साथ ही दूध का उत्पादन घट जाता है और ऐसे में मवेशियों को पालना काफी मुश्किल हो जाता है. दरोगा यादव अपने मवेशियों को लेकर दरभंगा के कुशेश्वरस्थान जाते हैं. सकलदीप यादव ने खगड़िया के गोगरी इलाके में मवेशियों को रखने का ठिकाना खोज लिया है. जमुई जिला के पशुपालकों ने बताया कि हर साल का यही सिलसिला रहता है और 10–15 दिनों के लगातार सफर के बाद वे लोग जमुई से दरभंगा या समस्तीपुर और खगड़िया पहुंचते हैं.

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