काव्य संध्या में कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को गुदगुदाया
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मृदु स्नेह सुधा से सींच सींच जीवन काे सरस..
काव्य संध्या में कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को गुदगुदाया गया : गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य संध्या 159 का आयाेजन शनिवार को किया गया. इसकी अध्यक्षता सम्मेलन के सभापति गाेवर्द्धन प्रसाद सदय ने की. इसमें कवियाें ने अपनी रचनाएं सुनायीं. नगर निकाय चुनाव का माैसम है. इस पर मुकेश कुमार […]
गया : गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य संध्या 159 का आयाेजन शनिवार को किया गया. इसकी अध्यक्षता सम्मेलन के सभापति गाेवर्द्धन प्रसाद सदय ने की. इसमें कवियाें ने अपनी रचनाएं सुनायीं. नगर निकाय चुनाव का माैसम है. इस पर मुकेश कुमार सिन्हा ने वार्ड चुनाव पर चुटकी लेते हुए पढ़ा- ‘जिन्हें जानते तक नहीं, उन्हें सलाम कर रहे हैं, घर-घर घूम कर नेताजी सबकाे प्रणाम कर रहे हैं…’, मुंद्रिका सिंह ने मगही में अपनी रचना पेश की- ‘कहे आेलन जे चाहे अब कहल करे, मगर हम्मर डेग हरदम आगे बढ़ल करे…’, रामावतार सिंह ने मातृ दिवस को ध्यान रख माता पर अपनी कविता पेश की-
‘मृदु स्नेह सुधा से सींच-सींच जीवन काे सरस बनाती हाे, मीठे गीताें काेमल थपकी से प्रेम सुधा बरसाती हाे…’, चंद्रदेव केसरी ने वीराें काे समर्पित अपनी कविता पढ़ी- ‘देखाे वीर भूलाे नहीं शान, हिम्मत कभी न हाराे जान, दुश्मन का कभी न पूरे अरमान…’, जयप्रकाश सिंह ने शहीद जवानाें के संबंध में कहा- ‘सीमा पर शहीद हुआ इस धरा का लाल, अब हमें काैन देगा अपने हाथाें का सहारा…’, जैनेंद्र कुमार मालवीय ने सम्मेलन के संबंध में कहा-शब्दाें का स्वाद है कितना लुभावन, साहित्य सम्मेलन कितना है पावन, फूल यहां है हर रंग के खिलते, हिंदी-मगही-उर्दू सब आपस में मिलते…’, शिववचन सिंह ने सुनाया- ‘लिखता हूं मैं गीत मगर, गाता गीत नहीं हूं, मेरे दिल में भावनाएं भरी हैं, तेरे दिल में प्यार भरा…’, बैजू सिंह ने बूढ़ाें काे नसीहत दी- ‘बूढ़े हाे गये मन मारले वैराग ले, न ताे बेटा-बेटी घरवाली ले काेरहाग ले…’, डॉ ब्रजराज मिश्र ने पेश की- ‘सूखे तरु पर बैठा पक्षी, ढूंढ रहा है हरियाली… ’, डॉ सुल्तान अहमद ने गजल पेश की- ‘माेहब्बत की निशानी आगरा में अब भी कायम है, उसे तुम देख आआे कम-से-कम फुरसत से… ’, सुमंत ने पढ़ा- ‘खादी पर भगवा अब देखाे हाे गया है भारी, माेदीजी से तेज चल रही याेगीजी की गाड़ी…’ काव्य संध्या में कवि नरेंद्र, खालिक हुसैन परदेशी, प्रियदर्शन सिंह उज्जैन, गजेंद्र लाल अधीर, संताेष कुमार सिन्हा, विनाेद, डॉ निरंजन श्रीवास्तव, अजीत कुमार, सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने अपनी कविताएं पढ़ीं.
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