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मदर्स-डे स्पेशल : नहीं सुन रहा कोई बेबस मां की आवाज, बेटे ने कहा, अकेली है, तो दूसरी शादी कर ले

निष्ठुर बने बच्चे, मां को छोड़ गये दर-दर भटकने को आज मदर्स डे है और हर मां अपने बच्चों का जीवन संवारने के लिए कई कुर्बानियां देती हैं. पर कुछ ऐसी भी बदनसीब मां हैं, जो अपने बच्चों की जिंदगी संवारने में पूरी उम्र तो बिता दी हैं, पर उन्हें इसके बदले मिली है िसर्फ […]

निष्ठुर बने बच्चे, मां को छोड़ गये दर-दर भटकने को
आज मदर्स डे है और हर मां अपने बच्चों का जीवन संवारने के लिए कई कुर्बानियां देती हैं. पर कुछ ऐसी भी बदनसीब मां हैं, जो अपने बच्चों की जिंदगी संवारने में पूरी उम्र तो बिता दी हैं, पर उन्हें इसके बदले मिली है िसर्फ जिल्लत भरी जिंदगी. आज कुछ एेसी ही दर्द भरी कहानी जान कर मां की कुर्बानियों को याद करने पर आप विवश हो जायेंगे.
अनुपम कुमारी की िरपोर्ट
बेटे ने यह कह दिया कि जा तू भी दूसरी शादी कर ले. इतना कहते ही शांति देवी की बूढ़ी आंखों से आंसू छलक पड़े. वह रोती हुई अपनी आंखों के आंसू को पोछती हुई बोलीं, अब मैं 65 साल की हो गयी हूं. मुझे याद नहीं है, वो दिन जब मुझे किसी एक दिन भी भरपेट खाना नसीब हुआ होगा. पति की मृत्यु के बाद दो बच्चों को मजदूरी कर किसी तरह से पाल कर बड़ा किया. शादी-ब्याह कराया. अब उन लोगों ने ही मुझे घर से बाहर कर दिया है.
बेटे ने तो यह भी कह दिया कि मैं दूसरी शादी कर के उनका पीछा छोड़ दूं. इस बुढ़ापे में क्या अब मैं शादी करूंगी. क्या पता था, जिनकी आंखों की कभी किरकिरी निकालती थी, एक दिन उनकी आंखों की ही किरकिरी बन जाऊंगी. इतना कहते ही शांति देवी फिर रो पड़ीं .उनकी आंखों से निरंतर आंसू बहने लगे और ईश्वर से मौत की प्रार्थना करने लगीं.
शांति देवी लगभग दो वर्ष से समाज कल्याण विभाग की ओर से पाटलिपुत्र में संचालित शांति कुटीर में रह रही हैं. उनकी उम्र 65 वर्ष है. वह मूल रूप से बाढ़ की रहने वाली हैं. उनके दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी. दोनों शादीशुदा हैं. बेटी की शादी मुजफ्फरपुर में दारोगा से हुई है. बेटे को सरकारी नौकरी नहीं है. पर प्राइवेट काम कर बेहतर जीवन जी रहा है.
शांति देवी को पैर में एग्जीमा की समस्या होने के बाद उसके बेटे और बहू ने उसे बोझ समझ उसे घर से निकाल दिया. बेटे बहू ने मिल कर शांति देवी के घर को बेचकर ससुराल में ही बस गये. इसके बाद बेघर मां अपनी जान देने चली थी, पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और वह कुछ समय तक रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने लगी. उम्र होने के कारण वह बीमार भी रहने लगी. इसी क्रम में रेलवे पुलिस ने उसे समाज कल्याण विभाग की ओर से शांति कुटीर में भेज दिया, जहां वह दो वर्षों से रह रही हैं. पर इन दो वर्षों में उन्हें लेने न तो उनका बेटा आया और न ही बेटी. शांति अपने जीवन से पूरी तरह से नाउम्मीद हो चुकी हैं.
काम नहीं कर पाने पर बच्चों ने बेकार पड़े सामान की तरह निकाल फेंका
नालंदा जिले की बलवंती देवी की उम्र भी 75 वर्ष है. पर उसके बेटे ने उसे इस लिए घर से निकाल दिया कि वह अब बूढ़ी हो चुकी हैं. वह काम करने में असमर्थ हैं. वह बताती हैं कि जबतक शरीर साथ दिया तब तक बेटे- बहू ने भी साथ रखा. पर जब कमाने के लायक नहीं रही तो बेकार पड़े सामान की तरह निकाल दिया. अब वह कभी दोबारा बेटे के पास नहीं जाना चाहती हैं और शांति कुटीर में रह रही हैं.
बच्चे के खातिर लिया जमाने से लड़ने का फैसला
वहीं 19 वर्षीय आरती अनाथ है. बचपन रेलवे स्टेशन पर गुजारी है. उसके साथ क्या हुआ होगा, यह अंदाज लगाया जा सकता है.इसी क्रम में आरती कब बिन ब्याही मां बन गयी उसे पता तक नहीं चला. जब उसकी डिलिवरी का समय नजदीक आया तो उसकी बीमार हालत को देख उसे रेलवे पुलिस ने शांति कुटीर भेज दिया. जहां वह बच्चे को जन्म दिया. जून में उसके बेटे को एक साल हो जायेगा. बच्चे को जन्म देने के बाद आरती अब जीना चाहती है ताकि अपने बच्चे को बेहतर जीवन दे सके.
शांति कुटीर में रहने वाली शांति और बलवंती देवी अकेली नहीं, जो घरपरिवार और बाल बच्चे होने के बाद भी एकल जिंदगी जी रही हैं. ऐसी कुल 40 महिलाएं हैं जाे किसी- न किसी कारण से अपने घर परिवार से दूर हैं.
किसी को उसके बेटे- बहू ने इस लिए घर से निकाल दिया है क्योंकि वह कमाने की लायक नहीं रही, तो कुछ को इसलिए क्योंकि बुढ़ापे में वह बीमारियों की शिकार हो चली हैं और बेटे बहुओं पर भार बन चुकी है. इससे वह सरकार के द्वारा चलाये शेल्टर में रह रही हैं. शेल्टर की हेड स्मृति बताती हैं कि 2014 से अबतक कुल 338 महिलाएं ऐसी आयीं. इनमें से शेष को काउंसेलिंग करा कर घर भेज दिया गया है. पर 55 ऐसी हैं, जिन्हें उनके अपने अब अपने साथ ले नहीं जाना चाहते हैं.
हो रहा नैतिक मूल्यों का ह्रास
समाजशास्त्री रेणु रंजन कहती हैं, पश्चिमी सभ्यता का विस्तार हो रहा है और दूसरी ओर रुढ़ीवादी परंपरा से भी लोग बाहर नहीं निकल पाये हैं. इस क्रम में पहले जहां संयुक्त परिवार प्रथा था अब वह पूरी तरह से समाप्त हो गया है. परिवार अब पत्नी- बच्चे तक सिमटते जा रहे हैं. इससे नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है. इससे मां-बाप को छोड़ने की प्रवृति भी बच्चों में बढ़ रही है. ऐसे में फिर से हमें संस्कृति को आधार बनाकर नैतिक शिक्षा देनी होगी ताकि समाज से पारिवारिक पतन को रोका जा सके.

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