नयी दिल्ली : राकांपा प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल गांधी. ये वह नाम हैं, जिन पर राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए विपक्षी दल अपने साझा उम्मीदवार के तौर पर विचार कर रहे हैं. विपक्ष के एक शीर्ष नेता ने कहा कि कांग्रेस, वाम, राजद और जदयू सहित कई गैर राजग दलों के संभावित गठबंधन के लिए यह चार नाम पसंदीदा के तौर पर उभरे हैं.
अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के लिए पवार विपक्ष की स्वाभाविक पसंद के तौर पर देखे जा रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर मीरा कुमार एक दलित नेता हैं और सबसे बड़ी गैर भाजपा पार्टी कांग्रेस से जुड़ी हैं. यादव वरिष्ठ समाजवादी नेता हैं और उनके पास लंबा संसदीय अनुभव है. गोपाल गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते और सम्मानित शोधार्थी हैं, जिन्हें लगभग सभी दल पसंद करते हैं. सूत्रों की मानें, तो गांधी तृणमूल कांग्रेस की भी पसंद हैं.
गांधी ने बताया कि कुछ विपक्षी दलों के नेताओं ने उनसे संपर्क किया था. हालांकि, दलों का नाम उन्होंने नहीं बताया. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, जदयू के प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी राजा सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति पद के लिए राजग के उम्मीदवार के खिलाफ अपना संयुक्त उम्मीदवार उतारने के लिए आम सहमति बनाने की खातिर बातचीत की है.
ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस, नवीन पटनायक नीत बीजद तथा दक्षिण के राज्यों के क्षेत्रीय दलों को विपक्षी गठबंधन में शामिल करने के प्रयास जारी हैं. कई विपक्षी नेताओं का मानना है कि चुनाव के परिणाम की परवाह किये बिना संयुक्त उम्मीदवार उतारने से वर्ष 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के खिलाफ वृहद गठबंधन बनाने के लिए एक-दूसरे के साथ आने का मौका मिलेगा.
निर्वाचक मंडल खास तौर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत के बाद निश्चित रूप से शीर्ष संवैधानिक पद के लिए राजग की पसंद को प्रमुखता देगा. हालांकि, वह स्पष्ट बहुमत से अभी भी कुछ दूर ही है. लेकिन, उसके नेताओं को आवश्यक सहयोग मिलने का पूरा भरोसा है.
राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचक कालेज में कुल मतों की संख्या 11,04,546 है तथा भाजपा नीत राजग के मतों की संख्या लगभग 5.38 लाख है. वाईएसआर (सीपी) के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी की पार्टी ने सत्तारूढ़ गठबंधन को समर्थन देने का फैसला किया है, जिससे उनके हौसले और बुलंद हुए हैं. यह भी उम्मीद है कि राजग को अन्नाद्रमुक के गुटों का भी समर्थन मिलेगा.