नयी दिल्ली : ‘बीड़ी जलइ ले जिगर से पिया, जिगर मां बड़ी आग है…’ संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ बॉलीवुड के ‘गुलजार’ साहब के ये गीत आज भी सुनने में जितना अच्छा लगता है, जुलाई में जीएसटी लागू हो जाने के बाद बीड़ी को सुलगाकर सुट्टा लगाना संभवत: आसान नहीं रह जायेगा. इसकी वजह यह है कि ग्रामीण भारत में धुम्रपान के लिए बड़ी तादाद में इस्तेमाल की जाने वाली बीड़ी को भी जीएसटी में शामिल किये जाने को लेकर मुहिम चलायी जा रही है. वॉयस ऑफ टूबैको विक्टिम (वीओटीवी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली से मांग की है कि बीड़ी को भी जुलाई में पेश होने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) में शामिल किया जाये. इतना ही नहीं, इसके लिए बाकायदा इस संस्था की ओर से सोशल साइटों पर मुहिम भी चलायी जा रही है.
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वीओटीवी के संरक्षक और कैंसर सर्जन डॉ वीपी सिंह के अनुसार, बीड़ी लॉबी पूरी तरह से धुम्रपान के तौर पर ग्रामीण इलाकों में उपयोग किये जाने वाले इस उत्पाद को जीएसटी के दायरे से बाहर कराने के लिए सक्रिय है. उनका कहना है कि देश के ज्यादातर लोग बीड़ी को जीएसटी में कर के दायरे से बाहर रखने के पक्ष में नहीं हैं.
बताया यह भी जा रहा है कि बीड़ी को जीएसटी में शामिल कराने के लिए लोगों ने फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल साइटों पर मुहिम भी चला रखी है. फेसबुक पर प्रधानमंत्री को हैशटैग करके किये गये पोस्ट को करीब 87 हजार से अधिक लोगों ने पंसद कर कमेंट किया है. वहीं, ट्विटर पर पीएम मोदी को करीब 1474 लोगों ने ट्विट कर बीड़ी को जीएसटी में शामिल करने की मांग की है.
इसके साथ ही, कहा यह भी जा रहा है कि जीएसटी वन में टूबैको टैक्स के लिए जो हैशटैग बनाया गया है, उसे करीब 7,12,239 लोगों ने देखकर अपनी सहमति जाहिर की है. इसमें यह भी कहा जा रहा है कि देश में पूरे एक साल के दौरान तंबाकू के सेवन से करीब 12 लाख लोगों की मौत होती है, जिसमें अकेले छह लाख बीड़ी फूंकने वाले काल के गाल में समा जाते हैं.
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