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समय के साथ नष्ट हो रही एेतिहासिक कलाकृतियां

धरोहर : मिले हैं राजा कर्ण व सम्राट अशोक कालीन अवशेष, संरक्षित नहीं की गयी दुर्लभ कलाकृतियां देवघर : जिले का करौं प्रखंड ऐतिहासिक है. यहां राजा कर्ण और सम्राट अशोक कालीन अवशेष हैं. एक ओर जहां कर्णेश्वर मंदिर राजा कर्ण की उपस्थिति को दर्शाता है वहीं बौद्धकालीन बिहार और पत्थरों की कलाकृतियां सम्राट अशोक […]

धरोहर : मिले हैं राजा कर्ण व सम्राट अशोक कालीन अवशेष, संरक्षित नहीं की गयी दुर्लभ कलाकृतियां

देवघर : जिले का करौं प्रखंड ऐतिहासिक है. यहां राजा कर्ण और सम्राट अशोक कालीन अवशेष हैं. एक ओर जहां कर्णेश्वर मंदिर राजा कर्ण की उपस्थिति को दर्शाता
है वहीं बौद्धकालीन बिहार और पत्थरों की कलाकृतियां सम्राट अशोक की याद दिलाता है.
संजय मिश्र
करौं में मंदिर, पत्थरों पर नक्काशी, कलाकृतियां, बौद्धकालीन विहार, बुद्ध की मूर्तियां, पुराने तालाब व कूप आदि पाये गये हैं. ये ऐतिहासिक अवशेष तालाबों की खुदाई के दौरान मिले हैं. कई मूर्तियां तो अाज भी करौं थाना के मालखाना में जंग खा रहे हैं. लेकिन आज तक इस करौं ग्राम में मिले ऐतिहासिक अवशेषों के संरक्षण की दिशा में कोई काम नहीं हुआ. बल्कि अभी तक न सरकार का और न ही जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर गया है. जबकि सालों पहले से खुदाई में यहां ऐतिहासिक पत्थरों की कलाकृति मिला है. संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे ये ऐतिहासिक धरोहर लुप्तप्राय होती जा रही है.
अब तक सरकार और प्रशासन ने इन दुर्लभ कलाकृतियों के संरक्षण के लिए नहीं बनायी योजना
लोगों ने बचा रखी है धरारेहर
करौं ग्राम में बौद्धकालीन मूर्तियों का मिलना व राजा कर्ण के जमाने का मंदिर और पत्थरों के अवशेष के मिलने की खबरें लगातार प्रकाश में आती रही है. बौद्धकालीन मूर्तियों के मिलने की बात बौद्ध भंते मोगली पुत्र तिस्सोबरी ने भी कही है. अभी भी यहां की जमीन के नीचे ऐतिहासिक धरोहर छिपे हैं. लेकिन आज तक करौं ग्राम की ऐतिहासिक धरोहरों की ओर भारतीय पुरातत्व विभाग का ध्यान नहीं गया है. इस कारण जो भी अवशेष मिले हैं, उसका संरक्षण नहीं हो रहा है.
करौं के कुछेक इलाके में ऐतिहासिक अवशेष धरती के गर्भ में पाये जाने की बात कही जा रही है जो शोध का विषय हो सकता है.
करौं में अनेक देवी देवताओं के मंदिर है. इन मंदिरों व अन्य स्थानों में वर्षो पूर्व से ही खनन के दौरान पत्थरों की मूर्ति व अन्य शिलाखंड प्राप्त होते रहे हैं.
आज भी कर्णेश्वेर शिव मंदिर, मुडकट्टा काली मंदिर, कुशणेश्वर शिव मंदिर डिंडाकोली, चंडी ताला मंदिर, मिडिल स्कूल व पंचगड़िया शिव मंदिर के पास पत्थरों की कई मूर्ति व शिलाखंड विराजमान है.
करौं गांव को अष्टदल पद्म आकार से बसाया गया है. जानकार बताते है कि यहां 64 मंदिर, 64 तालाब, 64 गली, 64 चौराहा, 64 तांत्रिक, 64 वैद्य, 64 पंडित व 64 जाति के लोग निवास करते हैं. प्रत्येक अष्टदल में 8-8 योगनियों का निवास है.
आठ दिशाओं का आठ वस्तु के प्रतीक के रूप में आठ ब्राम्हणों का घर दक्षिण दिशा में आठ महथर व बाउरी का घर जो प्रसिद्व धर्मराज के पूजारी है. लेकिन उपेक्षा के कारण आज यह करौं ग्राम अपनी ऐतिहासिकता खोता जा रहा है.

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