14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कर्जदारों की खरीदारी

मनोज श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार मोटे तौर पर देश में दो से पांच प्रतिशत लोग ही आयकर दाता हैं और लगभग इतने ही लोग अंगरेजी पढ़ने-समझनेवाले हैं. गजब का अनुपात समानता है! और ये सभी समझदार देशवासी अपनी चल-अचल संपत्ति की खरीदारी सिर्फ बैंक लोन पर ही कर पाते हैं. कर्ज लेकर घी पीनेवाले अभी भी […]

मनोज श्रीवास्तव

स्वतंत्र टिप्पणीकार

मोटे तौर पर देश में दो से पांच प्रतिशत लोग ही आयकर दाता हैं और लगभग इतने ही लोग अंगरेजी पढ़ने-समझनेवाले हैं. गजब का अनुपात समानता है! और ये सभी समझदार देशवासी अपनी चल-अचल संपत्ति की खरीदारी सिर्फ बैंक लोन पर ही कर पाते हैं. कर्ज लेकर घी पीनेवाले अभी भी मौजूद हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि बढ़े-बूढ़ों की सीख कोई काम नहीं आती.

देखा जाये तो देश में खरीदी पर बैंक लोन का ही ट्रेंड है. अमीर या कम अमीर, सभी इसी का उपयोग करते हैं और इनकी लगभग पूरी मासिक आय ही लोन के किस्त-ब्याज में खर्च होती है.

यानी मान लें कि पैसे वाला तबका कर्ज में डूबा है, तो फिर मासूम प्रश्न मुंह बाये खड़ा है कि इनकी लक्जरी लाइफ कैसे मेंटेन हो रही है? और ये देशभर में फैले मॉल, ब्रांडेड शोरूम, विदेशी प्रोडक्ट्स कैसे चल रहे हैं? बहुत अंधेर है! कर्ज में डूबे हाथ को जेब नहीं सूझना चाहिए, पर इधर उल्टा ही माहौल है. कर्जधारी तो जेब में हाथ डाल कर मॉल-मॉल घूम रहा है और ऋणधारी बाहर भटक रहा है. उसकी तो जेब में हाथ डालने की आदत ही खत्म होने के कगार पर है, वो बेचारा तो ब्रांडेड शोरूम की चकाचक रौशनी से चकरा कर अंदर घुसने की हिम्मत नहीं जुटा-पा रहा और अंदर कर्जदारों की भीड़ मस्त खरीदारी में जुटी हुई है.

मोल-भाव करना यानी गरीब सिद्ध होना ही नहीं, बल्कि बैंक के कर्जदार सिद्ध होने का डर भी एक तरह से अब नयी श्रेणी बन कर सामने आया है. कौन चाहेगा खुद को गरीब से भी नीचे की कर्जदार श्रेणी में सिद्ध करवाना, तो उससे बचने का एक ही नियम है कि बिल देखे बगैर सीधे पेमेंट कर दो. शाही अंदाज, ऊंचे लोग, ऊंची सोच. गरीब है कि फुटपाथ पर दो-दो रुपये के लिए भाव-ताव कर इज्जत गंवा कर झिड़की भी खा-रहा है. गलती उसी की है, बैंक का लोन खाता तो इज्जत भी मिलती और झिड़की भी नहीं खानी पड़ती. किस्मत में खुद्दारी लिखी हो, तो कलयुग में किसी काम की नहीं, बस कोसने के काम आयेगी या झिड़की खाने के.

यदि कर्जदारों को वाकई कड़की में मान लें, तो यह भी सत्य मानना होगा कि कर्जदारों के पास किस्त अदा करने के पश्चात मुश्किल से घर चलाने को पैसा रहता है. ऐसे में धनिक कर्जदार वर्ग तो मॉल, शोरूम में जाने से रहे, फिर वहां खरीदारी करने क्या बीपीएल धारक पहुंचते हैं?

और जगमग मॉल हमेशा खुले रहेंगे, तो दिनभर थके-हारे दिहाड़ी में लगे बीपीएल धारी रात में जाने से मना कर देंगे, तब रात्रि में जायेगा कौन? लगता है उधर फुटफाथों के भिखारी दिखाई देंगे! कुछ इस तरह रोते-गाते- ‘न जमी मयस्सर थी न छत, एक नींद बची थी वो भी छीन ली कम्बख्तों ने!’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें