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देश को तकनीकी मोरचे पर सक्षम बनायेगा बिग डाटा एनालिटिक्स

मौजूदा दौर में वित्तीय मामलों, जनसंख्या, वस्तुओं व सेवाओं के तकनीकी और सांख्यिकीय विश्लेषण में व्यापक स्तर पर आंकड़ों का उपयोग किया जाता है़ नये-नये तथ्यों को तलाशने के क्रम में आंकड़ों की जटिलता से जूझना होता है़ हालांकि, बिग डाटा प्रणाली ने इस काम को बेहद आसान बना दिया है़ दुनिया के अनेक देश […]

मौजूदा दौर में वित्तीय मामलों, जनसंख्या, वस्तुओं व सेवाओं के तकनीकी और सांख्यिकीय विश्लेषण में व्यापक स्तर पर आंकड़ों का उपयोग किया जाता है़ नये-नये तथ्यों को तलाशने के क्रम में आंकड़ों की जटिलता से जूझना होता है़ हालांकि, बिग डाटा प्रणाली ने इस काम को बेहद आसान बना दिया है़
दुनिया के अनेक देश बिग डाटा का भरपूर इस्तेमाल करते हुए विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, और अब भारत में भी इस दिशा में बदलाव आ रहा है. भारत सरकार के अनेक विभाग इन बाधाओं से निपटते हुए इसका बेहतर विश्लेषण करने में सक्षम हो रहे हैं. तकनीकी विकास में बिग डाटा व एनालिटिक्स के योगदान और संभावनाओं पर केंद्रित है आज का साइंस टेक पेजसवा सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाला हमारा देश किसी तकनीकी अवधारणा को पनपने देने और उसे विकसित करने के लिए सबसे बड़े बाजारों में से एक है. ऐसी ही एक तकनीकी अवधारणा है- बिग डाटा, जो भारतीय बाजार में अपने पैर टिका तो रहा है, लेकिन इसके लिए उसे व्यापक संघर्ष करना पड रहा है.
इंटरनेशनल डाटा कॉरपोरेशन (आइडीसी) के मुताबिक, यह अनुमान लगाया गया है कि बिग डाटा और बिजनेस एनालिटिक्स ने मिल कर दुनियाभर में वर्ष 2015 में 122 अरब डॉलर का राजस्व अर्जित किया था, जो वर्ष 2019 तक बढ़ कर 187 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. वहीं भारत में इसकी तसवीर वैश्विक आंकड़ों के मुकाबले बहुत कम है. ‘नैसकॉम’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बिग डाटा और बिजनेस एनालिटिक्स का वर्तमान कारोबार अब तक दो अरब डॉलर से भी कम ही है.
इतनी विशाल आबादी के रहते हुए सरकार को खुद ही बिग डाटा और बिजनेस एनालिटिक्स को प्राथमिकता के आधार पर स्वीकार करना चाहिए, लेकिन भारत में बिग डाटा को अपनाने और उसके लचर प्रदर्शन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार डिजिटल रिकॉर्ड्स के अभाव को कहा जा सकता है.
हमारे पास तकनीक है, उन सभी को आपस में प्रयुक्त करने के लिए मैन पावर और नॉलेज है, पर सार्थक दृष्टिकोण की तलाश है़ जब तक तक डाटा संसाधनों को डिजिटाइज्ड नहीं किया जायेगा, यह इस काम को कई गुना ज्यादा बढ़ा देगा. ऐसे में कई बार बिग डाटा सिस्टम को लागू कराना पूरी तरह से निरर्थक है.
इसका मतलब यह नहीं कि इस दिशा में कोई उम्मीद नहीं है. भारत सरकार ऐसा कर सकती है- और अब वह इस दिशा में प्रयास भी कर रही है. लिहाजा, देश में अनेक सेक्टर में बिग डाटा सिस्टम को अपनाने में सरकार मदद कर रही है. साथ ही वह डिजिटल रिकॉर्ड्स और डाटा एनालिटिक्स के क्षेत्र में भी काम कर रही है. डिजिटल इंडिया, आधार और ऑपेन गवर्नमेंट डाटा प्लेटफॉर्म सरीखे हालिया अभियानों से निश्चित रूप से इस अवधारणा को बढाने में मदद मिल रही है, लेकिन इस दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है, क्योंकि अभी बहुत दूर तक जाना है.
बिग डाटा को व्यापक बनाने के लिए सरकार जिस तरीके से प्राथमिक रणनीति के तौर पर मदद मुहैया करा सकती है, उसके तहत इसे अनेक चीजों से जोडने के लिए धरातल पर काम करना होगा. सर्वे अधिकारियों या सांख्यिकी अधिकारियों जैसे लोगों से सूचना एकत्रित करते हुए डिजिटल रिकॉर्ड्स तैयार करते हुए जरूरी आंकडे हासिल किये जा सकते हैं.
साथ ही एकसमान फॉरमेट में उन आंकडों को केंद्रीकृत करना, उनमें से कुछ आंकड़ों को जनता के लिए जारी करना, ताकि उनकी भागीदारी तय की जा सके और उनके हितों के अनुरूप दिलचस्पी पैदा की जा सके, जिससे इसके इस्तेमाल के प्रति उन्हें प्रोत्साहित किया जा सके.
पैमाने की पहचान
भारत जैसे विशाल देश में, केंद्र सरकार यदि गवर्नेंस की उच्च गुणवत्ता को सुनिश्चित करना चाहती है, तो सबसे पहले उसे इस दिशा में अत्यधिक चुस्ती दिखाने की जरूरत है. बिग डाटा के उभरते युग में, इसे समग्रता से नया आयाम देते हुए इसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए सरकार के पास अब बहुत सारे नये टूल्स हैं. आंकड़ों को एकत्र करने के लिए केंद्र सरकार के पास अनेक टूल्स हैं. इसमें सबसे बडा माध्यम नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के फिल्ड ऑपरेशंस डिविजन के देशभर में संचालित 49 क्षेत्रीय कार्यालय और 118 उप-क्षेत्रीय कार्यालय हैं. इतना ही नहीं, फिल्ड ऑपरेशंस डिविजन द्वारा एकत्रित किये गये आंकड़ों को विविध डाटा प्रोसेसिंग केंद्रों में प्रोसेस किया जाता है.
इस अभियान के तहत करीब 33 लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग में फैले देश की सवा अरब से ज्यादा आबादी को शामिल किया जाता है. सभी डाटा-कलेक्टिंग डिवाइसेज एक इंटेग्रेटेड सिस्टम से जुडे होते हैं, जहां सभी आंकड़ों को स्टोर किया जाता है आैर एकसमान फॉरमेट में सुधारा जाता है. इन आंकड़ों में इतनी क्षमता होती है कि सरकार चाहे तो इनके जरिये क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन
यह एक ऐसा मंत्रालय है, जो उपरोक्त किस्म के आंकड़ों को एकत्र करता है और एकत्रित किये गये आंकड़ों से हासिल नतीजों को दर्शाता है. इस मंत्रालय के तहत कई विभाग हैं, जो डाटा कलेक्शन के विविध आयामों को अंजाम देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं.
सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस
देश के विकास दर काे दर्शाने वाला महत्वपूर्ण तथ्य जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट को सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) द्वारा तैयार किया जाता है. जीडीपी और वस्तुओं व सेवाओं के उपभोग संबंधी आंकड़ों की गणना संबंधित मंत्रालय के नेशनल एकाउंट्स डिविजन द्वारा किया जाता है. सीएसओ के तहत अन्य डिविजंस में सोशल स्टेटिस्टिक्स डिविजन और इकॉनोमिक स्टेटिस्टिक्स डिविजन शामिल हैं.
डाटा प्वॉइंट की व्यापकता
ये सभी डिविजन आंकड़े एकत्रित करते हैं. डिजिटल फॉरमेट्स में इन डाटा प्वॉइंट का मतलब बहुत कुछ हो सकता है. बिग डाटा प्लेटफॉर्म के जरिये सभी प्रकार की टैक्स फाइलिंग, बिक्री निबंधन, खुदरा खरीदारी, करेंसी इनफ्लो व आउटफ्लो को बेहद तेजी और मजबूती से एकत्रित किया जा सकता है.
स्वास्थ्य संबंधी विषयगत आंकडे
सरकार नागरिकों के डाटा व इन्फोर्मेशन के संबंध में ही आंकड़े एकत्रित या विश्लेषित नहीं करती है. किसी महामारी की दशा में विशाल भूभाग होने के बावजूद संबंधित आंकड़ों की मदद से तत्काल सक्षम तरीके से उससे निपट सकती है.
बीमारियों से बचाव के उपाय
उदाहरण के तौर पर जापानी इनसेफिलाइटिस. यह एक ऐसी बीमारी है, जो देश के समूचे पूर्वी हिस्से में पिछले तीन दशकों से जब-तब उभार लेती रही है और अब तक यह हजारों लोगों की जान ले चुका है. मानसून के दौरान इस बीमारी के उभार लेने संबंधी आंकडों को एकत्रित और विश्लेषित करने से उसके कारणों को समझा जा सकता है व उसके खतरनाक असर को कम किया जा सकता है.
1,48,000 सब-सेंटर्स हैं स्वास्थ्य क्षेत्र में देशभर में.
24,000 प्राइमरी हेल्थ सेंटर हैं देशभर में.
मौसम की पूर्व जानकारी : मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के तहत संचालित मीटियोरोलॉजी विभाग सेटेलाइट के जरिये आंकड़े हासिल करता है और मौसम पर नजर रखता है. इससे किसी आपदा के बारे में समय रहते जाना जा सकता है.
समुचित उपयोग
वर्ष 2012 के नेशनल डाटा शेयरिंग एंड एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी या एनडीएसएपी के तहत भारत सरकार ने आंकड़ों को एकत्रित करने का एक लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसका इस्तेमाल पब्लिक फंड के समुचित उपयोग के लिए किया जायेगा, ताकि इस दिशा में बेहतर चर्चा करते हुए फैसले लिये जा सकें. इस पॉलिसी स्टेटमेंट के तहत सरकार ने सभी उपलब्ध विभागों के संदर्भ में इन आंकड़ों को सटीक तरीके से इस्तेमाल में लाने की पहल की है. ‘डाटा डॉट जीओवी डॉट इन’ के रूप में केंद्र सरकार ने ऑपन गवर्नमेंट डाटा प्लेटफॉर्म के लिए एक पोर्टल का गठन किया है.
एकीकृत सिस्टम
एक ऐसा सिस्टम बनाना, जिसे सभी प्लेटफॉर्म पर संचालित किया जा सके और डाटा शेयरिंग को तेज और भरोसेमंद बनाया जा सके, सरकार को इ-गवर्नेंस एप्लीकेशंस के जरिये इसे बेहतर बनाने की जरूरत है. ऑपनफॉर्ज प्लेटफॉर्म के गठन से सरकार ने सोर्स कोड का रिपॉजिटरी विकसित करने के लिए नींव के रूप में ऑपेन-सोर्स टूल्स को अंगीकार किया है.
(टेकस्टोरी डाॅट इन पर प्रकाशित निकुंज ठक्कर के लेख का अनुवादित वसंपादित अंश, साभार)
भविष्य की सुरक्षा : बड़ी संख्या में आइटी ग्रेजुएट्स और बिग डाटा पर आधारित कोर्स होने के बावजूद इसके जानकारों में व्यावहारिक ज्ञान की कमी देखी गयी है. बिग डाटा और एनालिटिक्स व डेवपलिंग प्रोजेक्ट्स के ताने-बाने में रिसर्च केंद्रित पाठ्यक्रम की डिजाइनिंग के इस्तेमाल से ऑपन-सोर्स गवर्नमेंट डाटा को व्यावहारिक रूप से ज्यादा स्मार्ट और सरकार के सामने आनेवाली चुनौतियों से निपटने में सक्षम समाधान तलाशने के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. नैसकॉम के हालिया अनुमान के मुताबिक, बिग डाटा के संदर्भ में भारत में उसका राजस्व वर्ष 2025 तक 16 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा. सरकार यदि बिग डाटा को कार्यान्वित करने के लिए ठोस पहल करती है, तो इस लक्ष्य को उससे पहले भी हासिल कर लिया जा सकता है. क्षमताओं और अर्थव्यवस्थाओं में उपलब्धियां भारत में एक प्रकार की अर्थव्यवस्था के निर्माण में व्यापक योगदान देंगी, जिसे मौजूद मजबूत आंकड़ो और उसमें छिपी हुई क्षमताओं के दोहन और उन भरोसेमंद कार्रवाई से हासिल किया जायेगा.
बनेंगी आकाश में लटकती इमारतें!
धरती पर जमीन सीमित है, जिस कारण अब इनसान को बसाने के लिए जल और आकाश का रुख किया जा रहा है. ‘डीडब्लू’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्लाउड आर्किटेक्ट्स ने अब पिंडों पर इमारतें लटकाने का ड्राफ्ट बनाया है. इसी तर्ज पर बनाया जानेवाला अनालेम्मा टावर दुनिया का सबसे ऊंचा टावर बन सकता है.
ऐसी इमारतों की नींव के लिए धरती की नहीं, बल्कि पृथ्वी का चक्कर काटते पिंडों की जरूरत है. धरती से हजारों किमी ऊपर घूम रहे पिंडों पर मजबूत और लंबे तार लगाने की योजना है. ये मजबूत तारें ही इमारतों को लटकायेंगी. वर्ष 2015 में यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने घूमते पिंड पर लैंडिंग रोवर उतार कर साबित कर दिया था कि पिंडों तक पहुंचा जा सकता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी 2021 तक मुफीद पिंड खोजना चाहती है. पिंड से लटकते अनालेम्मा टावर को बिजली इमारत के सोलर पैनल से मिलेगी. बारिश और बादलों को संघनित करके पानी एकत्रित किया जायेगा. इस टावर को बेहद हल्का बनाया जायेगा.
इसमें कार्बन फाइबर और एल्युमिनियम का ज्यादा इस्तेमाल किया जायेगा. ऐसी इमारतों में रहना कैसा होगा, फिलहाल यह सोचना बहुत मुश्किल है. वहां रहनेवालों को धरती का नायाब नजारा दिखेगा. लेकिन किसी काम से धरती पर आना हो, तो पैराशूट के साथ छलांग लगानी पड़ेगी.

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