न्यू यॉर्क : असामान्य रूप से कठोर अपने संपादकीय में न्यू यॉर्क टाइम्स ने कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई को ‘बर्बर’ बताते हुए चेतावनी दी है कि इससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा. शनिवार को प्रकाशित इस संपादकीय में कहा गया कि भारत की सरकार को कश्मीर में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.
न्यू यॉर्क टाइम्स के संपादकीय बोर्ड की ये टिप्पणियां ऐसे समय आयी हैं, जब कुछ ही दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें दिख रहा था कि कश्मीर में एक नागरिक को मानव ढाल बनाकर सैन्य वाहन से बांधा गया है.
संपादकीय में कहा गया कि पथराव करनेवाली भीड़ से बचाव के लिए शॉल बुनकर 24 वर्षीय फारुक अहमद डार को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए जीप के आगे बांधकर और उसकी पिटाई करके भारत के सैन्य बलों के लोग कश्मीर में ‘‘कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के लंबे इतिहास में बहुत ज्यादा नीचे गिर गये हैं.” ‘कश्मीर में बर्बरता और बुजदिली’ शीर्षक से इस संपादकीय में कहा गया, ‘‘सोशल मीडिया पर चले इस वीडियो के जरिये प्रकाश में आयी घटना कश्मीर में लगभग तीन दशकों से जमे आतंकवाद की गहराई का अंदाजा देती है.”
इसमें कहा गया कि इस घटना के बाद भारत के सैन्य प्रमुख जनरल विपिन रावत ने डार को जीप से बांधने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई का संकल्प तो लिया, लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी कि कश्मीर के पथराव करनेवाले युवा और अलगाववादी आतंकी ‘आज भले बच जाएं, लेकिन कल हम उन्हें पकड़ ही लेंगे. हमारा कठोर अभियान जारी रहेगा.” संपादकीय में कहा गया कि ‘‘यह रुख अंत में कश्मीर को ऐसे भंवर में फंसा देगा, जहां और ज्यादा बर्बर सैन्य तौर तरीके निराशा तथा आतंकवाद को और ज्यादा बढ़ावा देंगे.”
संपादकीय में कहा गया कि मोदी सरकार अच्छा काम कर सकती है, यदि वह उस रिपोर्ट की सिफारिशों का पालन करे, जो जनवरी माह में उन्हें नागरिकों के एक समूह ने सौंपी थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि कश्मीरी जनता को सरकार के वायदों पर जरा भी भरोसा नहीं है और भेदभाव की भावना उनमें गहरे तक बैठी है. रिपोर्ट में टिकाऊ राजनीतिक हल निकालने की खातिर बहुदलीय चर्चा और बेहतर मानवाधिकारों का अनुरोध किया गया.
संपादकीय में कहा गया कि रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू नहीं करने की स्थिति में यदि कश्मीरी जनता से शेष भारत के साथ शांतिपूर्ण, समृद्ध भविष्य का सपने देखने का मौका छीना गया, तो भारतीय लोकतंत्र अपनी विश्वसनीयता खो देगा.
पिछले वर्ष घाटी का दो बार दौरा करने पहुंचे समूह ने ‘बहुआयामी चर्चा’ की सिफारिश की थी, जिसमें हुर्रियत के साथ बातचीत ‘जल्द से जल्द’ शुरू करने को कहा गया था. इसके अलावा सरकार से मानवाधिकार की स्थिति सुधारने, जनता के बीच लोकतांत्रिक संपर्क बहाल करने और कश्मीरी लोगों को इकट्ठा होकर चर्चाओं की इजाजत देने को कहा गया था.