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माओवादी व टीपीसी की लड़ाई में फंसे दर्जनों गांवों के लोग

पिस रहे गांववाले, बेगुनाहों की जा रही है जान औरंगाबाद शहर : झारखंड की सीमा से सटा औरंगाबाद जिला नक्सलग्रस्त इलाके के तौर पर जाना जाता है. पहाड़ों और जंगलों के सहारे नक्सली संगठन समय-समय पर अपनी ताकत का अहसास कराते रहे हैं. हाल के दिनों में जिस तरह से पुलिसिया कार्रवाई की गयी है, […]

पिस रहे गांववाले, बेगुनाहों की जा रही है जान

औरंगाबाद शहर : झारखंड की सीमा से सटा औरंगाबाद जिला नक्सलग्रस्त इलाके के तौर पर जाना जाता है. पहाड़ों और जंगलों के सहारे नक्सली संगठन समय-समय पर अपनी ताकत का अहसास कराते रहे हैं. हाल के दिनों में जिस तरह से पुलिसिया कार्रवाई की गयी है, उससे बहुत हद तक खासकर औरंगाबाद जिले में शांति पटरी पर लौटी है,
लेकिन जिले का सीमावर्ती झारखंडवाला इलाका दो नक्सली संगठनों के वर्चस्व की लड़ाई में जल रहा है. कभी माओवादी के नाम पर बेगुनाह लोगों पर जुल्म ढाया जाता है, तो कभी टीपीसी के नाम पर. वैसे इन दोनों नक्सली संगठनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई वर्षों से चल रही है और इस लड़ाई में दर्जनों लोग काल के गाल में समा चुके हैं.
बिहार-झारखंड के सीमा पर स्थित कुलहिया गांव इसका उदाहरण है.
इस गांव ने नक्सलियों के जुल्म जितना सहा है, इसे समझना आसान नहीं होगा. कुलहिया गांव में सोमवार की रात भाकपा माओवादी संगठन के हथियारबंद दस्ता ने शिवनाथ यादव और उसके पुत्र विकास यादव की बेरहमी से पिटाई करने के बाद गोली मार कर हत्या कर दी. इस हत्या के पीछे भी टीपीसी का समर्थक होना कहीं न कहीं कारण बना है.
इस घटना से ठीक चार दिन पहले कुलहिया गांव के समीप पिथौरा गांव में हो रहे सड़क निर्माण में लगी निर्माण कंपनी के 13 वाहनों को माओवादियों ने आग के हवाले कर दिया था. इस घटना की अभी जांच ही चल रही थी कि माओवादियों ने बाप-बेटे की गोली मार हत्या कर बिहार व झारखंड के प्रशासन को चुनौती पेश कर दी.

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