नयी दिल्ली : 40 वर्षीय मुहम्मद अली जिन्ना ने जब किशोरी रुट्टी पेटिट से शादी करने की इच्छा जतायी थी तो उन्होंने उनकी दुल्हन बनने के लिए एक ही शर्त रखी कि वह ‘अपनी मूछें मुंड़वा लेंगे.’ जिन्ना ने न केवल अपनी मूछें कटवा लीं, बल्कि रुट्टी को प्रभावित करने के लिए अपनी केशसज्जा भी बदल डाली. वरिष्ठ पत्रकार शीला रेड्डी ने पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना के जीवन के बारे में ऐसे कई दिलचस्प किस्सों का खुलासा किया है.
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना, द मैरिज दैट शुक इंडिया’ में पारसी लड़की रुट्टी के साथ जिन्ना के विवाह के किस्से बयां कियेहैं जो उनसे उम्र में 24 वर्ष छोटी थीं. उन्होंने सोमवार की शाम यहां अपनी पुस्तक के बारे में एक सचित्र व्याख्यान दिया. रेड्डी ने इस मौके पर जिन्ना और उनकी पत्नी तथा दोनों परिवारों के दुर्लभ चित्रों के अलावा उनके जीवन के रोचक किस्से सामने रखे.
विवाह के लिए दो वर्ष का इंतजार
उन्होंने रुट्टी के पिता दिनशा मानेकजी पेटिट की तस्वीर के साथ वह मजेदार किस्सा भी बताया जिसमें जिन्ना ने अपने बैरिस्टर कौशल का इस्तेमाल करते हुए उनसे उनकी पुत्री का हाथ मांगा था. रेड्डी ने कहा, ‘जिन्ना की रुट्टी के पिता से बातचीत हो रही थी और उन्होंने उनसे अंतर समुदाय विवाह के बारे मेें उनका रुख पूछा. अब स्वयं को राजनीतिक रूप से सही दिखाने के लिए दिनशा मानेकजी पेटिट ने कहा, ‘यह देश की एकता के लिए अच्छी बात होगी.’ रेड्डी ने कहा, ‘अब जिन्ना ने अगला सवाल किया ‘मैं आपकी पुत्री से विवाह करना चाहता हूं.’ यह कहा जाता है कि उन्हें दरवाजे से बाहर फेंकवा दिया गया था और दोनों के बीच उसके बाद कभी मुलाकात नहीं हुई.’ रुट्टी रतन बाई का छोटा नाम है. वह उस समय 16 वर्ष की ही थीं, विवाह के लिए उनके कानूनी रूप से योग्य होने तक दोनों को दो वर्ष इंतजार करना पड़ा. जैसे ही वह 18 वर्ष की हुईं दोनों का 1918 में बम्बई के जिन्ना हाउस में विवाह हो गया. रुट्टी के परिवार का कोई भी सदस्य विवाह में शामिल नहीं हुआ. रेड्डी ने कहा कि रुट्टी ने विवाह के लिए इस्लाम कबूल किया और मरियम नाम रख लिया.
पुस्तक लिखने की कहानी
रेड्डी यद्यपि पुस्तक में उल्लिखित किस्सों तक सीमित नहीं रहीं, उन्होंने पुस्तक लिखने की कहानी भी बतायी. उन्होंने बताया कि नेहरु मेमोरियल लाइब्रेरी में उनकी नजर रुट्टी के कुछ पत्रों पर पड़ी जो उन्होंने सरोजनी नायडू की दो पुत्रियों पद्मजा और लीलामणि नायडू को लिखे थे. शुरुआत में रेड्डी के दिमाग में यह बात आयी कि उनके पास एक पुस्तक लिखने के लिए सब कुछ है, लेकिन उन्हें बाद में अहसास हुआ कि उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है और उस सफर में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण स्थल होगा. उन्होंने कहा, ‘मैं इस्लामाबाद गयी और जिन्ना और पेटिट तथा अन्य के बीच लिखे हुए पत्रों की बाबत जानकारी जुटायी. इन सबमें मुझे इस बात का अहसास नहीं हुआ कि मैंने रजिस्टर में अपना भारत वाला पता लिख दिया है.’ रेड्डी ने कहा, ‘गड़बड़ी की आशंका पर उन्होंने मुझे वहां से चले जाने के लिए कहा और मेरे वहां प्रवेश पर रोक लगा दी गयी. इसके बावजूद मैं अपने पाकिस्तानी मित्र की मदद से कुछ फाइलें हासिल करने में सफल रही. यद्यपि उसमें जिन्ना की पुत्री द्वारा उन्हें लिखे गये कुछ पत्रों के अलावा कुछ भी नहीं था.’ लेखक की तलाश मुम्बई वापस लौटने पर समाप्त हुई. रेड्डी को पाकिस्तानी विद्वानों ने कहा, ‘आप गलत स्थान पर हैं, बम्बई जाइये.’ जिन्ना ने अपने जीवन का काफी समय बम्बई में बिताया था जहां वह बंटवारे के बाद पाकिस्तान जाने से पहले तक रहे. रुट्टी की 1929 में कैंसर से मृत्यु हो गयी और जिन्ना पाकिस्तान जाने से पहले आखिरी बार बम्बई स्थित उनकी कब्र पर गये थे.