-रजनीश आनंद-
(लेखिका‘माहवारी स्वच्छता और झारखंडी महिलाओं का स्वास्थ्य’ विषय परइंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी की फेलो रहीं हैं)
माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, अन्यथा संक्रमण का खतरा बना रहता है. यह सलाह डॉक्टर देते हैं, उनका कहना है कि महिलाएं सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करें और उसे कुछ घंटों में बदले भी ताकि संक्रमण का खतरा ना हो. कपड़ा इस्तेमाल करने वाली महिलाएं सूती कपड़े का इस्तेमाल करें और उसके साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें. लेकिन झारखंड के ग्रामीण इलाकों में अगर आप जायें, तो आपको ज्ञात होगा कि माहवारी के दौरान यहां की महिलाएं स्वच्छता की अनदेखी करती हैं, या यूं कहा जाये कि उनके लिए स्वच्छता का ध्यान रखना संभव नहीं तो ज्यादा बेहतर होगा.
गरीबी के कारण होती है स्वच्छता की अनदेखी
घोड़ा बांधा, पश्चिमी सिंहभूम जिले का एक छोटा सा गांव है. यह गांव घोड़ाबांधा पंचायत के मझिगांव प्रखंड में स्थित है. जिला मुख्यालय चाईबासा से लगभग 59 किलोमीटर और राजधानी रांची से 176 किलोमीटर दूर स्थित है घोड़ाबांधा गांव. चूंकि इस गांव में लोगों के घरों में अभी भी शौचालय और स्नानागार की सुविधा सीमित है, इसलिए महिलाएं स्नान के लिए तालाब पर जाती हैं. माहवारी के दौरान भी वे उसी तालाब के पानी का इस्तेमाल करती हैं और वहीं चट्टान पर महिलाएं माहवारी के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले कपड़े को धोती हैं. कपड़े को धोने में अकसर वे सिर्फ पानी का इस्तेमाल करती हैं, इसका कारण इनकी अनभिज्ञता नहीं है, बल्कि पैसे की कमी है. साबुन खरीदने में पैसे लगते हैं और ग्रामीण पैसे की कमी से जूझते रहते हैं. तालाब पर कपड़े को धोने के बाद वे वहीं जमीन पर कपड़े को सूखने के लिए डाल देती हैं. अगर उनके नहाते तक कपड़े सूख जाते हैं, तो ठीक, अन्यथा महिलाएं कपड़ों को घर लाकर उसे घर के आसपास साड़ी या फिर अन्य किसी कपड़े के नीचे सूखने के लिए डाल देती हैं. ऐसे में कपड़े में संक्रमण की आशंका रहती है.
जलसंकट के कारण भी स्वच्छता को किया जाता है दरकिनार
गांव की एक महिला रीता हेम्ब्रम बताती हैं कि गरमी के मौसम में माहवारी के कपड़ों को धोना बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है. इसका कारण है गरमी में जलसंकट. तालाब सूख जाते हैं. उस वक्त महिलाओं को कुंएं पर जाकर कपड़ा धोना पड़ता है. गांव में कुंओं की संख्या काफी कम है. इसलिए महिलाएं घर पर पानी लाकर भी माहवारी के कपड़ों को धोती हैं और बारी में ही सुखाती हैं. पानी की किल्लत होने के कारण कपड़ों को अच्छे से साफ करना संभव नहीं हो पाता है. गांव की ही एक महिला सरिता देवी बताती हैं कि गांव में सेनेटरी नैपकिन का कोई प्रयोग नहीं होता है. सभी महिलाएं कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं. अभी भी यहां के आंगनबाड़ी केंद्रों से सेनेटरी नैपकिन का वितरण नहीं होता है. सच्चाई यह भी है कि अगर वितरण हो भी तो महिलाएं उसे खरीदेंगी नहीं क्योंकि उसके लिए पैसे देने पड़ते हैं, जिसकी कमी से वे जूझती रहती हैं.
संबंधित खबरें :-
ध्यान दें, माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग बन सकता है बांझपन का कारण
माहवारी को लेकर समाज में है जानकारी का अभाव, मिथकों पर विश्वास करते हैं लोग