नयी दिल्ली : कालाधन और इसके पोषकों के खिलाफ सरकार ने कार्रवाई तेज कर दी है. उन कंपनियों पर सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है, जो कालाधन को सफेद करने में मदद करती थी. सरकार की इस कार्रवाई से देश की चार लाख से अधिक कंपनियों का पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) कभी भी रद्द हो सकता है.
मार्च, 2017 से अब तक करीब चार लाख वैसी कंपनियों को नोटिस भेजा गया है, जिन्होंने कंपनियों के रजिस्ट्रार के यहां वित्तीय वर्ष 2013-14 और 2014-15 का आयकर रिटर्न जमा नहीं कराया है. एक अंगरेजी वेबसाइट ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि इन कंपनियों ने वर्ष 2015-16 का भी आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया है. हालांकि, इस साल का रिटर्न दाखिल करने का वक्त अभी खत्म नहीं हुआ है.
जिन कंपनियों ने रिटर्न दाखिल नहीं किया है, उन्हें 30 दिन का समय दिया गया है. यदि कंपनियां तय समयसीमा के भीतर रिटर्न दाखिल नहीं करती हैं, तो इनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जायेगा. ऐसी कंपनियां किसी प्रकार का लेन-देन न कर सकें, यह भी सुनिश्चित किया जायेगा. इसके तहत कंपनी मामलों का मंत्रालय ऐसी कंपनियों और उनके निदेशकों के नाम आयकर विभाग के अलावा बैंकों और भारतीय रिजर्व बैंक के साथ साझा करने पर विचार कर रहा है, ताकि इनके लेन-देन पर पूरी तरह से रोक लगायी जा सके.
कंपनीज एक्ट में इस बात का प्रावधान है कि यदि व्यवसाय ठप हो गया है, तो कंपनियां ‘निष्क्रिय’ का टैग ले लें, लेकिन अब तक बहुत कम कंपनियों ने इस विकल्प को चुना है. मार्च, 2015 तक देश में 14.6 लाख कंपनियां थीं, जिसमें से 10.2 लाख ही सक्रिय थीं. निष्क्रिय कंपनियों की श्रेणी में महज 214 कंपनियां थीं. सूत्रों ने बताया कि कंपनियों को डीलिस्ट करने की चेतावनी जारी करने के बाद कई कंपनियों ने अपना आयकर रिटर्न दाखिल कर दिया.
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इधर, कंपनी मामलों के मंत्रालय की पहल को सही ठहराते हुए एक सूत्र ने कहा, ‘हमें नहीं मालूम कि ये कंपनियां कोई व्यवसाय कर रही हैं या महज कागज पर चलनेवाली कंपनियां हैं. सबसे पहले हमें उसके स्टेटस का पता लगाना है. अगले स्टेज में सरकार उन कंपनियों की पहचान करेगी, जिनका टर्नओवर बहुत कम है, लेकिन उनके शेयर का प्रीमियम बहुत अधिक है.’
इसके बाद सभी मामलों को सीरियस फ्रॉड्स इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआइओ) और इनकम टैक्स विभाग को भेज दिया जायेगा, जो स्क्रूटनी करने के बाद मामले को इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को भेज देगा, ताकि गहन जांच के बाद ऐसी कंपनियों पर शिकंजा कसा जा सके.
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सरकार ने उन कंपनियों के खिलाफ सघन अभियान छेड़ा है, जिन्होंने नोटबंदी के दौरान मोटी रकम बैंकों में जमा करायी थी. सरकार ने एक टास्कफोर्स का गठन किया है, जिसे एक रोडमैप बनाने की जिम्मेदारी दी गयी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आनेवाले दिनों में शेल कंपनियां टैक्स चोरी या मनी लांडरिंग में मदद करने का माध्यम न बन सकें.
क्या है शेल कंपनियां
ऐसी कंपनियां शेल कंपनियां मानी जाती हैं, जहां ‘इंट्री ऑपरेटर’ नकद राशि लेकर प्रीमियम शेयर जारी करता है और कई कंपनियों की श्रृंखला की मदद से कालाधन को ‘सफेद’ करने में मदद करती हैं.