गांधी जी के प्रति युवाओं के आकर्षण की बड़ी वजह थी कि वे विश्वसनीय थे. उन्हें यकीन था कि गांधीजी उनकी समस्या का समाधान कर सकते हैं और शासक वर्ग को पूरी तरह से समझते हैं. तब के युवा गांधी जी को बुद्धिमान व संवाद करनेवाला मानते थे. पढ़िए एक टिप्पणी.
अनुराग चतुर्वेदी
महात्मा जी के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी और उनका जोश काबिलेगौर है. 15 साल की उम्र में गांधी जी के आवाहन पर निकला युवक/किशोर जेल तक गया और आजादी के बाद पूरी उम्र खादी के कपड़े पहने रहा, यह था गांधी जी का युवा जुड़ाव.
गांधी जी ने युवाओं को काम भी दिया और संघर्ष के साथ निर्माण में उन्हें भी जोड़ा. मेहनत का काम, हाथ का काम, हाथ से श्रम करने का काम. चरखा चलाने को प्रत्येक को प्रत्येक दिन की गतिविधि से जोड़ा, आश्रम खोल एक नयी जीवन पद्धति युवाओं को बतायी. सफाई आंदोलन के जरिये शौचालय साफ करने से लेकर बीमारियां क्यों होती हैं, इस पर भी ध्यान दिया. जिन आंदोलनों में सिर्फ भीड़ इकट्ठी होती है, जिन युवाओं को सिर्फ भाषण देकर सम्मोहित किया जा सकता है, वे आंदोलन लंबे नहीं चलते.
चीन में युवाओं का त्येन -आन-मन चौक का आंदोलन हो या अरब लीग का हाल ही में खत्म हुआ आंदोलन या जेएनयू में हुए भाषणों की शृंखला, यदि ये आंदोलन गांधी के रास्ते पर चले होते तो ये सिर्फ एकबार रोशनी दिखा कर बुझ नहीं जाते.
गांधी जी से आकर्षित हो कर अंगरेज लेखकों में अपनी पहचान बना चुके युवा मुल्कराज आनंद उनके आश्रम में आये. वह पुस्तक लिखना चाहते थे. वह अपनी पांडुलिपि पर गांधीजी की राय/टिप्पणी चाहते थे. गांधी जी ने उन्हें अपने आश्रम में आने और लिखने की अनुमति दी पर तीन शर्तो के साथ – पहली, लेखक को ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा, दूसरी, उन्हें शौचालय साफ करने होंगे और तीसरी, उन्हें सुबह-सुबह होने वाली प्रार्थना में भाग लेना होगा.
मुल्कराज आनंद ने शुरू की दो सलाह तो मान ली पर तीसरी शर्त के बारे में कहा कि आपकी पूजा में राम आते हैं और मेरी दृष्टि में राम ने सीता पर अत्याचार किया था. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा, तो गांधी जी ने उन्हें कहा, ठीक है, तुम उस वक्त लेखन करो, लेखक के लिए तो लिखना ही पूजा है. गांधी जी युवा को पूरी तरह बदल देने की ताकत रखते थे. अंदर से परिवर्तित कर देना उन्हें आता था. पैसेवाले को गरीब के बारे में सोचने और उसे बदलने का जलवा उन्होंने किया. ऊंची जाति के लोगों का हरिजन और छूआछूत मानने वाले विचार नकारने की शिक्षा दी. अंदर से बुराई को दूर करने का सिलसिला समय या काल से नहीं जुड़ा था.
यह जीवन भर चला. जो गांधी से जुड़ा वह ताउम्र उनके आंतरिक बदलाव की कोशिश से जुड़ गया. गांधी यदि सिविल नाफरमानी का, या आंदोलन का आवाहन करते थे तो साथ ही वे साधना की शुचितावाला कोई सुधारवादी आंदोलन भी शुरू करते थे. गांधी जी की एक और खासियत यह भी थी कि वे आंदोलन या आश्रम का कार्य यदि सभी से करवाना चाहते थे तो वह खुद भी उसे करते थे, वे सिर्फ ब्रांडिंग में नहीं लगे रहते थे. एक दिन सड़क पर सार्वजनिक रूप से झाड़ू ले ली और तीन साल तक फिर उसे छूआ तक नहीं. गांधी जी इसके विपरीत थे.
कमलादेवी चट्टोपाध्याय जब सिर्फ 27 वर्ष की थीं, तभी गांधी आंदोलन से जुड़ गयी थीं. नर-नारी की बराबरी की भूमिका के कारण ही युवा गांधी से जुड़े. कई कार्यकर्ताओं के लिए राजनीति-आंदोलन एक आनंद और उल्लास का भी मंच था. गांधी आंदोलन में कई पूरे जीवनभर के संबंध बने, जिस तरह से जीवन में आनंद और संगीत होता है, वैसे ही आंदोलन में बराबरी थी.
गांधी जी ने धर्म का संदर्भ लेकर धर्म के कारण फैली जाति को तोड़ा. अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उनके आंदोलन में भाग लेनेवाली कई स्त्रियों ने विदेशों में बनी अपनी चूड़ियां सार्वजनिक रूप से तोड़ दी, क्योंकि उन्हें लगता था गांधी के रास्ते पर चलना ही सबसे बड़ा धर्म है.
युवाओं के गांधी जी के प्रति आकर्षित होने का एक और महत्वपूर्ण कारण था कि वे विश्वसनीय थे. वे अपनी बात मनवा सकते हैं, हमारी समस्या का समाधान कर सकते हैं और शासक वर्ग को पूरी तरह से समझते हैं. तब के युवा गांधी जी को एक चतुर और बुद्धिमान संवाद करनेवाला मानते थे, गांधी जी ने साउथ अफ्रीका में सत्याग्रह किया था. इस सत्याग्रह ने उन्हें भारत में आकर एक वर्ष देश-दर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व भी हासिल करा दिया. गांधी जी से आकर्षित होनेवाला युवा मेधावी और त्याग से जुड़ा था. लंबी जेल यात्राओं और देश के लिए सबकुछ लुटा देने का जज्बा उन्हें गांधी के चमत्कारिक व्यक्तित्व से ही मिला था.
27 जून, 1924 को अहमदाबाद में हुआ गांधी जी का एक संवाद याद आता है. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली ने गांधी जी के लिए कहा था कि मैं एक फाजिर(व्यभिचारी) और फासिद(दुश्चरित्र) मुसलमान को भी महात्मा गांधी से अच्छा मानता हूं. त्यागी जी तब ऑल इंडिया कांग्रेस समिति के सदस्य थे. उन्होंने इसको असहनीय बता मौलाना मुहम्मद अली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भेज दिया. गांधी जी त्यागी के प्रस्ताव से सहमत नहीं थे. उन्होंने प्रस्ताव रखने के पहले त्यागी को सार्वजनिक रूप से सभा में कहा- “तुम्हें तो मुझसे बात करने में एतराज नई है?” त्यागी बोले- ‘नहीं ’, और गांधी के पास चले गये.
तब गांधी जी बोले- “जब मैं और वो राजी तो बीच में क्यों बोलता काजी?” बापू बोले- “यह प्रस्ताव तो ठीक नई है, मौलाना ने इसमें किसी और को तो कुछ कहा नहीं, महात्मा गांधी से फाजिर-फासिद मुसलमान को अच्छा समझने की बात है, इसमें कोई गाली तो नहीं है. गाली का सबूत तो उसका लगाना है. गांधी तो इसका लगना स्वीकार नहीं करता, फिर तो … खलास है जी.” गांधी जी ने महावीर त्यागी को सीख देते हुए कहा- “हिंदू-मुसलमान को साथ रखना है तो एक-दूसरे का खोट निभाना पड़ेगा, जो ऐसा नहीं करता है वह मित्र नहीं है. यह प्रस्ताव ठीक नई. ”अंत में गांधी जी ने महावीर त्यागी से पूछा- “तुम अक्लमंद हो या महात्मा गांधी?” त्यागी बोले-“ महात्मा गांधी.”
बापू बोले -“ तो फिर तो हो गया एक बेवकूफ को अक्लमंद की बात माननी होगी. बेवकूफ को अक्ल की दलील नहीं, बेवकूफी की दलील पसंद आती है.” हास्य करते गांधी बोले-“अब तो वापस लोगे?” (शोचनीय बापू नहीं- प्रभाष जोशी की पुस्तक ‘जीने के बहाने’, पृष्ठ -41) गांधी जी ने इस तरह युवा महावीर त्यागी को दोस्ती का मतलब समझा दिया.