मुजफ्फरपुर : ट्रेन के बोगी के एक कोने में आमने-सामने वाली सीट पर बैठे राजकुमार शुक्ल के साथ मोहन दास करमचंद्र गांधी मुजफ्फरपुर आ रहे थे, तब उनसे चंपारण के किसानों की समस्याओं पर लंबी चर्चा हुई. नील की खेती में लागत अधिक व उत्पादन कम. ऊपर से नील की फैक्ट्री चलाने वाले मालिकों का शोषण. इसके अलावा बिहार में किस तरह छुआ-छूत हावी है.
इस पर भी उनसे बातचीत हुई. गंभीरता से राजकुमार शुक्ल की बात सुनने के बाद गांधी जी कहते हैं देखिए हम इन सभी समस्याओं का समाधान सत्य, अहिंसा के रास्ते चल कर करेंगे. बस आप लोगों का प्रेम, साहस बरकरार रहना चाहिए. राजकुमार दोहराते हुए कहते है क्या बात है? हम क्या पूरा पब्लिक आपके साथ है. एक बार सिर्फ आप चंपारण पहुंच वहां के किसानों के दर्द को तो जान लें. गांधी जी कहते है मैं एक-एक लोगों के बीच जाऊंगा. उनकी समस्याओं को जानने-समझने के बाद हमसे सत्य, अहिंसा के रास्ते जो संभव हाेगा. वैसा करने को तैयार हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि इसमें हमें सफलता मिलेगी.
इसके बाद राजकुमार शुक्ल जी उनके दक्षिण अफ्रिका के यात्रा पर चर्चा शुरू करते हैं, तब तक ट्रेन जंकशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर पहुंच जाती है. इस बीच लोगों की काफी भीड़ देख गांधी जी कहते हैं कि लगता है मुजफ्फरपुर स्टेशन आ गया है. राजकुमार शुक्ल भी कहते हैं. हां. गाड़ी रूकती है. नीचे उतरते है. इस बीच पत्रकार जब गांधी के प्रतिरूप (डॉ भोजनंद प्रसाद सिंह) उनसे सवाल करता है कि आपको कैसा लग रहा है. कहते हैं मुझे लग रहा है कि मैं सचमूच गांधी हूं. इसके बाद वे राजकुमार शुक्ल के प्रतिरूप (डॉ अरुण कुमार सिंह) के साथ ट्रेन के बोगी से उतरने लगते हैं.
स्वागत का अंदाज था नया
10 अप्रैल, 1917 : देर रात गांधी जी राजकुमार शुक्ल के साथ ट्रेन से मुजफ्फरपुर आते हैं. स्टेशन पर उतरने के बाद गांधी जेबी कृपलानी को ढूंढ़ रहे थे. उन्हें वहां पहचाने वाला कोई नहीं था. गांधी राजकुमार शुक्ल से कहते हैं, जाकर देखो, कहीं कृपलानी वहां तो नहीं! राजकुमार शुक्ल की कृपलानी से यह पहली मुलाकात है. जैसे-तैसे उनकी पहचान होती है. फिर, कृपलानी छात्रों के साथ उनकी परंपरागत तरीके से स्वागत करते हैं. फिर उन्हें एक बग्घी पर बैठा कर तब के ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज ले जाया जाता है.