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उच्च शिक्षा के लिए सरकार उदासीन

विडंबना. 11 लाख की महिला आबादी के लिए जिले में नहीं है कोई महिला कॉलेज जिले में लगभग 11 लाख महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए एक भी सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं है. जिला मुख्यालय स्थित जिला परिषद रोड में संबद्ध एसएन महिला महाविद्यालय है भी तो वो वित्त रहित शिक्षा नीति का रोना रो […]

विडंबना. 11 लाख की महिला आबादी के लिए जिले में नहीं है कोई महिला कॉलेज

जिले में लगभग 11 लाख महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए एक भी सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं है. जिला मुख्यालय स्थित जिला परिषद रोड में संबद्ध एसएन महिला महाविद्यालय है भी तो वो वित्त रहित शिक्षा नीति का रोना रो रही है. जिस पर लाखों महिलाओं की उच्च शिक्षा का दायित्व है. ऐसे में महिलाओं की उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए सरकार कितनी गंभीर है. जिले से बेहतर उदाहरण और कोई नहीं है.
सुपौल : नारी सशक्तिकरण, महिला उत्थान, महिलाओं की शिक्षा व अन्य महिलाओं के हित में उठाये गये जुमले, अक्सर राजनीतिक गलियारों में गूंजते हैं. खास कर चुनाव के समय तो महिलाओं के उत्थान की बात तो अमूमन सभी पार्टियां करती है, लेकिन यथार्थ की कसौटी पर इन जुमलों को तौला जाय तो हकीकत कुछ और ही होता है.
सारे जुमले केवल राजनीति से प्रेरित लगते हैं. धरातल पर ऐसा कुछ परिलक्षित होता नजर नहीं आता है. उदाहरण के लिए जिला से बेहतर प्रमाण और कोई नहीं हो सकता. यह आश्चर्य नहीं तो क्या है कि जिले में लगभग 11 लाख के महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए एक भी सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं है. जिला मुख्यालय स्थित जिला परिषद रोड में संबद्ध एसएन महिला महाविद्यालय है भी तो वो वित्त रहित शिक्षा नीति का रोना रो रही है. जिस पर लाखों महिलाओं की उच्च शिक्षा का दायित्व है. ऐसे में महिलाओं की उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए सरकार कितनी गंभीर है. जिले से बेहतर उदाहरण और कोई नहीं है.
महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए नहीं हुआ अभी तक पहल : महिलाओं के स्मिता व उससे जुड़ी बातों की चर्चा पर डिबेट आम बात हो गयी है. नेता से लेकर सामाजिक साहुकार तक महिलाओं की दशा और दिशा की बात करने से गुरेज नहीं करते, लेकिन महिला की हित की बात तो किसी मंच पर उठाने की जेहमत भी कोई नहीं उठाता. सरकार से लेकर स्थानीय स्तर तक के नेता महिलाओं की उच्च शिक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. लेकिन किसी ने भी जिले की महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिये कभी कोई आवाज बुलंद किया है.
महिलाओं की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है जिलावासी : जिले की अधिकांश आबादी गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वालों की है. स्वभाविक है कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्राएं आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं हैं. ऐसे में यहां की महिलाओं को उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना संभव नहीं है. जिसके लिये शिक्षा ग्रहण करने का मात्र एक जरिया यहां पर संचालित विद्यालय व महाविद्यालय है. आम लोगों की महिलाओं की शिक्षा के प्रति कितनी गंभीरता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
स्थानीय व सामाजिक स्तर पर महिलाओं के उच्च शिक्षा के हित के लिए कभी भी किसी ने आवाज नहीं उठायी. शिक्षा को लेकर यहां के लोग कितने गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं की उच्च शिक्षा की बात तो दूर, पुरुष प्रधान समाज में छात्रों की उच्च शिक्षा के लिए अभी भी जिले में एक भी ऐसा महाविद्यालय नहीं है, जिसमें एमए की पढ़ाई होती हो.
उच्च शिक्षा को लेकर क्या है छात्राओं की राय : शिखा कुमारी स्थानीय एसएन महिला कॉलेज के बीए पार्ट टू में अध्ययनरत हैं. बताती है जब तक नारी शिक्षित नहीं होगी, तब तक राज्य व देश का विकास संभव नहीं है, नारी शिक्षा ही समाज में शांतिपूर्ण क्रांति ला सकती है. क्योंकि आधुनिक युग स्त्री जागृति का युग है. कहा, किसी देश की प्रगति वहां की महिलाओं की शिक्षा पर निर्भर करता है. इसलिये महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये बड़े पैमाने पर पहल की आवश्यकता है.
प्रतिभा की नहीं है कोई कमी
जिला मुख्यालय में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक मात्र एसएन महिला कॉलेज है. जो शुरू से ही वित्त रहित शिक्षा नीति का रोना रो रहा है. बावजूद उसके उसमें अध्ययनरत छात्राओं ने राज्य नहीं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. जबकि वित्त रहित शिक्षा नीति के कारण वहां छात्राओं को वो सुविधाएं नहीं मिल पाती थी, जो उन्हें मिलना चाहिये था. बावजूद यहां की छात्राओं में एनएसएस में रंजू कुमारी, रिचा सिंह, अंकिता चंद्रा, प्रियंका कुमारी, प्रिया कर्ण, रितु, सपना न जाने ऐसे कितने नाम हैं, जिन्होंने इसी विद्यालय में पढ़ कर जिले का नाम राज्य व राष्ट्र स्तर पर रोशन किया है. जिसमें एनसीसी में रिचा सिंह और एनएसएच में प्रियंका कुमारी भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति से भी सम्मानित हुई हैं. रितु और सपना ने स्वतंत्रता दिवस परेड में शामिल होकर जिले को गौरवान्वित किया है. इसके अलावा सोनी, खुशबू समेत दर्जनों छात्राओं ने देश के प्रमुख प्रांतों में जाकर अपनी प्रतिभा का परचम लहराया.
आकंड़े बयां करती है हकीकत
मालूम हो कि 14 मार्च 1991 को सहरसा से अलग होकर अस्तित्व में आया सुपौल जिले की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसर 22 लाख 29 हजार 76 है. जिसमें पुरुषों की आबादी 11 लाख 55 हजार 283 है, जबकि महिलाओं की संख्या 10 लाख 73 हजार 793 है. हैरत की बात है कि लगभग 11 लाख की महिला आबादी के बावजूद जिला ही नहीं बल्कि सुपौल लोकसभा क्षेत्र में एक भी सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं है, जबकि लोकसभा क्षेत्र में जिले के पांच विधानसभा सुपौल, पिपरा, त्रिवेणीगंज, छातापुर, निर्मली व किसनपुर के अलावा मधेपुरा जिला का सिंहेश्वर विधानसभा भी इसी लोकसभा क्षेत्र में आता है. शिक्षा के बेहतरी के लिए राजनीतिक स्तर पर भले ही लाख दावे किये जाते हो, लेकिन हकीकत यही है कि महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए यहां एक भी सरकारी महाविद्यालय नहीं है.
प्रतिक्रिया व्यक्त करती छात्राएं
प्रीति गुप्ता स्थानीय महिला कॉलेज में ही राजनीतिक शास्त्र से बीए पार्ट टू की छात्रा कहती हैं. देश की आजादी को लगभग 70 वर्ष हो गये, लेकिन अभी भी हमें उच्च शिक्षा के लिए दूसरे जिले की शरण में जाना पड़ रहा है. जिसकी वजह से कई तरह की परेशानी होती है, आने जाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
अफसोस है कि इतनी बड़ी महिला आबादी रहने के बावजूद जिले में एक भी सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं है. एक है भी तो वहां पठन-पाठन व अन्य संसाधनों का अभाव है. बताती है कि सरकार जिले की महिलाओं के उच्च शिक्षा के प्रति बिल्कुल गंभीर नहीं है. ऐसा चलता रहा तो यहां की महिलाएं घर का सिर्फ खाना बनाने के लिए रह जायेगी.
राधा कुमारी बताती हैं आर्थिक विपन्नता व यहां कोई सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं रहने के कारण मैं अपनी पढ़ाई सहरसा के बनवारी शंकर सिमराहा महाविद्यालय में अर्थशास्त्र से बीए पार्ट वन में अध्ययनरत हूं. सदर प्रखंड के वीणा बभगनगामा की रहने वाली राधा कहती हैं सहरसा पढ़ाई के लिए इसलिये जाना पड़ा. यदि सुपौल में सरकारी महिला महाविद्यालय होता तो शायद मैं भी यहां रह कर अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरा कर सकती थी.
रंजना कुमारी कभी सर्व नारायण सिंह कॉलेज सहरसा से इंटर का डिग्री प्राप्त कर चुकी रंजना बताती है कि वर्तमान में वह अपने ससुराल सदर प्रखंड के बसबि‍ट्टी में रहती है. पारिवारिक रोजी-रोटी के लिए वे वर्तमान में निजी विद्यालय में शिक्षण का कार्य कर रही हैं. लेकिन यहां उच्च शिक्षा के लिए कोई सरकारी महिला महाविद्यालय नहीं रहने के कारण अपनी पढ़ाई को बीच में ही रोक देना पड़ा.
प्रसन्ना कुमारी मधेपुरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र से एमए कर रही बताती हैं कि सुपौल जिला महिलाओं की शिक्षा में पिछड़ा हुआ है. आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद महिलाओं की शिक्षा में कोई सुधार नहीं है. जिले में किसी भी कॉलेज में एमए की पढ़ाई नहीं होने से मुझे मधेपुरा जाना पड़ा. मधेपुरा में रह कर पढ़ाई करना परिवार की आर्थिक हालत नहीं है. वहां रहकर पढ़ाई करने में काफी खर्च पड़ रहे हैं. रहने से लेकर खाने पीने का सामान खरीदना पड़ता है जो हम अपने घर पर रहकर पढ़ाई करती तो यह खर्च बच जाता. बावजूद एमए की डिग्री की मंशा से वहां गयी.

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