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अब हाईवे किनारे नहीं मिलेगी शराब, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया बैन

नयी दिल्ली: अब राष्ट्रीय राजमार्ग और स्टेट हाइवे के किनारे आपको शराब नहीं मिलेगी. शराब की दुकानों की दूरी 500 मीटर से घटाकर 220 मीटर कर दी गयी है. उच्चतम न्यायालय ने राजमार्गों के किनारे 20,000 से अधिक की आबादी वाले क्षेत्रों में शराब की दुकानों की दूरी को 500 मीटर से घटाकर 220 मीटर […]

नयी दिल्ली: अब राष्ट्रीय राजमार्ग और स्टेट हाइवे के किनारे आपको शराब नहीं मिलेगी. शराब की दुकानों की दूरी 500 मीटर से घटाकर 220 मीटर कर दी गयी है. उच्चतम न्यायालय ने राजमार्गों के किनारे 20,000 से अधिक की आबादी वाले क्षेत्रों में शराब की दुकानों की दूरी को 500 मीटर से घटाकर 220 मीटर कर दिया है .

न्यायालय ने कहा कि अन्य इलाकों में राष्ट्रीय और राज्यीय राजमार्गों के किनारे 500 मीटर तक की परिधि में शराब की दुकानों पर प्रतिबंध का उसका 15 दिसंबर का फैसला मान्य होगा. 500 मीटर की दूरी से छूट सिक्किम, मेघालय और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाडी राज्यों को भी मिलेगी . इसके पीछे तर्क दिया गया कि अगर पहाड़ी इलाकों में इस नियम का पालन करेंगे तो 500 मीटर में तो पहाड़ आ जाएगा. इसी तरह गोवा जैसे समुद्री इलाकों में 500 मीटर में समुद्र आ जाएगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करना मुश्किल होता.
दरअसल पिछले साल 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था कि राष्‍ट्रीय राजमार्गों और स्‍टेट हाईवे से 500 मीटर तक शराब की दुकानें नहीं होंगी. हालांकि उसमें यह भी साफ किया गया कि जिनके पास लाइसेंस हैं उनके खत्म होने तक या 31 मार्च 2017 तक जो पहले हो, इस तरह की दुकानें चल सकेंगी. यानी एक अप्रैल 2017 से हाईवे पर इस तरह की दुकानें नहीं होंगी.
सरकार के शराब बेचने का विरोध
कई राज्यों में शराबबंदी को लेकर माहौल बना है. बिहार के बाद कई राज्यों में इस पर खुलकर बहस हो रही है. झारखंड छत्तसीगढ़ जैसे राज्यों में भी इस पर चर्चा हो रही है. कई राज्यों में सरकार शराब बेचने का काम हाथ में ले रही है. बिलासपुर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की युगल पीठ ने राज्य में शराबबंदी और सरकार द्वारा शराब बेचने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका खारिज कर दी है.
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सतीश चन्द्र वर्मा ने बताया छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा शराब बेचने को सरकार का नीतिगत निर्णय मानते हुए कहा कि यह हस्तक्षेप योग्य नहीं है. न्यायालय ने नीतिगत निर्णय को आधार बनाते हुए याचिका खारिज कर दी. वर्मा ने बताया कि रायपुर की ममता शर्मा सहित दो अन्य समाजसेवियों ने राज्य में शराबबंदी और सरकार द्वारा शराब बेचने को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में दायर की थी.
याचिका में कहा गया था कि सरकार का काम पब्लिक हेल्थ और सोशल वेलफेयर का ध्यान रखना है. राज्य सरकार मादक पदार्थों पर नियंत्रण रखने के बजाय उन्हें बढावा दे रही है और सरकारी निगम बनाकर शराब की दुकानें संचालित करने जा रही है, जो पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 47 के विपरीत है.
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के आबकारी व अन्य विभागों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। शासन की ओर से आए जवाब में इसे सरकार का नीतिगत निर्णय बताया गया था. अधिवक्ता वर्मा ने बताया कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने पूर्व में ही फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज शुक्रवार को न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश टी बी राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की युगल पीठ ने फैसला सुनाते हुए इसे सरकार का नीतिगत निर्णय माना और इस आधार पर याचिका खारिज कर दी .
31 मई तक शराब का स्टॉक बिहार से बाहर निकालें
अचानक शराब बंदी के बाद कारोबारियों ने सुप्रीम कोर्ठ में याचिका दायर कर वक्त मांगा. उन्होंने कहा कि अचानकर इस फैसले के कारण उन्हें अपना स्टॉक बाहर निकालने का मौका नहीं मिला. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 31 मई तक बिहार से शराब का सारा स्टॉक निकालने की इजाजत दी. उन्होंने तीन महीने का वक्त मांगा था सरकार ने तर्क दिया कि शराबबंदी के संकेत पहले ही दे दिये गये थे 30 को प्रस्ताव पास किया गया . कारोबारियों के पास 30 अप्रैल तक का वक्त था . अब कोर्ट ने कारोबारियों को दो महीने का वक्त दिया है.

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