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हर नक्‍सली को पढ़नी चाहिए यह खबर, आतंक के बाद आध्‍यात्‍म से शांति तलाशते गायक गदर

एक पुरानी कहावत है कि जवानी में तो सभी क्रांतिकारी होते हैं, लेकिन बुढापा आने पर भगवान की याद आने लगती है या ब्राह्मणवादी होकर परलोक सुधारने में लग जाते हैं. ये कहावत माओवादियों के आदर्श क्रांतिकारी गायक गदर पर भी सटीक बैठती है. खबरें आ रही है कि कभी सार्वजनिक मंच पर लाल सलाम […]

एक पुरानी कहावत है कि जवानी में तो सभी क्रांतिकारी होते हैं, लेकिन बुढापा आने पर भगवान की याद आने लगती है या ब्राह्मणवादी होकर परलोक सुधारने में लग जाते हैं. ये कहावत माओवादियों के आदर्श क्रांतिकारी गायक गदर पर भी सटीक बैठती है. खबरें आ रही है कि कभी सार्वजनिक मंच पर लाल सलाम जैसा गाना गाने वाले गायक गदर अब मंदिरों के चौखटों पर मत्‍था टेकते नजर आ रहे हैं.

तेलंगाना आंदोलन के क्रांतिकारी गदर कोई कई मंदिरों के दरवाजे पर देखा गया है. वे मंदिर-मंदिर घुमकर अच्‍छी वर्षा के लिए प्रार्थना करते देखे गये हैं. साथ ही लोगों से शांति की राह अपनाने और विवेकानंद के आदर्शों को अपनाने की अपील भी कर रहे हैं. वे एक सच्‍चे हिन्‍दू कार्यकत्ता के रूप में भी कार्य करने की इच्‍छा रखने लगे हैं. मतलब धर्म प्रचारक.

झारखंड पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ उग्रवादियों का गढ़ माना जाता है. यहां आये दिन उग्रवादी ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं जिससे सामान्‍य जन जीवन भी प्रभावित होता है. कई इलाकों का विकास नक्‍सलियों की वजग से रूका हुआ है. नक्‍सलवाद हमेशा से देश के लिए एक खतरा रहा है. ऐसे में नक्‍सलियों को अपने भविष्‍य की तसवीर गायक गदर में देखनी चाहिए.

यू ट्यूब पर गदर का एक गीत ‘लाल सलाम’

https://www.youtube.com/watch?v=jpGum60ZBcM

पत्रकार अजय प्रकाश ने क्रांतिकारी गदर पर एक लेख लिया है, जिसका हेडि़ग है – पंडितो और ईश्‍वर की शरण में क्रांतिकारी गायक गदर. लेख में उन्‍होंने लिखा है कि‍ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के समर्थक कहे जाने वाले सांस्कृतिक संगठन जन नाट्य मंडली के संस्थापक क्रांतिकारी गायक गदर आजकल मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. वे भगवान से अच्छी बारिश और लोगों के दुःख दूर करने की मन्‍नत मांग रहे हैं. वे छात्रों को वेद पढ़ने और विवेकानंद के रास्ते पर चलने का उपदेश दे रहे हैं और जगह-जगह मंदिरों में पुजारी के आगे झोली फैलाकर ब्राह्मणवाद के एक सच्चे हिन्दू कार्यकर्ता बनने के लिए आशीर्वाद मांग रहे हैं.

लेख में है कि पिछले 5 दशकों से हजारों वामपंथी और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत रहे 67 वर्षीय क्रांतिकारी गायक गदर का वामपंथी आंदोलनों से मोहभंग की खबरें तो कुछ वर्ष पुरानी हैं लेकिन मंदिर-मंदिर मत्था टेकने की जानकारी नयी है. आंदोलनकारियों और वामपंथी कैडरों के बीच क्रांतिकारी गीतों और व्यवस्था विरोधी सांस्कृतिक आंदोलन के अगुआ माने जाने वाले गदर का यह व्यक्तित्व परिवर्तन बहस का विषय बना हुआ है. कैडरो और वामपंथ समर्थकों में सवाल यह भी है कि जिस ब्राह्मणवाद, पुरोहितगिरी, सामंतवाद और ईश्वरीय अवधारणा के खिलाफ सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने में गदर ने अपना जीवन लगाया, उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर कौन सी निराशा उन्हें मंदिरों और पुरोहितों के चौखट तक ले गयी?

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