नयी दिल्ली : अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पंजाब को छोड़ बाकी के चार राज्यों में मिली बड़ी कामयाबी के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राष्ट्रपति चुनाव में बाजी मारने के लिए भी फुलप्रूफ प्लान तैयार किया है. उसे इस बात की उम्मीद है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और इसके बाद उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में मिली जीत के बाद वह राष्ट्रपति चुनाव में भी आसानी से जीत हासिल कर लेगी और अपने मनमुताबिक राष्ट्रपति बनवा सकती है. यही वजह है कि अपने तीन सांसद मनोहर पर्रिकर, योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य को क्रमश: मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाये जाने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव होने तक सांसद के तौर पर बनाये रखने की रणनीति तैयार की है. हालांकि, तीनों राज्यों में नयी जिम्मेदारियां उठा रहे ये नेता इस समय संसद के सदस्य तो हैं, लेकिन इन तीनों सांसदों को संसद सदस्यता जल्द ही छोड़नी होगी.
वहीं, कहा यह भी जा रहा है कि आगामी छह महीने के अंदर राष्ट्रपति चुनाव होना तय है. मौजूदा राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इसी साल 24 जुलाई को समाप्त हो जायेगा. राष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना जून में जारी की जा सकती है. ऐसे में राष्ट्रपति पद की गरिमा और महत्ता को समझते हुए भाजपा ने नयी रणनीति बनायी है. माना जा रहा है कि जुलाई में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव से पहले अब ये सांसद संसद सदस्यता नहीं छोड़ेंगे.
नियमानुसार, इन तीनों भाजपा नेताओं को पद पर नियुक्ति के छह महीने के भीतर चुनाव जीतना अनिवार्य है. यदि ये तीनों नेता राष्ट्रपति चुनाव तक सांसद बने रहते हैं, तो इन्हें छह महीने के बाद सितंबर तक विधानसभा के लिए उपचुनाव जीतना होगा. भाजपा नेताओं का कहना है कि वह अपने इन सांसदों को राष्ट्रपति चुनाव तक इस्तीफा नहीं देने देगी. इसके अलावा, भाजपा कुछ और बातों पर भी ध्यान दे रही है, ताकि जो थोड़ी बहुत कसर है, उसे भी पूरा कर लिया जाये. भाजपा नेताओं का कहना है कि अब इन चुनावों के बाद पार्टी ने अपना पूरा ध्यान राष्ट्रपति चुनाव पर केंद्रित किया है. कहा जा रहा है कि भाजपा हालिया विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाना चाह रही है.
इस समय योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के पास दो विकल्प हैं. अगर वे चाहें, तो विधानसभा का उप-चुनाव लड़ सकते हैं या फिर विधान परिषद में भी चुने जा सकते हैं. योगी आदित्यनाथ से पहले अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही विधान परिषद की सदस्यता के साथ मुख्यमंत्री पद पर रहे थे. यहां यह भी साफ है कि राज्य के इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था.
हमारे देश में राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के ज़रिये होता है, और राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल में निर्वाचित सांसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य होते हैं. इस निर्वाचक मंडल में 4,120 विधायकों और 776 निर्वाचित सांसदों सहित कुल 4,896 मतदाता होते हैं. जहां लोकसभा अध्यक्ष निर्वाचित सदस्य होने के नाते मतदान कर सकते हैं, वहीं लोकसभा में मनोनीत दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य और राज्यसभा में 12 मनोनीत सदस्य मतदान नहीं कर सकते.
विधायकों के मत का मूल्य उस राज्य के आकार पर निर्भर करता है, जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन सांसदों के मत का मूल्य समान रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता. निर्वाचक मंडल के कुल मतों का मूल्य 10,98,882 होता है. चुनाव आयोग के एक अधिकारी का कहना है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र में सत्तासीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास 75,076 मतों की कमी थी, लेकिन अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के बाद यह फासला घटकर 20,000 मतों पर आ जाएगा. अगर बीजेपी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) के 134 और बीजू जनता दल (बीजद) के 117 विधायकों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहती है, तो वह अपनी पसंद के व्यक्ति को आसानी से राष्ट्रपति बना सकती है.
इस समय राज्यसभा में भाजपा के 56 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस 59 सदस्यों के साथ यहां सबसे बड़ी पार्टी है. शनिवार की जीत के बाद अगले साल बीजेपी राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी और एनडीए के कुल सदस्यों की संख्या 100 के करीब हो जाएगी. हालांकि, तब भी वह संसद के उच्च सदन में बहुमत से दूर ही रहेगी.