पटना : गरमी बढ़ने के साथ ही चिकन पॉक्स का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है. बच्चों के साथ वृद्ध जन भी इसके शिकार हो रहे हैं. पीएमसीएच में हर दिन औसतन चिकन पॉक्स के एक दर्जन से अधिक मरीज उपचार और डॉक्टरी परामर्श के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं, अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार ज्यादातर मरीज स्लम से आ रहे हैं. चिकन पॉक्स पीड़ितों में तीन से 12 साल के बच्चों की संख्या ज्यादा है.
तेजी से फैलता है इसका संक्रमण : यह रोग वैरिसेला वायरस के संक्रमण से होता है. वहीं जेनरल फिजिसियन व डिप्सी के सचिव डॉ आनंद शंकर ने बताया कि इसका वायरस दो से 10 वर्ष के बच्चों को तेजी से अपना निशाना बनाता है. इसलिए इस उम्र के बच्चे चिकन पॉक्स के ज्यादा शिकार होते हैं. उन्होंने बताया कि एक बार यह रोग होने और इसका पूरा इलाज लेने के बाद इसके दोबारा होने की आशंका कम हो जाती है. 50 वर्ष से अधिक आयुवाले लोगों को कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह बीमारी फिर से हो सकती है.
इस तरह करें बचाव : स्किन विशेषज्ञ डॉ विकास शंकर ने बताया कि गरमी में यह बीमारी तेजी से फैलती है. ऐसे में बचने के लिए बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण करवाना चाहिए. वैक्सीनेशन दो डोज में दी जाती है. पहली डोज बच्चे के 12 से 15 माह के होने पर और दूसरी डोज चार से पांच साल की उम्र में दी जाती है. चिकन पॉक्स में मरीज को खट्टी, मसालेदार, तली-भुनी और नमकवाली चीजें खाने के लिए न दें. मरीज के आसपास नीम के पत्ते भी रख सकते हैं, क्योंकि इससे कीटाणु मर जाते हैं. इसके अलावा मरीज को खाने में नमकवाली और गरम चीजें देने के बजाय राबड़ी व ठंडे तरल पदार्थ दे सकते हैं.
चिकन पॉक्स के प्रमुख लक्षण : सिरदर्द, बदन दर्द, बुखार, कमजोरी, भूख नहीं लगना, गले में सूखापन और खांसी होने के बाद दूसरे दिन से ही त्वचा पर फुंसियां उभरने लगती हैं. चिकन पॉक्स में तेज बुखार आता है. त्वचा पर गुलाबी रंग के दाने निकल आते हैं. दाने मुख्यत: शरीर के मध्य भाग, सिर, गरदन, पेट, पीठ, छाती आदि पर निकलते हैं. इनमें पानी जैसा द्रव्य भर जाता है, जो बूंद की तरह दिखाई देता है.
मरीज को रखें अलग कमरे में : चिकन पॉक्स होने पर मरीज को अलग कमरे में रखें. उसके द्वारा इस्तेमाल की गयी चीजों को घर के अन्य लोग प्रयोग में न लाएं. देखभाल करनेवाले लोग मुंह पर मास्क लगा कर रखें. इस समस्या में डॉक्टर मरीज की स्थिति देखने के बाद ही उसे नहाने के निर्देश देते हैं. इस दौरान रोगी को ढीले और सूती कपड़े पहनाएं व इन्हें रोजाना बदल दें. यह संक्रामक रोग है, इसलिए संक्रमण से बचने के लिए एहतियात बरतें.