28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

VIDEO : होली में शहरों से गायब हुआ फाग, गांवों में आज भी जिंदा है

पटना : रास रंग, उल्लास, जड़ता और ठहराव को तोड़कर जीवन में उमंग रस भरने वाले त्योहार होली को वर्तमान में लोग ढूंढ रहे हैं. कहीं खो सी गयी है होली. सामूहिक उत्साह और उल्लास के प्रतीक इस त्योहार को तकनीकी और सूचना क्रांति की ऐसी नजर लगी कि मिट्टी की सोंधी महक वाले फाग […]

पटना : रास रंग, उल्लास, जड़ता और ठहराव को तोड़कर जीवन में उमंग रस भरने वाले त्योहार होली को वर्तमान में लोग ढूंढ रहे हैं. कहीं खो सी गयी है होली. सामूहिक उत्साह और उल्लास के प्रतीक इस त्योहार को तकनीकी और सूचना क्रांति की ऐसी नजर लगी कि मिट्टी की सोंधी महक वाले फाग और फगुआ कहां बिला गये पता नहीं? होली का त्योहार प्रेम की वह रसधारा है, जिसके रास्ते रास रंग के जरिये पूरा समाज सरोबार होता है. कानों में ढोल, ताशा, मजीरा और पखावज की वह गूंज अब बहुत कम सुनने को मिलती है. हां, गांवों में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो पारंपरिक होली को आज भी राग-रंग, हंसी ठिठोली, लय, आनंद और राग रंग के साथ रास रंग के नजरिये से देखते हैं. वैसे ही लोगों में से एक हैं बक्सर के सदर विधायक संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी. उन्होंने आज भी होली की आत्मा को ढोलक और ताल के माध्यम से बचाने की कोशिश जारी रखी है. वह कहते हैं कि सीडी और मोबाइल के साथ कंप्यूटर और टीवी में वह मजा कहां है जो आज भी झाल और मजीरे में है. शायद यही कारण है कि हर साल होली में वह फाग जमकर गाते हैं.

होली में फाग का महत्व है

होली में फाग का विशेष महत्व है. इसमें राधा कृष्ण और भगवान के साथ भक्त का सीधा संवाद होता है. हंसी होती है. एक जगह समाज के सभी तबके के लोग बैठकर फाग गाते हैं. ना कोई छोटा होता है, ना कोई बड़ा होता है. बस सबकुछ भूलाकर इस पर्व में व्यक्ति और समाज एकाकार होता है. वैदिक काल में होली के पर्व को नवान्नेष्टि कहा गया है. इस पर्व में अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो अकबर, जोधाबाई, शाहजहां और नूरजहां ने भी होली खेला और इसका भरपुर आनंद दिया. होली सद्भाव और समरसता के साथ आपसी भाईचारे का एक ऐसा पर्व है, जहां सिर्फ और सिर्फ मस्ती और आनंद के लिये जगह होती है.



वर्तमान में होली की पहचान खत्म

वर्तमान में होली मनाने के तौर तरीकों के बारे में पूछने पर बिहार राष्ट्र भाषा परिषद के अधिकारी शिव कुमार मिश्रा कहते हैं कि अब वह बात कहां रही. फिल्मी होली और गीतों ने पूरी तरह से होली के लोकगीतों और फाग को लुप्त सा कर दिया है. अब कानों में अश्लील और द्वअर्थी गाने गुंजते हैं. इंटरनेट और कैफे से निकली युवा पीढ़ी को फाग और राधा कृष्ण की होली के बारे में क्या पता. पहले होली पर मुहल्ले के चौपाल पर लोग जमा होते थे. फिर फाग गाया जाता था. अब तो कमर मटकाने और सीडी पर ऊंची आवास में गाना गाने को लोग होली कहते हैं. मिट्टी उसकी महक और होली की परंपरागत शैली कहीं दम तोड़ रही है. वे कहते हैं कि हो सकता है गांवों में आज भी कुछ लोग इसे बरकरार रखे हों और होली में फाग गाते हों.

अब नहीं रही वह होली

गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि होली का नाम सुनते ही, अचानक वह दिन आंखों के सामने तैर जाते हैं. होली की भक्ति रस में डूबे शानदार गीत. टेसू के रंग, गुलाल की मस्ती. अब तो गुजरे जमाने की बात है. बसंत पंचमी शुरू होते ही अश्लील गाने सर चढ़कर बोलने लगते हैं. हालांकि आज भी फाग का अपना एक अलग महत्व है. उसे सुनकर एहसास होता है कि असली होली वह है. गांव की चौपालों में ढोलक, झाल, मजीरा और साथ में झूमती मंडली. अब तो ना भितर रंग है, न बाहर रंग है. होली को लेकर स्व. हरिवंश राय बच्चन कहते हैं. भाव, विचार, तरंग अलग है. ढं अलग है, जिसको चाहो उसे वर लो, होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें