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मौजूदा समय में लुप्त होता जा रहा है राष्ट्रधर्म

मुजफ्फरपुर: रामेश्वर कॉलेज के संस्कृत विभाग में बुधवार को दो दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी शुरू हुई. इसका उद्घाटन बीआरए बिहार विवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ इंद्रनाथ झा ने रामेश्वर बाबू की प्रतिमा पर माल्यर्पण कर किया. कहा, संस्कृत साहित्य में मुख्य रूप से चारों वेदों के साथ-साथ धर्मशास्त्रों, स्मृतियों, उपनिषदों व पुराणों का जिक्र किया गया […]

मुजफ्फरपुर: रामेश्वर कॉलेज के संस्कृत विभाग में बुधवार को दो दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी शुरू हुई. इसका उद्घाटन बीआरए बिहार विवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ इंद्रनाथ झा ने रामेश्वर बाबू की प्रतिमा पर माल्यर्पण कर किया. कहा, संस्कृत साहित्य में मुख्य रूप से चारों वेदों के साथ-साथ धर्मशास्त्रों, स्मृतियों, उपनिषदों व पुराणों का जिक्र किया गया है.

कहा प्राचीन ऋषि मुनियों ने राष्ट्रधर्म काे सर्वोपरि माना. संस्कृत कवियों में महाकवि कालीदास, वाल्मीकि, व्यास आदि ने रामायण, महाभारत, अभिज्ञान शकंतुलम, मेघदूत, उत्तम चरित्र, कुमार संभवम, रघुवंशम आदि रचनाओं में अनेक श्लाकों व रचनाओं का वर्णन किया है. कहा कि राजा दिलीप ने रक्षण और गोरक्षा के लिए अपना शरीर शेर को समर्पित कर दिया था.

लेकिन मौजूदा समय में राष्ट्रधर्म लुप्त होता जा रहा है. विशिष्ट अतिथि प्रो अमरेंद्र ठाकुर ने कहा कि राष्ट्र के लिए पूर्ण समर्पण और प्रजा पालन के लिए सर्वस्व त्याग करना ही राष्ट्रधर्म कहलाता है. संगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ नरेंद्र नारायण सिंह ने की. इस मौके पर संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो महेश्वर प्रसाद सिंह, प्रो सुरेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ उमाशंकर प्रसाद सिंह, प्रो रमाकांत झा रमण, प्रो रेणु श्रीवास्तव मौजूद थे. संचालन डॉ ब्रह्मचारी व्यासनंदन शास्त्री व धन्यवाद ज्ञापन डॉ उमेश प्रसाद सिंह ने किया.

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