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उच्च शिक्षा की जरूरतें

सार्त्र, फूको, देरिदा जैसे विख्यात विद्वानों का संबंध उच्च पेरिस-स्थित शिक्षण की प्रसिद्ध संस्था इकॉले नोरमेल सुपीरियर से रहा है. अगर शिक्षण की गुणवत्ता के मामले में किसी भारतीय संस्था को फ्रांस के इस संस्थान के दर्जे का माना जाये, तो यह हमारे लिए गौरव की बात है. बंेगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) […]

सार्त्र, फूको, देरिदा जैसे विख्यात विद्वानों का संबंध उच्च पेरिस-स्थित शिक्षण की प्रसिद्ध संस्था इकॉले नोरमेल सुपीरियर से रहा है. अगर शिक्षण की गुणवत्ता के मामले में किसी भारतीय संस्था को फ्रांस के इस संस्थान के दर्जे का माना जाये, तो यह हमारे लिए गौरव की बात है. बंेगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) को टाइम्स हायर एजुकेशन रैकिंग (2017) में दुनिया के दस श्रेष्ठ शिक्षण संस्थाओं में शुमार किया गया है. इसमें आइआइएससी को शिक्षण, शोध, साख और विश्वदृष्टि के मामले में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इकॉले नोरमेल सुपीरियर की श्रेणी में रखा गया है.
लेकिन, राष्ट्रीय गौरव का यह क्षण विडंबनाओं से खाली नहीं है. मिसाल के तौर पर, पिछले साल टाइम्स हायर एजुकेशन ने अपनी रैंकिंग में आइआइटी-गोहाटी और पुणे विश्वविद्यालय को क्रमशः 14 वें और 18 वें स्थान पर रखा था. इस साल की रैंकिंग में यह दोनों संस्थान दुनिया के श्रेष्ठ 20 संस्थानों में जगह नहीं पा सके हैं. शिक्षण और शोध की गुणवत्ता का अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना तो जरूरी है ही, इस गुणवत्ता को लंबे समय तक बनाये रखना भी महत्वपूर्ण है. दूसरी बात भारत जैसे विकासशील देश में उच्च शिक्षा की विशिष्ट प्राथमिकताओं की है. यह एक स्वीकृत तथ्य है कि भारत में वंचित वर्गों के लिए राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में शामिल होने का रास्ता उन्हें हासिल उच्च शिक्षा के अवसरों से ही खुलता है.
इस मोर्चे पर स्थितियां अभी संतोषजनक नहीं हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार देश में निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 225 है और इनमें किसी में आरक्षण के नियम के पालन की बाध्यता नहीं है. दूसरे, स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में दर्ज है कि उच्च शिक्षा के मामले में अनुसूचित जाति के छात्रों का सकल नामांकन प्रतिशत 15.1 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के छात्रों का 11 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 21.1 प्रतिशत है. उच्च शिक्षा के मामले में मौजूद सामाजिक विषमता को दूर किया जाना चाहिए. तीसरी बात उच्च शिक्षा के ढांचे में विस्तार की है.
देश में कॉलेज जाने की उम्र (18-23 वर्ष) के लगभग 14 करोड़ व्यक्ति हैं. प्रति एक लाख लोगों पर देश में औसतन 25 कॉलेज ही हैं. भारत उच्च शिक्षा में सकल नामांकन प्रतिशत के मामले में चीन, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका की तुलना में बहुत पीछे है. ढांचागत अभाव की यह स्थिति भी फौरी तौर पर दूर होनी चाहिए.

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