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अध्यात्म और धर्म एक दूसरे से परे

योगदा सत्संग सोसाइटी के 100 साल पीएम ने जारी किया विशेष डाक टिकट, कहा ब्यूरो नयी दिल्ली : योगदा सत्संग सोसाइटी संगठन के 100 साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है. 1917 में स्वामी परमहंस योगानंद ने योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की थी. अध्यात्म को धर्म से जोड़ना गलत है. दोनों […]

योगदा सत्संग सोसाइटी के 100 साल
पीएम ने जारी किया विशेष डाक टिकट, कहा
ब्यूरो
नयी दिल्ली : योगदा सत्संग सोसाइटी संगठन के 100 साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है. 1917 में स्वामी परमहंस योगानंद ने योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की थी.
अध्यात्म को धर्म से जोड़ना गलत है. दोनों एक-दूसरे से काफी अलग हैं. योगदा सत्संग सोसाइटी के 100 साल पूरे होने पर विशेष डाक टिकट जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में ये बातें कहीं. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की शक्ति आध्यात्मिकता में है और योगी परमहंस योगानंद द्वारा दिखाया गया रास्ता मुक्ति में नहीं, बल्कि अंतर यात्रा में निहित है.
व्यक्ति की एक बार योगा में रुचि हो जाती है और वह उसे नियमित करने लगता है, तो वह आजीवन हिस्सा बन जाता है. लेकिन दुर्भाग्य है कि कुछ लोग अध्यात्म को धर्म से जोड़ देते हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा, 65 साल पहले एक शरीर हमारे पास रह गया और सीमित दायरे में बंधी एक आत्मा युगों की आस्था बन कर फैल गयी. 95 फीसदी लोग इस महान योगीजी की आत्मकथा को पढ़ सकते हैं, किन्तु क्या कारण होगा कि बिना भारत देश और यहां के पहनावे के बारे में जाने दुनिया भर के लोग इस पुस्तक को अपनी मातृभाषा में लिख कर जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं. यह प्रसाद बांटने के सामान है, जिसे बांटने में आध्यात्मिक सुख की अनुभूति होती है. एक ऐसा वर्ग भी है, जो यह मानता है कि जीवन में जो है सो है, कल को किसने देखा.
कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो मुक्ति चाहते हैं. लेकिन योगीजी की यात्रा को देखें, तो वहां अंतर यात्रा की चर्चा है. भीतर जाने की एक मंगल और अविरत यात्रा. इस यात्रा को सही गति व गंतव्य देने के लिए हमारे ऋषियों और मुनियों ने महान योगदान दिया है. इसी परंपरा को योगीजी ने आगे बढ़ाया है. उन्होंने कहा, कभी-कभी हठ योग को बुरा माना जाता है, लेकिन योगीजी ने इसकी सकारात्मक व्याख्या की है और क्रिया योग की तरफ प्रेरित किया है, जिसके लिए शरीर बल की नहीं, अपितु आत्मबल की आवश्यकता होती है. यह योगी जूते पहन कर मां भारती का स्मरण करते हुए इस दुनिया से जाना चाहते थे. पश्चिम में योग का संदेश देने के लिए निकल पड़े, लेकिन कभी भारत को नहीं भूले. प्रधानमंत्री ने कहा कि एक दिन पहले वह काशी में थे और आज उस महायोगी की बात कर रहे हैं, जिन्होंने गोरखपुर में जन्म लेकर अपना लड़कपन बनारस में संवारा. जब योगीजी ने अपना शरीर छोड़ा, उस दिन भी वे कर्मरत थे. भारत के राजदूत के सम्मान समारोह में व्याख्यान दे रहे थे. कपड़े बदलने में भी समय लगता है, लेकिन वे क्षण भर में चले गये. जहां गंगा, जंगल, हिमालय, गुफाएं और मनुष्य भी ईश्वर को पाने का स्वप्न देखती हैं, लेकिन मैं धन्य हू्ं कि मेरे शरीर ने उस मातृभूमि को स्पर्श किया.
उन्होंने कहा, स्वामी स्मरणानंद जी के प्रवचन के अंतिम शब्द ॐ शांति, शांति, शांति एक प्रोटोकॉल नहीं है, बल्कि एक तपस्या के बाद की गयी आकार की परिणिति का मुकाम है. तभी तो ॐ शांति, शांति, शांति, समस्त आशाओं और कल्पनाओं से परे आनंद देनेवाली समाधि का परमानंद है. मोदी ने कहा कि योगीजी के पूरे जीवन को देखिये. हम हवा के बिना रह नहीं सकते. हवा हर पल होती है, पर कभी हमें हाथ इधर ले जाना है, तो हवा कहती नहीं है, रुक जाओ मुझे जरा हटने दो, हाथ उधर फैलाना हो तो हवा कहती नहीं मुझे यहां बहने दो.
योगी जी ने अपना स्थान उसी रूप में हमारे आसपास समाहित कर दिया कि हमें एहसास होता रहे, लेकिन रुकावट कहीं नहीं आती है. सोचते हैं ठीक है आज यह नहीं कर पाते हैं, कल कर लेंगे. यह प्रतीक्षा, यह धैर्य बहुत कम व्यवस्थाओं और परंपराओं में देखने को मिलता है. खुद तो इस संस्था को जन्म देकर चले गये, लेकिन यह एक आंदोलन बन गया, आध्यात्मिक चेतना की निरंतर अवस्था बन गयी.
प्रधानमंत्री ने कहा, अगर संस्था का मोह होता तो व्यक्ति के विचार, प्रभाव और समय का इस पर प्रभाव होता. लेकिन जो आंदोलन कालातीत होता है, काल के बंधनों में बंधा नहीं होता.
अलग-अलग पीढ़ियां आती हैं, तो भी व्यवस्थाओं को न कभी टकराव आता है न कभी दुराव आता है. वे हल्के-फुल्के ढंग से अपने पवित्र कार्य को करते रहते हैं. योगी जी का बहुत बड़ा योगदान है कि एक ऐसी व्यवस्था देकर गये, जिसमें बंधन नहीं है तो भी जैसे परिवार का कोई संविधान नहीं है लेकिन परिवार चलता है. दुनिया आज अर्थजीवन और तकनीकि से प्रभावित है. इसलिए दुनिया में जिसका जो ज्ञान होता है, उसी तराजू से वह विश्व को तौलता भी है.
उन्होंने कहा : जब भारत की तुलना होती है तो जनसंख्या, जीडीपी, रोजगार- बेरोजगार के लेकर होती है. क्योंकि विश्व के वही मानक हैं, लेकिन भारत की एक दूसरी ताकत है, आध्यात्मिकता. देश का दुर्भाग्य है कि कुछ लोग अध्यात्म को भी धर्म मानते हैं. धर्म और अध्यात्म बहुत अलग हैं. भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी कहते थे कि भारत का आध्यात्मीकरण ही उसका सामर्थ्य है और ये प्रक्रिया निरंतर चलती रहनी चाहिए. इस अध्यात्म को वैश्विक फलक तक पहुंचाने का प्रयास हमारे ऋषि-मुनियों ने किया है. योग हमारी आध्यात्मिक यात्रा का एक द्वार है और कोई इसे अंतिम न माने. लेकिन दुर्भाग्य से धन बल की अपनी ताकत होती है और उसके कारण उसका भी व्यवसायीकरण हो रहा है.
योगदा सत्संग सोसाइटी संगठन के 100 साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है. 1917 में स्वामी परमहंस योगानंद ने योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की थी. प्रसिद्ध किताब आटोबायोग्राफी ऑफ योगी के लेखक परमहंस योगानंद ने क्रिया योग की शिक्षा के व्यापक प्रसार के लिए इसकी स्थापना की थी.
उन्होंने विदेशों में भारत के अध्यात्म को पहुंचाने में इनका अहम योगदान रहा है. बोस्टन में साइंस ऑफ रिलीजन विषय पर पहली संगोष्ठी को संबोधित किया और 1924 में क्रिया योग के प्रसार के लिए विश्व भ्रमण पर निकले. 1935 में भारत लौटे और उनके गुरु स्वामी युक्तेश्वर जी ने परमहंस की उपाधि दी. परमहंस योगानंद 1935 में महात्मा गांधी से मिलने वर्धा आश्रम गये. देश और विदेशों में अध्यात्म के प्रसार में उनका अहम योगदान रहा है. संगठन के 100 साल पूरे होने मंगलवार को विशेष डाक टिकट जारी किया गया. इस मौके पर स्वामी स्मरानंदा गिरी और स्वामी विश्वनंदा गिरी मौजूद थे.

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