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बैंकों के लिए वास्तविक चुनौती पैदा कर रहे फिन टेक स्टार्टअप्स!

भुगतान प्रक्रिया में अब तक नकदी की प्रधानता रही है. लेकिन, डिजिटल हो रही दुनिया और 1,000 व 500 के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद से ऑनलाइन भुगतान के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने में जुटी है. हालांकि, डिजिटल भुगतान में बैंकों की भूमिका भी बढ़ी है, लेकिन फिनटेक स्टार्टअप्स इस मामले में बैंकों से […]

भुगतान प्रक्रिया में अब तक नकदी की प्रधानता रही है. लेकिन, डिजिटल हो रही दुनिया और 1,000 व 500 के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद से ऑनलाइन भुगतान के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने में जुटी है. हालांकि, डिजिटल भुगतान में बैंकों की भूमिका भी बढ़ी है, लेकिन फिनटेक स्टार्टअप्स इस मामले में बैंकों से कही बहुत आगे निकल चुके हैं.
देखा जा रहा है कि छूट और अन्य सहूलियतें मुहैया कराते हुए फिनटेक स्टार्टअप्स व्यापक तादाद में ग्राहकों को अपने साथ जोड़ रहे हैं, जिससे बैंकों के सामने चुनौती पैदा हो रही है. आज के स्टार्टअप आलेख में जानते हैं फिनटेक स्टार्टअप्स की ओर से बैंकों को मिल रही इस तरह की चुनौती के बारे में …
डाटा & फैक्ट्स
डाटा एंड एनालिटिक्स ट्रेंड्स
वर्ष 2017 डाटा, एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिहाज से अहम रहने की उम्मीद है. माना जा रहा है कि कैपिटल मार्केट में ये बिजनेस लीडर की भूमिका निभा सकते हैं और डिजिटल तकनीकों के इस्तेमाल से जहां एक ओर लागत कम होगी, वहीं बेहतर सर्विस मुहैया करायी जा सकेगी. जानते हैं इस कारोबार से संबंधित कुछ प्रमुख आंकडों के बारे में :
13 फीसदी की दर से बढोतरी जारी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है बिग डाटा मार्केट में नॉन-रिलेशनल प्लेटफॉर्म्स में, आगामी पांच वर्षों के दौरान, फोरेस्टर की एक रिपोर्ट के मुताबिक.
25 फीसदी की दर से वृद्धि होने की उम्मीद जतायी गयी है कि एनओएसक्यूएल सेगमेंट में, आगामी पांच वर्षों के दौरान.
3.3 अरब डॉलर रहा था डाटा वर्चुअलाइजेशन इंडस्ट्री का कारोबार वर्ष 2015 में, फोरेस्टर की रिपोर्ट के मुताबिक.
6.7 अरब डॉलर का कारोबार होने की उम्मीद जतायी गयी है फोरेस्टर की एक रिपोर्ट में डाटा वर्चुअलाइजेशन इंडस्ट्री के कारोबार वर्ष 2021 तक.
200 से ज्यादा दुनियाभर की बडी कंपनियां इंटेलिजेंट एप्स और बिग डाटा एनालिटिक्स के पूरे टूलकिट का इस्तेमाल करेंगी वर्ष 2018 तक, गार्टनर की एक रिपोर्ट के मुताबिक.
भुगतान सिस्टम एक प्रकार से घरों में होनेवाले प्लंबिंग यानी पाइप लाइन की तरह है. इसके जरिये सभी को अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाता है. इसके बारे में केवल तब ही चर्चा होती है, जब यह सिस्टम काम नहीं करता है. दरअसल, बीते आठ नवंबर को केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद से इस सिस्टम के बारे में ज्यादा चर्चा होने लगी है. हालांकि, नोटबंदी ने भुगतान की प्रक्रिया को प्रभावित जरूर किया, लेकिन इसके नये तरीके भी विकसित हुए. धीरे-धीरे पैदा हुई नकदी की इस समस्या ने लोगों की परेशानी बढा दी है.
इसका एक पहलू यह है कि बैंकों के प्रभुत्व वाले कार्ड-आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर सभी लोगों तक भुगतान की प्रक्रिया को हैंडल नहीं कर सकते. एक दिक्कत यह भी है कि देशभर में अनुमानित 1.3 करोड खुदरा विक्रेताओं के करीब 10 फीसदी तक ही अब तक इसकी पहुंच हो पायी है. दूसरा पहलू यह है कि मोबाइल-आधारित भुगतान सेवा का दायरा बेहद सीमित है, जिसकी पहुंच 30 करोड लोगों तक ही है. छोटे शहरों और गांवों में डाटा की कम स्पीड और सीमित आबादी की ऑनलाइन पहुंच के कारण भी डिजिटल भुगतान की राह में बाधाएं बरकरार हैं.
डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन से स्टार्टअप की राह आसान
ऑनलाइन भुगतान के काॅन्सेप्ट पर चलनेवाले स्टार्टअप आगे बढ रहे हैं. इसका एक बडा उदाहरण पेटीएम का लिया जा सकता है, जिसके मोबाइल वॉलेट यूजर्स की संख्या 16.5 करोड तक पहुंच चुकी है. आठ नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद से इस संख्या में तेजी से बढोतरी हुई है. देखा जाये, तो अब भी भुगतान की प्रक्रिया प्लंबिंग से इतर नहीं है और यही कारण है कि भारत में इस तरह की अनेक कंपनियों का कारोबार लगातार बढ रहा है.
‘इकोनॉमिक टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एचडीएफसी बैंक का भारत में क्रेडिट कार्ड का बडा कारोबार है और बाजार में अब इसके तीन बडे प्रतिद्वंद्वि सामने आये हैं. इस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य पुरी कहते हैं, ‘वॉलेट का भविष्य उज्ज्वल नहीं है. आप ऐसे किसी भी बिजनेस को ज्यादा दिनों तक नहीं चला सकते, जिसमें 500 रुपये के बिल भुगतान पर 250 रुपये का कैश-बैक दिया जाये.’
पुरी का तर्क सही हो सकता है, लेकिन ‘अलीबाबा’ के बूते आगे बढनेवाली ‘पेटीएम’ ने कैश-बैक देकर लोगों को आकर्षित किया है. वहीं दूसरी ओर, नोटबंदी से पहले भारतीय बैंकों के ग्राहकों के सैनफोर्ड सी बर्नस्टीन सर्वे के दौरान हासिल किये गये तथ्य विविध तसवीरें बयां करती हैं. इस सर्वे रिपोर्ट में पाया गया कि बैंकों के तकरीबन आधे खाताधारक पेटीएम वॉलेट का इस्तेमाल करते हैं. और इसका बडा कारण है कि यह उन्हें आसान लगता है. इसके आधे से अधिक यूजर्स 25 से 35 वर्ष समूह के हैं.
आसान हो रही भुगतान हासिल करने की प्रक्रिया
बर्नस्टीन एनालिस्ट गौतम चुगानी के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि युवा बैंक ग्राहक आसानी से पेटीएम को अपना रहे हैं. जहां तक छोटे खुदरा विक्रेताओं की बात है, तो पेटीएम जैसे तरीकों से भुगतान हासिल करने की प्रक्रिया जैसे-जैसे सरल होती जायेगी, वैसे-वैसे वे इसके साथ जुडते जायेंगे. जो भी मर्चेंट इसमें आनेवाले ट्रांजेक्शन खर्च को वहन करने में सक्षम नहीं होंगे, उनके लिए इस कारोबार में टिके रहना मुश्किल होगा. लेकिन फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी आधारित कंपनियां अपने ग्राहकों से वॉलेट के जरिये न केवल भुगतान की सुविधा दे रही हैं, बल्कि कई तो उन्हें उनकी जमा रकम पर ब्याज भी दे रही हैं, लिहाजा बैंकों के लिए यह नये तरह की चुनौती हो सकती है.
खर्चों को मैनेज करना प्रमुख फैक्टर
हालांकि, ट्रांजेक्शन की लागत को कम-से-कम बनाये रखते हुए ज्यादा-से-ज्यादा ग्राहकों को जोडे रखना फिन-टेक कंपनियों के लिए भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है. बैंकों को यह समझना होगा कि ये कंपनियां किस तरह से अपने खर्चों को मैनेज करती हैं.
सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिलने के बावजूद अनेक भारतीय बैंक मोबाइल-पेमेंट की सुविधा के साथ अपने ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं. खबर यह भी आ रही है कि हाल ही में लॉन्च किये गये रिलायंस जियो की ओर से उबर टेक्नोलॉजी की मदद से जियो पेमेंट बैंक की शुरुआत की जा सकती है.
कामयाबी की राह
छोटे स्तर से करें शुरुआत, चुनौतियों की समझ होगी बेहतर
देशभर में करीब 50 फीसदी छोटी कारोबार अपनी स्थापना के आरंभिक चार वर्षों में असफल हो जाते हैं. ‘स्मॉल बिजनेस ट्रेंड्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों के दौरान स्टार्टअप्स के प्रदर्शन से यह तथ्य सामने आया है कि अनेक उद्यमों को कडा आघात झेलना पडा है. हालांकि, ऐसा बिलकुल नहीं है कि स्टार्टअप्स पूरी तरह से असफल हो रहे हैं, क्योंकि मौजूदा दौर में अनेक नये स्टार्टअप्स तेजी से कामयाबी की ओर बढ रहे हैं. इंटरनेट और ऑनलाइन बिजनेस ने अनेक चीजों को बदल दिया है. ऐसे में स्टार्टअप्स को पनपने के लिए उद्यमियों को इन चीजों की ओर ज्यादा ध्यान देना चाहिए :
छोटे स्तर से शुरुआत : स्टार्टअप की कामयाबी के लिए यह जरूरी है कि आप शुरुआत छोटे स्तर से करें और धीरे-धीरे आगे बढते रहें. जब आप छोटे स्तर से काम शुरू करेंगे, तो आगे बढते जाने की प्रक्रिया के दौरान राह में आनेवाली चुनौतियों को समझ पायेंगे, जिससे आपका अनुभव बढता जायेगा.
चूंकि आपके कार्यकलापों का असर आपके समाज पर होगा, लिहाजा अच्छी चीज होने की दशा में वह लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा. निवेशकों को भी जैसे-जैसे आप पर भरोसा होगा, तो वे भी आपकी ओर खींचे चले आयेंगे. देखा गया है कि ज्यादातर स्टार्टअप बडे स्तर से शुरुआत करने की भूल करते हैं. ऐसे में सक्षम निवेशक भी यह देखते हैं कि स्टार्टअप अपने शुरुआत के बाद से ज्यादा आगे नहीं बढ पाया है, लिहाजा वे इस ओर कम ही आकर्षित होते हैं.
मेंटर का होना जरूरी : कारोबार को सक्षम तरीके से आगे बढाने के लिए आपके पास एक मेंटर का होना जरूरी है. किसी भी स्टार्टअप के लिए मेंटरशिप की महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता. इसके जरिये उद्यमियों को हर तरीके का दिशा-निर्देश हासिल होता है.
साथ ही उसे यह एहसास रहता है कि कोई है जो उसकी निगरानी कर रहा है. हालांकि, इसमें उद्यमी को एक बात ध्यान रखना चाहिए, कि मेंटर एेसे इनसान को चुने, जो अपनी प्रोफेशनल लाइफ में कामयाब रहा हो. मेंटर न केवल आपको प्रेरणा देता है, बल्कि वह आपको शिक्षित भी करता है. वह आपको गाइड करता है और सही लोगों तक पहुंचाने का इंतजाम भी करता है. ज्यादातर स्टार्टअप्स इसलिए भी असफल होते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि उन्हें मेंटर के मदद की कोई जरूरत नहीं है.
स्टार्टअप क्लास
व्यापक पैमाने पर तकनीकी खेती के जरिये की जा सकती है स्टार्टअप की शुरुआत
दिव्येंदु शेखर
स्टार्टअप, इ-कॉमर्स एवं फाइनेंशियल प्लानिंग के विशेषज्ञ
– पलायन के कारण उत्तरी बिहार के कई गांवों में खेत खाली रहते हैं और उनमें कुछ नहीं होता़ क्या किसी ऐसे स्टार्टअप की शुरुआत की जा सकती है, जिसके जरिये लीज पर ये जमीन लेकर उसमें कॉमर्शियल खेती की जा सके़ यदि हां, तो इस बारे में विस्तार से बतायें.
देखिये, भारत में खेती घाटे का धंधा बन गया है. इसके दो-तीन प्रमुख कारण हैं- जैसे छोटे खेत, बढ़ती लागत और तकनीक की कमी. आपकी सोच अच्छी है, लेकिन आपके उद्योग को सफल बनाने के लिए इन चार बातों का ध्यान रखना पड़ेगा :
(क) खेती का पैमाना : छोटे पैमाने पर खेती कभी भी मुनाफा नहीं देती है. इसका कारण है ऊपरी लागत जो एक समान ही रहती है- जैसे बिजली और उपकरणों का खर्च. अगर आप एक एकड़ खेत जोतेंगे, तो भी ट्रेक्टर खरीदने में उतनी ही लागत आती है, जितनी 50 एकड़ में. इसलिए अगर आप किराये पर खेत लेने की सोच रहे हैं, तो आप बड़े खेत लें. अमेरिका में, जहां किसानी एक मुनाफे का व्यवसाय है, एक औसत किसान दो हजार हेक्टेयर खेत जोतता है.
(ख) तकनीकी सुविधाएं : आजकल खेतिहर मजदूर काफी महंगे हो गये हैं, जिससे लागत बढ़ गयी है. इससे बचने के लिए आपको उपकरणों में निवेश करना पड़ेगा. अच्छा होगा आप किसी अच्छे कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें.
(ग) फसल : खेती में आजकल काफी बदलाव आया है. अनाज की खेती उतनी मुनाफे वाली नहीं रह गयी है, जितनी तिलहन दाल और फलों की. साथ ही कपास की खेती भी काफी मुनाफे वाली है. इस कारण से आप पहले जमीन का परीक्षण करवाएं और अच्छी तरह से पड़ताल के बाद ही फसल लगायें.
(घ) मार्केटिंग : आप सीधे-सीधे रिटेल कंपनी से बात करें या एक्सपोर्टर को पकडें. इस तरह से आप बिचौलियों के खर्च से बच जायेंगे. आपको इसके लिए कोल्ड स्टोरेज में निवेश करना पड़ेगा.
अन्य माध्यमों से तुलना करते हुए शुरू कर सकते हैं बस सेवा
– बिहार के कई जिलों से दिल्ली के लिए डायरेक्ट रेल सेवा नहीं है. जहां से है, वहां से भी लोगों को कंफर्म टिकट नहीं मिल पाता. बिहार से दिल्ली तक अब सड़क अच्छी हो चुकी है़ क्या यात्री बसों के जरिये स्टार्टअप की शुरुआत की जा सकती है? कृपया चुनौतियों और अवसरों के बारे में बतायें.
आपका स्टार्टअप आइडिया अच्छा है. लेकिन कुछ पहलुओं पर ध्यान देना होगा :
(क) बस का प्रकार : बिहार से दिल्ली की दूरी काफी ज्यादा है और सड़क का सफर थका देनेवाला होता है. इसलिए आपको केवल एयर कंडीशन बसें चलानी होंगी, जिसमें स्लीपर एकाेमोडेशन हो. इन बसों की कीमत ज्यादा होती है.
(ख) यात्रा का समय : दिल्ली से बिहार ट्रेन में 15-20 घंटे लगते हैं. लेकिन सड़क के सफर में अक्सर टोल टैक्स और अन्य तरह के ठहराव आते हैं. जैसे हर चार-पांच घंटे पर आपको एक घंटे के लिए किसी होटल में रुकना पड़ेगा. इस कारण यात्रा का समय बढ़ कर 20-25 घंटे भी हो सकता है. ये शायद लोगों को पसंद न आये.
(ग) यात्रा का खर्च : स्लीपर बस का मतलब आप ज्यादा से ज्यादा 26 लोगों को बस में बैठा सकते हैं. इससे खर्च बढ़ कर ट्रेन से दोगुना हो जायेगा. आजकल हवाई जहाज से दिल्ली से पटना दो घंटे में आप 4,000 रुपये में पहुंच सकते हैं. आप सोच लें कि आप इस हालात में सेवा कैसे चलायेंगे.
(घ) सवारियों की कमी : बिहार से दिल्ली की सवारी तो आपको मिल जायेगी, लेकिन दिल्ली से बिहार की सवारी मिलनी मुश्किल है. इससे आपको घाटा भी उठाना पड़ सकता है. इन बातों को ध्यान में रख कर ही आप आगे बढ़ें.
पैकेजिंग और मार्केटिंग के जरिये कम समय में ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं सब्जियां
– तकनीक और इ-कॉमर्स के इस्तेमाल से खेतों से टूटने के बाद शहरों में ग्राहकों तक 24 घंटे के भीतर पहुंचाते हुए स्टार्टअप की शुरुआत की जा सकती है? कृपया विस्तार से बताएं.
आपका आइडिया अच्छा है, लेकिन मेरे कुछ सुझाव हैं :
(क) 24 घंटे की जरूरत : जरूरी नहीं कि हर माल आप 24 घंटे में ही पहुंचाएं. आप तीन-चार दिनों में भी अगर अच्छा माल पहुंचायेंगे, तो ठीक रहेगा. इसका कारण है कि 24 घंटे में भी फल और सब्जियां उतनी ही ताजा रहती हैं, जितनी दो-तीन दिन में. हां, उनको कोल्ड चेन से ले जाना पड़ेगा.
(ख) लागत : आपको कोल्ड चेन में निवेश करना पड़ेगा. कोल्ड चेन खर्चीला निवेश है और इसके लिए आपको तकनीक की समझ अच्छी होनी चाहिए. कोशिश करें कि शुरुआत में आप किसी कोल्ड चेन से किराये पर ट्रक ले कर काम करें.
(ग) मार्केटिंग और पैकेजिंग : आपको पैकेजिंग और मार्केटिंग में भी निवेश करना पड़ेगा, क्योंकि शहरों में आपको पहचान बनाने के लिए इसकी जरूरत पड़ेगी. आपको ब्रांड में निवेश करना पड़ेगा.
(घ) रिटेल : आपको बड़े रिटेल से बात करके माल वहां रखवाना पड़ेगा. आप शुरुआती दौर में छोटे रिटेल में माल न ही बेचें, तो अच्छा रहेगा, क्योंकि छोटे रिटेल में आप मुनाफा नहीं कमा पायेंगे. जब आप बड़े रिटेलर के साथ ब्रांड बना चुके होंगे, तो छोटे रिटेलर अपने आप आपके पास आयेंगे.

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