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बिजली और बयानबाजी

ईद या दिवाली के अवसर पर 24 घंटे बिजली मिले, न मिले, यह बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन भारत की आबादी का वह हिस्सा, जो आजादी के सात दशक और आर्थिक उदारीकरण की नीति के लागू होने के ढाई दशक बाद भी लालटेन, ढिबरी व डिबिया युग में जीने को विवश हैं, उसे बिजली की […]

ईद या दिवाली के अवसर पर 24 घंटे बिजली मिले, न मिले, यह बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन भारत की आबादी का वह हिस्सा, जो आजादी के सात दशक और आर्थिक उदारीकरण की नीति के लागू होने के ढाई दशक बाद भी लालटेन, ढिबरी व डिबिया युग में जीने को विवश हैं, उसे बिजली की आधुनिक सुविधाओं से जोड़ना, किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिये.
चुनावों के दौरान एक-दूसरे पर अनर्गल बयानबाजी से इतर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को एक मंच पर आकर देश में व्याप्त समस्याओं को दूर करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए, बजाय चुनाव प्रचार के दौरान लोकतांत्रिक मर्यादाएं तार-तार करने के, जो उत्तरप्रदेश चुनाव में दिख रहा है. आशा है हमारे राजनेता एक मतदाता के उपरोक्त विचारों का मर्म समझेंगे.
सुधीर कुमार, बीएचयू, वाराणसी

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