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औद्योगिक प्रदूषण पर सख्ती

अनुपचारित औद्योगिक कचरों से होनेवाले जल प्रदूषण को रोकने में असफल औद्योगिक इकाईयां यदि तीन माह के भीतर उपचार संयंत्र की व्यवस्था नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें तत्काल बंद कर देने का सख्त आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किया है. देशभर में औद्योगिक प्रदूषण अब बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. तरल, गैस […]

अनुपचारित औद्योगिक कचरों से होनेवाले जल प्रदूषण को रोकने में असफल औद्योगिक इकाईयां यदि तीन माह के भीतर उपचार संयंत्र की व्यवस्था नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें तत्काल बंद कर देने का सख्त आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किया है. देशभर में औद्योगिक प्रदूषण अब बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है.
तरल, गैस और ठोस रूप में निकलनेवाले औद्योगिक कचरे हवा, पानी और जमीन में पहुंच कर न केवल पर्यावरण का दम घोंट रहे हैं, बल्कि जैव-तंत्र में भी नकारात्मक बदलाव कर रहे हैं. कॉस्टिक सोडा, तेल शोधक, कागज व लुगदी, चीनी, कपड़ा, लोहा एवं इस्पात, ताप विद्युत संयंत्र, सीमेंट, कीटनाशक और दवाईयों समेत लगभग 17 उद्योगों से निकलनेवाले अशोधित कचरे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ने के लिए जिम्मेवार हैं. औद्योगिक प्रदूषण के मुद्दे पर सराहनीय फैसला करते हुए प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने औद्योगिक कार्यप्रणाली पर निगरानी के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को बाकायदा निर्देशित किया है. न्यायालय का यह कहना कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संबंधित विद्युत आपूर्ति बोर्डों के माध्यम से ऐसे उद्योगों के लिए बिजली आपूर्ति रोकना सुनिश्चित करेंगे, निश्चित ही प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में दूरगामी फैसला है.
हैरानी की बात है कि औद्योगिक गतिविधियों से मुक्त होनेवाले कॉर्बन मोनो ऑक्साइड, क्लोरीन, सल्फर डाइ ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड जैसे खतरनाक रसायनों पर नियंत्रण और निगरानी के लिए औद्योगिक समूहों के पास कोई ठोस कार्ययोजना ही नहीं है. पिछले साल अक्तूबर में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के प्रमुख न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय तथा केंद्र एवं उत्तर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को औद्योगिक इकाईयों से होनेवाले जल एवं वायु प्रदूषण की निगरानी का आदेश दिया था. उद्योगों से निकलनेवाली विषाक्त गैसें न केवल ओजोन परत का क्षरण करती हैं, ग्रीन हाउस गैस प्रभाव बढ़ाती हैं, अम्ल वर्षा के रूप में क्षति का कारण बनती हैं, बल्कि इनसे बड़े स्तर पर जान-माल का भी नुकसान होता है.
भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मेथिल आइसो-साइनाइड के रिसने से हजारों मौतों का दुख आज भी लोगों के जेहन में है. ऐसे हादसों से सबक लेते हुए औद्योगिक प्रदूषण पर व्यवस्थागत निगरानी के साथ पर्यावरण के प्रति नैतिक दायित्व का निर्वाह किया जाना बहुत आवश्यक है. साथ ही, प्रदूषकों की रिसाइक्लिंग, औद्योगिक यूनिटों की स्थापना से पहले जलवायुवीय कारकों का अध्ययन, पर्यावरणीय प्रभावों का सतत मूल्यांकन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ों नियमों के सख्त अनुपालन को भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है.

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