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पाक में हिंदू मैरिज एक्ट : पाकिस्तान में हिंदू महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए बड़ी पहल

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के जान-माल और अधिकारों पर लगातार हमलों के बीच सकून की खबर आयी है कि हिंदू समुदाय के लिए विवाह और उत्तराधिकार संबंधी पर्सनल लॉ को नेशनल एसेंबली और सीनेट ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया है. इस कदम के बाद अन्य सामाजिक समूहों को भी आस बंधी है कि ऐसे कानून […]

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के जान-माल और अधिकारों पर लगातार हमलों के बीच सकून की खबर आयी है कि हिंदू समुदाय के लिए विवाह और उत्तराधिकार संबंधी पर्सनल लॉ को नेशनल एसेंबली और सीनेट ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया है. इस कदम के बाद अन्य सामाजिक समूहों को भी आस बंधी है कि ऐसे कानून उनके लिए भी जल्दी बनाये जायेंगे. इस कानून और इसके विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है
अंजलि सिन्हा
सामाजिक कार्यकर्ता
पाकिस्तान मुस्लिम लीग से सांसद डॉ रमेश कुमार वनकवाणी बेहद खुश हैं कि पाकिस्तान की सीनेट ने पिछले दिनों हिंदू मैरिज बिल 2017 पर अपनी मुहर लगा दी है, जिसके लिए वह लंबे समय से प्रयासरत रहे हैं. अब पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर पख्तुनख्वा प्रांतों में रहनेवाले हिंदू इसके दायरे में आयेंगे. पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने सितंबर 2015 में ही इस बिल पर अपनी संस्तुति दी है. सिंध प्रांत- जहां पाकिस्तान की हिंदू आबादी का बहुलांश रहता है, उसने इसके पहले ही अपना खुद का हिंदू मैरिज लॉ बनाया है.
गौरतलब है कि पाकिस्तान में पर्सनल लॉ का मामला प्रांतीय दायरे में आता है अर्थात् अलग-अलग राज्यों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे इसके लिए कानून बनायें या संघीय सरकार के कानून पर अपनी मुहर लगा दें.
पाकिस्तान बनने के लगभग सत्तर साल बाद यह पहला अवसर है कि वहां रह रहे करीब दो प्रतिशत हिंदू समुदाय के लिए पहला व्यक्तिगत कानून हासिल हुआ है, जिसके दायरे में शादी, उसका पंजीकरण, तलाक और पुनर्विवाह आदि सभी पहलू समेटे गये हैं. पुरुषों एव स्त्रियों दोनों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गयी है. जिस तरह मुसलिम शादियों के बाद निकाहनामा जारी होता है, उसी तर्ज पर हिंदू शादी संपन्न होने के बाद एक दस्तावेज (विवाह प्रमाणपत्र) जारी होगा, जिस पर शादी करानेवाले पुरोहित के दस्तखत होंगे और संबंधित महकमे द्वारा उस पर अपनी मुहर लगेगी.
पाकिस्तान में हिंदू महिलाओं के लिए यह कानून उनकी सशक्तिकरण की दिशा में नयी राह खोलता है. अहम बात यह है कि अपने निजी दस्तावेज बनाने को लेकर, चाहे बैंक में खाता खोलना हो या पासपोर्ट/वीजा बनाना हो, अभी तक उनके सामने जो मुश्किलें पेश आती थीं, उसके लिए जो अनावश्यक कवायद करनी पड़ती थी, वह रुक जायेगी. दूसरी अहम बात पति की संपत्ति पर अपना अधिकार जताने के लिए उन्हें सहूलियत होगी. दरअसल, अब तक होता यही आया है कि विधवाओं को पति की जायदाद से बेदखल करना, पति के अन्य रिश्तेदारों के लिए बहुत आसान रहा है, क्योंकि हिंदू स्त्री के पास ऐसे प्रमाण मौजूद नहीं होते थे, जिनसे वह साबित कर सके कि वह शादीशुदा रही है. शादी का अनिवार्य पंजीकरण इस काम को सुगम करेगा.
अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लिए ऐसा बिल बनाने की कवायद 1970 के दशक में ही शुरू हुई थी, जब पहली दफा वहां की संसद ने इस पर विचार किया था, मगर किसी न किसी वजह से मामला लटकता रहा. वर्ष 2011 में चौथे नेशनल कमीशन आॅन स्टेटस आॅफ वूमेन ने हिंदू मैरिज बिल, 2011 का एक मसविदा सरकार के सामने विचारार्थ पेश किया था. बाद में खुद पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इसके लिए निर्देश दिया, मगर सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका.
पाकिस्तान के एक इसलामिक देश होने के चलते अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को स्वीकारने में या उसके लिए कानून बनाने में बाधाएं आती रहीं. मगर, इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि खुद पाकिस्तान के हिंदू समुदाय के वर्चस्वशाली तबके की तरफ से भी महिलाओं का सशक्तिकरण करनेवाले ऐसा कोई कानून बनाने को लेकर विरोध था.
पिछले ही साल पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित अखबार में छपा था कि किस तरह वहां की ऊंची जाति के संपन्न तबके के अग्रणी नेताओं ने इस बिल का विरोध किया था. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में हिंदुओं के लिए बने अलग मतदाता संघ से चार बार निर्वाचित राणा चंद्र सिंह नामक वहां के राजपूत समुदाय के प्रमुख थे, इनके मुताबिक, ‘ऐसा करना उनके धर्म के खिलाफ है और परंपराओं के विरुद्ध है, जिसके तहत शादी एक पवित्र बंधन होता है और तलाक धर्मद्रोह या उसका उल्लंघन होता है. नेशनल असेंबली में राणा ने एक बार ऐलान किया था कि ऐसा कोई बिल मेरी लाश पर ही पास होगा. राणा चंद्र सिंह 2009 में गुजर गये और अब स्थितियां थोड़ी बदली हैं.
यह अलग बात है कि अभी भी जो कानून बना है, उसमें भी तलाक को लेकर ऐसे प्रावधान हैं कि उसे लेना लगभग नामुमकिन होगा. कानून ‘तलाक’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि वह /खालिस कानूनी शब्द/ ‘विवाह की समाप्ति का न्यायिक निर्णय’ की बात करता है, जो एक तरह से तलाक की अवधारणा के प्रति अविश्वास को दिखाता है.
कानून के तहत पहले अदालत में याचिका दायर करनी पड़ती है, और ऐसे नियम बने हैं कि अगर दोनों पक्ष भी परस्पर सहमति से संबंध विच्छेद करना चाहें तथा अपनी नयी जिंदगी शुरू करना चाहें, तो आदर्श स्थितियों में दो से तीन साल लग सकते हैं. दूसरी तरफ सिंध एसेंबली द्वारा पारित बिल इस कानून से भी अधिक कमजोर है, जिसे महज शादी पंजीकरण बिल कहना अधिक सटीक होगा.
वैसे सीनेट द्वारा पारित इस बिल के -जिस पर अब सिर्फ राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है- एक प्रावधान को लेकर हिंदू सांसदों और समुदाय के सदस्य विचलित भी दिखते हैं, जिसमें कहा गया है कि कोई भी एक पक्ष अदालत में जाकर संबंध विच्छेद की बात कर सकता है अगर दूसरा पक्ष धर्मांतरण करता है.
डाॅ वनकवाणी के मुताबिक, ‘हमारी मांग यह है कि संबंध-विच्छेद या अलगाव का मामला धर्मांतरण के पहले दायर किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रस्तुत प्रावधान के तहत शरारती तत्व किसी शादीशुदा महिला का अपहरण कर सकते हैं, उसे गैरकानूनी हिरासत में रख सकते हैं और अदालत में यह कह कर पेश कर सकते हैं कि उसने इसलाम कुबूल कर लिया है तथा अब वह हिंदू पुरुष के साथ नहीं रहना चाहती.
आखिरकार पाकिस्तानी हिंदुओं को मिल गया विवाह कानून
पाकिस्तानी सीनेट द्वारा हिंदू विवाह विधेयक को पारित करने के साथ ही अब पाकिस्तान के हिंदुओं को उनका अपना विवाह कानून मिलना लगभग तय हो गया है. पाकिस्तान की सीनेट ने 20 फरवरी को हिंदू समुदाय से जुड़े इस पर्सनल लॉ को सर्वसम्मति से पारित कर दिया.
इससे पहले इस विधेयक को नेशनल असेंबली द्वारा 26 सितंबर, 2015 को मंजूरी दे दी गयी थी. इस विधेयक पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही यह कानून की शक्ल अख्तियार कर लेगा. पाकिस्तान के पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के हिंदुओं के लिए यह अपनी तरह का पहला पर्सनल लॉ होगा. सिंध असेंबली द्वारा वर्ष 2016 में ही इस प्रांत के लिए हिंदू विवाह कानून पारित कर दिया गया है.
क्या है इस विधेयक में
– इस विधेयक के तहत शादी के समय दूल्हा और दूल्हन की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.
– शादी के दस्तावेज पर पुरोहित का हस्ताक्षर होगा और उसके बाद यह दस्तावेज स्थानीय सरकारी कार्यालय में पंजीकृत होगा. यहां पंजीकृत होने के बाद विवाह प्रमाणपत्र जारी किया जायेगा. इस दस्तावेज की मान्यता निकाहनामे के बराबर होगी.
– अब पाकिस्तान में विवाहित हिंदू लड़कियाें को उनका पैतृक अधिकार मिल सकेगा.
– शादी के एक साल के बाद व्यक्ति यदि चाहे, तो तलाक के जरिये विवाह का अंत कर सकता है.
– पति की मृत्यु के छह महीने के बाद उसकी विधवा दूसरा विवाह कर सकती है, जबकि हिंदू धर्म में विधवा विवाह की परंपरा नहीं है.
– विवाहोपरांत वैवाहिक अधिकारों और रस्मों से वंचित किये जाने पर विवाहित महिला अपनी शादी को अदालत में चुनौती दे सकती है.
– इस विधेयक के तहत पहली पत्नी के रहते हुए पति को दूसरी शादी का अधिकार नहीं होगा.
– हिंदू विवाह कानून का उल्लंघन करने पर इस विधेयक के तहत अदालती कार्रवाई का प्रावधान है.
क्या होगा इसका फायदा
इस बहुप्रतिक्षित कानून के अस्तित्व में आने से हिंदुओं को अनेक फायदे मिलेंगे. बतौर पारिवारिक इकाई वे राष्ट्रीय आंकड़े का हिस्सा बन पायेंगे. हिंदुओं, खासकर हिंदू महिलाओं के जबरन धर्मांतरण पर रोक लग सकेगी. इस कानून से विवाहित महिलाएं अपनी विवाहित स्थिति को साबित कर पायेंगी और पतियों द्वारा किये जानेवाले शोषण से बच पायेंगी. इतना ही नहीं, वैवाहिक प्रमाणपत्र के माध्यम से महिलाएं पति के न रहने पर उनके पेंशन और दूसरे लाभ का दावा भी अब कर सकेंगी.
कैसे अस्तित्व में आया यह विधेयक
पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी लगभग 1.6 प्रतिशत है. यहां के सिंध प्रांत में सबसे ज्यादा हिंदू हैं. लेकिन, विडंबना यह है कि देश के बंटवारे के बाद से अब तक इस देश में हिंदुओं के विवाह को स्थानीय सरकारी कार्यालयों द्वारा मान्यता देने और उसे पंजीकृत करने का कोई भी कानून संविधान में नहीं था. हिंदू विवाह अधिनियम बनाने की पहल 1970 के दशक में सबसे पहले जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी. लेकिन, तब यहां के कुछ हिंदू समुदाय तलाक को लेकर राजी नहीं थे.
उनका मानना था कि हिंदुआें में तलाक नहीं होता है. लेकिन 2014 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के सदस्य रमेश कुमार वनकवाणी ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक सदस्य के साथ मिल कर इस कानून को तैयार किया. इसी वर्ष इस विधेयक को स्टैंडिंग कमिटी में पेश किया, जहां उसे मंजूरी मिल गयी. इसके बाद इसे नेशनल असेंबली में पेश किया गया. वर्ष 2014 में ही पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय ने इस विधेयक को बनाने के लिए राष्ट्रीय विधान यानी नेशनल लेजिस्लेशन बनाने के लिए सरकार को कहा. इस प्रकार रमेश कुमार वनकवाणी के तीन सालों के अथक प्रयासों के बाद अब जाकर इस देश को हिंदू विवाह अधिनियम मिलना तय हो गया है.
पाकिस्तानी सिखों को भी उम्मीद
पाकिस्तान की सीनेट द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम के पारित होने के बाद अब वहां के सिखों को भी यह उम्मीद बंधी है कि जल्द ही उन्हें भी अपना अलग विवाह कानून ‘आनंद विवाह अधिनियम’ मिल जायेगा. पाकिस्तान में सिखों की आबादी करीब 25 हजार है. इस संबंध में पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष बिशन सिंह का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान सरकार हिंदुओं के बाद अब हमारी मांगों पर भी गौर करेगी.

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