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फंसे कर्जे का बढ़ता बोझ

सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जा रही कोशिशों के दावे के बावजूद बैंकों पर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का भार लगातार बढ़ता जा रहा है. अंगरेजी दैनिक द इंडियन एक्सप्रेस के लिए वित्तीय संस्था केयर रेटिंग्स के आकलन के अनुसार, दिसंबर, 2016 तक सरकारी और निजी बैंकों के फंसे हुए कर्जे की कुल रकम […]

सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जा रही कोशिशों के दावे के बावजूद बैंकों पर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का भार लगातार बढ़ता जा रहा है. अंगरेजी दैनिक द इंडियन एक्सप्रेस के लिए वित्तीय संस्था केयर रेटिंग्स के आकलन के अनुसार, दिसंबर, 2016 तक सरकारी और निजी बैंकों के फंसे हुए कर्जे की कुल रकम 6,97,409 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. बीते दो सालों में इस राशि में 135 फीसदी की भारी वृद्धि हुई है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कुल अग्रिम भुगतान में एनपीए का हिस्सा 11 फीसदी तक हो चुका है और एक साल में इसमें 56.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आगामी दो तिहाइयों में इसके और बढ़ने के आसार हैं. सबसे अधिक छोटे और मझोले व्यावसायिक क्षेत्र को भुगतान करने में मुश्किल होगी, क्योंकि उन पर नोटबंदी की मार भी अधिक पड़ी है. दिसंबर, 2012 से दिसंबर, 2016 के बीच एनपीए का अनुपात 3.87 फीसदी से बढ़ कर 11 फीसदी होने का सीधा निष्कर्ष यही है कि कर्ज वसूली की कोशिशें असफल रही हैं या फिर बैंकों ने इस कोशिश में लापरवाही बरती है.
रिजर्व बैंक ने फंसे हुए धन को वापस लाने की समय-सीमा मौजूदा वित्त वर्ष के अंत तक निर्धारित की है. बड़ी राशि, नोटबंदी और अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता को देखते हुए ऐसा कर पाना मुमकीन नहीं है. रिजर्व बैंक ने अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में पहले ही चेतावनी दी है कि मार्च, 2017 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए अनुपात 12.5 फीसदी और मार्च, 2018 तक 12.9 फीसदी हो सकता है. कर्जे के एवज में कंपनियों में बैंकों द्वारा हिस्सेदारी हासिल करने की योजना से भी अभीष्ट परिणाम नहीं निकल सके हैं. हालांकि, इस वित्त वर्ष के शुरू में ही कर्जों को पुनर्संरचित करने पर रोक लगा दी गयी थी, पर कानूनी अड़चनों के कारण अनुत्पादक परिसंपत्तियों को बेच कर वसूली की योजना भी नाकामयाब रही है.
पुनर्संरचित राशि को जोड़ दें, तो कुल एनपीए चार लाख करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है. एनपीए से बैंकों का घाटा भी बढ़ रहा है. इससे बैंक दबाव में हैं और नयी योजनाओं के लिए पूंजी जुटाने में मुश्किलें आ रही हैं. लंबित परियोजनाआें को पूरा करने में भी डूबे कर्जे बड़ा अवरोध हैं. यदि अर्थव्यवस्था के विकास को पटरी पर बनाये रखना है, तो फंसे हुए कर्जों की वसूली को प्राथमिकता देनी होगी.

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