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हमारे सोच की दिशा
क्या हम सच में संवेदनहीन होते जा रहे हैं, क्या इस तकनीक की दुनिया में हम भी रोबोट बनते जा रहे हैं. हम अपनी जरूरतों को पूरा करने में सारा समय निकाल देते हैं, लेकिन जब दूसरों की मदद की बात आती है, तो मौन हो जाते हैं. अभी कर्नाटक में अली अनवर की मौत […]
क्या हम सच में संवेदनहीन होते जा रहे हैं, क्या इस तकनीक की दुनिया में हम भी रोबोट बनते जा रहे हैं. हम अपनी जरूरतों को पूरा करने में सारा समय निकाल देते हैं, लेकिन जब दूसरों की मदद की बात आती है, तो मौन हो जाते हैं. अभी कर्नाटक में अली अनवर की मौत एक्सीडेंट से नहीं, बिल्क वहां मौजूद लोगों की संवेदनहीनता से ज्यादा हुई.
लड़की को भीड़ में जिंदा जलाने या सड़क पर पुलिस अधिकारी की मौत की बात हो. एक तड़पते हुए इनसान का फोटो या विडियो लेकर सोशल मीिडया में शेयर करना, दर्शाता है कि हमारा व्यवहार मानवीय नहीं रहा. किसी ने भी इन सभी को बचाने की कोशिश की होती, तो ये आज जीवित होते. ऐसा लगता है कि टेक्नोलॉजी ने लोगों के सोचने समझने की शक्ति छीन ली है. अगर यह कहा जाये कि सरकार को इस तरह के मुद्दों के लिए कानून बनाना चाहिए, तो मूर्खता होगी क्योंकि कुछ नियम कानून तो हमें खुद बनाने चाहिए. ताकि इस तरह की हृदयविदारक घटना ना हो और इनसानियत को शर्मसार न होना पड़े.
श्वेता राणा, लालपुर, रांची
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