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सड़कों पर बिना हेलमेट रफ्तार ले रही जान

कोलकाता : आधुनिकता के इस दौर में युवा वर्ग तेज और बहुत तेज आगे बढ़ना चाहता है. चाहे वह करियर की बात हो या कुछ और. करियर की बात तो ठीक है लेकिन यदि बात सड़क पर यातायात की हो तो शायद फॉर्मूला फिट नहीं बैठता. तेज और बहुत तेज चलने की चाहत कभी-कभी युवाओं […]

कोलकाता : आधुनिकता के इस दौर में युवा वर्ग तेज और बहुत तेज आगे बढ़ना चाहता है. चाहे वह करियर की बात हो या कुछ और. करियर की बात तो ठीक है लेकिन यदि बात सड़क पर यातायात की हो तो शायद फॉर्मूला फिट नहीं बैठता. तेज और बहुत तेज चलने की चाहत कभी-कभी युवाओं की जिंदगी पर बन आ रही है. जी हां,

बात यहां रेसिंग बाइक और बाइक रेसिंग की हो रही है जो कई सड़क हादसों का कारण बन रही है. अक्सर फिल्मों में कलाकारों को बाइक पर स्टंट करते देखकर कई युवकों की चाहत बाइक पाने की होती है. बाइक हाथ में आते ही रेस और फिर इसकी भारी कीमत चुुकानी होती है. ऐसी दुर्घटना को रोक पाने में क्या पुलिस प्रशासन सफल है?

सड़कों पर बिना…
ऐसी घटनाएं रोकने के लिए क्या कोशिशें हो रही हैं? बाइक के प्रति युवाओं का मनोभाव क्या है? प्रभात खबर की ओर से ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर जानने की कोशिश की गयी.
डिफेंसिव ड्राइव की जरूरत : बाइक से होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त (1) विनीत गोयल ने डिफेंसिव ड्राइव को काफी महत्वपूर्ण बताया है. मसलन वाहन चलाते वक्त ट्रैफिक नियमों का ध्यान रखते हुए खुद पर नियंत्रण तो जरूरी है. साथ ही सामने वाला वाहन चालक यदि गलती करता है तो हमें यह भी ध्यान में रखना होगा. उन्होंने कहा कि बाइक रेसिंग के चलते होने वाले हादसों पर अंकुश के लिए कोलकाता पुलिस की ओर से विशेष ड्राइव चलाये जाते हैं. खास तौर पर रात मेें महानगर के महत्वपूर्ण क्रासिंग व फ्लाइओवर पर निगरानी रहती है. इतना ही नहीं महानगर के सभी ट्रैफिक गार्ड में लर्निंग सेंटर चालू किया गया है. लर्निंग सेंटर के जरिये करीब 50 हजार विद्यार्थियों और 20 हजार वाहन चालकों को ड्राइविंग से संबंधित पहलू को बताये गये हैं. गोयल ने कहा है कि अभिभावकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है. यानी नाबालिग बच्चों के हाथ में बाइक देना सही नहीं है. यह उन्हें ध्यान रखना चाहिए. कोलकाता पुलिस के अनुसार, वर्ष 2016 के एक जुलाई से 31 दिसंबर के दौरान यानी छह महीनों में महानगर में हुए सड़क हादसों में करीब 195 लोगों की मौत हुई थी लेकिन वर्ष 2012 में छह महीनों के दौरान करीब 245, वर्ष 2013 में करीब 226, वर्ष 2014 में एक जुलाई से 31 दिसंबर तक करीब 231 और वर्ष 2015 में करीब 220 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक : मनोचिकित्सक डॉ इंद्रनील साहा ने कहा कि 14 से 20 साल के बीच बच्चों के शारीरिक गठन में तेजी से बदलाव आता है. शरीर के हार्मोन में भी परिवर्तन होता है. बच्चा खुद को आत्मनिर्भर मानने लगता है. शरीर में परिवर्तित होने वाले हार्मोन से शरीर में कई बदलाव होते हैं. इससे मनोभाव बदलता है. यही ऐसा दौर होता है जब बच्चा बाइक राइडिंग के प्रति काफी आकर्षित होता है और उसमें रिस्क टेकिंग की भावना तेजी से आती है. वह खुद को बेहतर साबित करना चाहता है. बच्चों के इस मनोभाव के लिए जेनेटिक मैकअप यानी माता-पिता से कुछ मनोभाव मिलते हैं. यानी ऐसे वक्त में अभिभावकों को अपने बच्चों के प्रति ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए. नाबालिग को बाइक खरीदकर देने की गलती नहीं करनी चाहिए बल्कि उन्हें सुरक्षा के प्रति हमेशा सजग भी करना चाहिए.
नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना की सफलता पर सवाल
सड़क हादसों को रोकने के लिए राज्य सरकार की ओर से सेफ ड्राइव सेव लाइव, नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना शुरू की गयी. महानगर के निकटवर्ती इलाकों जैसे उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, आसनसोल समेत कई ऐसे जिले हैं जहां राज्य सरकार की योजना फ्लॉप नजर आ रही है. मसलन कई ऐसे पेट्रोल पंप मिल जाते हैं जहां बगैर हेलमेट के भी बाइक सवारों को पेट्रोल आसानी से मिल जा रहा है. बिना हेलमेट पेट्रोल लेने वालों में ज्यादातर युवा नजर आते हैं. ऐसी बातों से नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना पर सवाल जरूर उठ रहे हैं.
बाइक रेसिंग में चली गयी 17 साल के प्रतीम की जान
दक्षिण 24 परगना जिले के सोनारपुर में ऐसी दुखद घटना घटी है. 17 साल के प्रीतम घोष के पिता शायद ही सोचे होंगे कि उनके बेटे की मौत का कारण उपहार स्वरूप दी गयी बाइक बनेगी. बताया जा रहा है कि विगत शुक्रवार की रात जयेनपुर इलाके में कुछ किशोरों का दल बाइक रेसिंग कर रहा था. उसमें प्रीतम भी था. बाइक रेसिंग दुर्घटना का कारण बनी और प्रीतम की दर्दनाक मौत हो गयी. पुलिस का कहना है कि घटना के दौरान प्रीतम ने हेलमेट नहीं पहन रखी थी. पुलिस का कहना है कि ऐसी घटना आये दिन हो रही है. बाइक रेसिंग के चक्कर में कई युवाओं की मौत हो चुकी है.

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