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नयी कूटनीतिक चुनौतियां
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी नीतियों पर पहली बार भारत की ओर से आधिकारिक रूप से कुछ कहा गया है. विदेश सचिव जे जयशंकर ने कहा है कि ट्रंप को ‘बुरे व्यक्ति के रूप में देखने के बजाय’ उनका ‘विश्लेषण करने’ की जरूरत है. इस बयान से ट्रंप की नीतिगत अनिश्चितता को लेकर भारतीय […]
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी नीतियों पर पहली बार भारत की ओर से आधिकारिक रूप से कुछ कहा गया है. विदेश सचिव जे जयशंकर ने कहा है कि ट्रंप को ‘बुरे व्यक्ति के रूप में देखने के बजाय’ उनका ‘विश्लेषण करने’ की जरूरत है.
इस बयान से ट्रंप की नीतिगत अनिश्चितता को लेकर भारतीय कूटनीति की असमंजस की स्थिति की झलक भी मिलती है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को किसी ‘क्षणिक भावना या सनक’ का प्रतिनिधि न मान कर एक ‘विचार प्रक्रिया’ के रूप में देखने का जयशंकर का आग्रह यह भी संकेत देता है कि भारत किसी पहल से पहले कुछ देर ठहर कर वस्तुस्थिति को भली-भांति परख लेना चाहता है.
वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव और भारत को उसके अनुकूल तैयार रहने के बारे में सरकार की तरफ से कई बार कहा गया है, पर ट्रंप के आगमन ने भारत समेत अनेक देशों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. हालांकि, अभी भी भारत को भरोसा है कि ट्रंप की नजर में भारत का महत्व बना रहेगा, लेकिन वीजा और आप्रवासन से जुड़े संकेत निराशाजनक हैं. ओबामा प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों को हर लिहाज से मजबूती मिली थी. एक चुनौती तो उसे बहाल रखने की है, और दूसरी चुनौती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य विकल्पों की तलाश करने की है.
जयशंकर की यह बात भारत के आत्मविश्वास का परिचायक है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बड़े देशों की संरक्षणवादी नीतियां भारत के लिए दूसरे देशों में नये मौके दे सकती हैं. विदेश सचिव ने चीन के साथ बेहतर रिश्ते बनाने पर ध्यान देने की जरूरत बतायी है. पाकिस्तान के भारत-विरोधी तेवरों पर लगाम लगाने, आर्थिक मोरचे पर साझेदारी बढ़ाने तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर साथ काम करने के लिहाज से चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को पटरी पर लाना परिस्थितियों की मांग है.
ऐसे में जयशंकर की इस स्वीकारोक्ति के लिए सराहना की जानी चाहिए कि चीन से संबंधित मुद्दों से किनारा करना समझदारी नहीं होगी. जयशंकर अमेरिका और चीन में राजदूत रह चुके हैं. ट्रंप ने पदभार संभालने के बाद सबसे पहले जिन पांच देशों के नेताओं से बात की थी, उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक थे. पिछले दिनों तनातनी बढ़ने के दौर में भी चीन और भारत के बीच संवादों का सिलसिला जारी रहा है.
ऐसे में उम्मीद है कि अमेरिका और चीन के साथ भारत द्विपक्षीय संबंधों को सजग कूटनीतिक प्रयासों से सकारात्मक दिशा में ले जाने में सफल होगा. इस प्रक्रिया में यह सावधानी जरूरी है कि भारत महाशक्तियों की आपसी खींचतान में न फंसे तथा अपने और व्यापक वैश्विक हितों काे हाशिये पर जाने से बचाये.
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