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पन्नीरसेल्वम या पालानीसामी!
राजनीति संभावनाओं का खेल है और संभावनाएं अपनी अनिश्चितता से अक्सर अचरज में डालती हैं. तमिलनाडु की सियासत में चल रहा घटना-चक्र ऐसी ही एक मिसाल है. हफ्ते भर के भीतर स्थिति एकबारगी उलट गयी है. जयललिता के बाद लग रहा था कि अन्ना द्रमुक को ‘चिन्नम्मा’ शशिकला के रूप में नया करिश्माई नेता मिल […]
राजनीति संभावनाओं का खेल है और संभावनाएं अपनी अनिश्चितता से अक्सर अचरज में डालती हैं. तमिलनाडु की सियासत में चल रहा घटना-चक्र ऐसी ही एक मिसाल है. हफ्ते भर के भीतर स्थिति एकबारगी उलट गयी है.
जयललिता के बाद लग रहा था कि अन्ना द्रमुक को ‘चिन्नम्मा’ शशिकला के रूप में नया करिश्माई नेता मिल गया है. फिर पन्नीरसेल्वम का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना और विधायकों का एक सुर से शशिकला को विधायक दल का नेता चुनना यह संकेत देने को काफी था कि पार्टी में शशिकला के नेतृत्व को लेकर एेतराज नहीं है. लेकिन, द्रविड़ राजनीति ने संभावनाओं का अपना नायाब खेल दिखा दिया. राम के वनवास जाने पर भरत ने उनके खड़ाऊं को सिंहासन पर रख कर राजकाज चलाया था और पन्नीरसेल्वम की पार्टी के प्रति निष्ठा को याद करते हुए जयललिता ने उनकी तुलना कभी भरत से की थी, लेकिन इन्हीं पन्नीरसेल्वम ने अंतरात्मा की आवाज सुन कर शशिकला के नेतृत्व के प्रति अविश्वास जाहिर कर दिया.
राज्यपाल संभावित सरकार के गठन के लिए अन्ना द्रमुक के आंतरिक विवादों की पृष्ठभूमि में विकल्पों पर विचार कर ही रहे थे कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ गया. इस फैसले ने पार्टी की राजनीति और आगामी सरकार के गठन को नये सिरे से भंवर में डाल दिया है. आय से अधिक संपत्ति रखने के दो दशक पुराने मामले में अदालत ने शशिकला को चार साल की सजा सुनाते हुए तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश निर्गत किया है.
ऐसे में उनके पास विकल्प दो ही बचते हैं. वे एक तो बड़ी खंडपीठ से मामले पर पुनर्विचार की गुहार लगा सकती हैं और जयललिता के पद-चिन्हों पर चलते हुए पार्टी के अपने किसी विश्वस्त को आगे कर पन्नीरसेल्वम से नेतृत्व की लड़ाई लड़ सकती हैं. मौका न चूकते हुए शशिकला के धड़े ने पार्टी की तरफ से चार बार विधायक रह चुके पालानीसामी को विधायक दल का नेता चुना है और राज्यपाल के सामने अभी भी दुविधा मौजूद है कि वे मुख्यमंत्री बनने के लिए पन्नीरसेल्वम को कहें या पालानीसामी को. एक पद के जब दो दावेदार हों, तो लोकतांत्रिक तरीका यही है कि दोनों को बहुमत साबित करने का मौका दिया जाये.
वर्ष 1998 में उत्तर प्रदेश में जगदंबिका पाल और कल्याण सिंह के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर चली टकराहट में यही हुआ था. सो, उम्मीद की जानी चाहिए कि तमिलनाडु में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर राज्यपाल लोकतांत्रिक रीति से जल्दी ही निपटा लेंगे और किसी पक्ष के साथ नाइंसाफी नहीं होगी.
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