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ड्राइवरलेस कार और हाइपरलूप तकनीकों से बदलेगी ट्रांसपोर्टेशन की तसवीर!
अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला मोटर्स जल्द ही भारत में भी इस खास किस्म की कार को लॉन्च करने की तैयारी में है. इनोवेशन के लिए मशहूर और टेस्ला के सीइओ एलन मस्क ने हाल ही में सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि अगले कुछ महीनों में वे भारत में इसे लॉन्च करने की […]
अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला मोटर्स जल्द ही भारत में भी इस खास किस्म की कार को लॉन्च करने की तैयारी में है. इनोवेशन के लिए मशहूर और टेस्ला के सीइओ एलन मस्क ने हाल ही में सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि अगले कुछ महीनों में वे भारत में इसे लॉन्च करने की तैयारी में हैं
एलन मस्क के नेतृत्व में हाइपरलूप का भी विकास किया जा रहा है, जो सतह पर हजार किमी प्रति घंटा की स्पीड से यात्रा करने में सक्षम है़ उम्मीद जतायी जा रही है कि ड्राइवरलेस कार और हाइपरलूप से यात्री परिवहन सेवा में व्यापक बदलाव आ सकता है़ हालांकि, व्यावहारिक रूप से भले ही इनकी राह में अभी अनेक बाधाएं हैं, लेकिन इनका परीक्षण कार्य तेजी से जारी है और उम्मीद की जा रही है कि सभी बाधाओं को दूर कर लिया जायेगा. इन्हीं दोनों परिवहन सेवाओं की तकनीकों व इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बता रहा है आज का यह साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला मोटर्स जल्द ही भारत में भी इस खास किस्म की कार को लॉन्च करने की तैयारी में है. इनोवेशन के लिए मशहूर और टेस्ला के सीइओ एलन मस्क ने हाल ही में सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि अगले कुछ महीनों में वे भारत में इसे लॉन्च करने की तैयारी में हैं एलन मस्क के नेतृत्व में हाइपरलूप का भी विकास किया जा रहा है, जो सतह पर हजार किमी प्रति घंटा की स्पीड से यात्रा करने में सक्षम है़
उम्मीद जतायी जा रही है कि ड्राइवरलेस कार और हाइपरलूप से यात्री परिवहन सेवा में व्यापक बदलाव आ सकता है़ हालांकि, व्यावहारिक रूप से भले ही इनकी राह में अभी अनेक बाधाएं हैं, लेकिन इनका परीक्षण कार्य तेजी से जारी है और उम्मीद की जा रही है कि सभी बाधाओं को दूर कर लिया जायेगा. इन्हीं दोनों परिवहन सेवाओं की तकनीकों व इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बता रहा है आज का यह साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
– कन्हैया झा
दुनियाभर में सड़क दुर्घटना में सालाना करीब 12 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है. यह नुकसान ठीक उतना है, जितना बोइंग 747 सरीखे पांच विमानों के रोज दुर्घटनाग्रस्त होने से होनेवाली मानवीय क्षति. यह संख्या अमेरिका के एक प्रमुख शहर डलास की आबादी के समान है. ‘इंटरनेशनल बैंकर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस संबंध में गौर करनेवाली बात यह है कि ज्यादातर दुर्घटनाओं का कारण मानवीय भूल को ठहराया जाता है. इसका उपाय भी ज्यादा मुश्किल नहीं है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि परिचालन संबंधी कार्यों से इनसानों की भूमिका खत्म करके ट्रैफिक एक्सीडेंट और उससे होनेवाले नुकसान में बेहद कमी लायी जा सकती है. विशेषज्ञों ने इसके लिए ड्राइवरलेस कार पर जोर दिया है.
हालांकि, इस कारण को समझने के बावजूद व्यापक पैमाने पर इसे लागू करने में फिलहाल अनेक तरह की व्यावहारिक दिक्कतें हैं. लेकिन, यह इतना मुश्किल नहीं है कि इसे लागू नहीं किया जा सकता. मौजूदा समय में ज्यादातर प्रमुख ऑटो निर्माता कंपनियां ड्राइवरलेस कार का निर्माण करने में जुटी हुई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, गूगल, एप्प्ल, लिडार, उबर, लिफ्ट, माइक्रोसॉफ्ट, मोबिलिये, एनवीडिया, डेल्फी, बोश्च, बाइडू समेत अनेक कंपनियां इस दिशा में जुटी हुई हैं. इसमें से कुछ कंपनियां साॅफ्टवेयर बिजनेस में हैं, तो कुछ हार्डवेयर विकसित कर रहे हैं.
कुछ कंपनियां इस पूरे बिजनेस मॉडल को नये सिरे से गढ़ने में जुटी हैं, जो निश्चित तौर पर मौजूदा ट्रैफिक सिस्टम को पूरी तरह से बदल सकता है.
तकनीक हमेशा ही हमसे आगे रहती है और वास्तविक में हम इस बात की उम्मीद भी नहीं कर सकते कि वह रातों-रात कोई बड़ा बदलाव कर देगी. पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष कुछ-न-कुछ प्रगति हो रही है, लेकिन 2017 को इस दिशा में व्यापक बदलाव लानेवाला समझा जा रहा है. संबंधित सरकारी एजेंसियों को इस संबंध में ट्रैफिक गाइडलाइंस को नये सिरे से तैयार करना होगा, जो अपनेआप में एक नयी समस्या हो सकती है. उम्मीद जतायी जा रही है कि इस तकनीक के लागू होने तक इस समस्या का निराकरण भी हो जायेगा.
टेस्ला की ड्राइवरलेस कार
भविष्य में टेस्ला की तकरीबन सभी कारें ड्राइवरलेस ही बनायी जायेंगी. इन कारों में ऐसा साॅफ्टवेयर लगाया जायेगा, जिससे वे खुद चलने लगेंगी. फिलहाल इनमें चालक भी होंगे, लेकिन साॅफ्टवेयर विकसित हो जाने पर इन कारों को ऑटो-पायलट मोड में अपडेट किया जा सकेगा.
क्या हैं इस कार की खासियतें
360 डिग्री वाले आठ कैमरे : इस ड्राइवरलेस कार में आठ कैमरे खास इसी मकसद से लगे होंगे, जो करीब 250 मीटर की दूरी तक चारों ओर देखने में सक्षम होंगे. राह में अगल-बगल किसी तरह की बाधा आने की दशा में यह खुद उन्हें समझेगा और हालात के मुताबिक फैसले लेगा.
अल्ट्रासोनिक सेंसर : इस कार में 12 अपडेटेड अल्ट्रासोनिक सेंसर लगे होंगे. यह अपने आसपास की सख्त-से-सख्त और बारीक-से-बारीक चीजों का पता लगाने में सक्षम होंगे, जो राह में आनेावली बाधाओं को समझेंगे़
फॉरवर्ड फेसिंग राडार : इसके जरिये मूसलाधार बारिश, धुंध, धुएं के गुबार और भारी मात्रा में फैले हुए धूलकणों के दौरान भी कार की विजिबिलिटी बरकरार रहेगी और यह किसी तरह की दुर्घटना की आशंका को नहीं पनपने देगा.
ताकतवर कंप्यूटर : इसमें एक ताकतवर कंप्यूटर लगा होगा. इसकी कंप्यूटिंग की क्षमता मौजूदा जेनरेशन से करीब 40 गुना ज्यादा होगी.
क्या है हाइपरलूप तकनीक
एक खास ट्यूब के भीतर हाइपरलूप को उच्च दाब और ताप सहने की क्षमतावाले मिश्रधातु इंकोनेल से बने बेहद पतले स्की पर स्थिर किया जाता है. इस स्की में बेहद सूक्ष्म छिद्रों के जरिये दबाव डाल कर हवा भरी जाती है, जिससे यह एक एयर कुशन की तरह काम करने लगता है. स्की में लगे चुंबक और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक झटके से हाइपरलूप के पॉड को गति दी जाती है. इस कैप्सूल में एक बार में छह से आठ व्यक्ति यात्रा कर सकते हैं. इसे प्रत्येक 30 सेकेंड के अंतराल पर चलाया जा सकता है. कैप्सूल के आगे की मौजूद हवा ही इस कैप्सूल की एकमात्र अवरोधक है, जिसे दबाव के जरिये पीछे हटाया जायेगा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि आनेवाले समय में एक हजार किमी या उससे कम दूरी वाले शहरों के बीच तीव्र गति से परिवहन के लिए हाइपरलूप पूरी तरह व्यावहारिक समाधान हो सकता है.
चुंबकीय फिल्ड सृजित करते हुए किया जायेगा लैविटेट
अमेरिका में इस प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने में जुटे इंजीनियरों का कहना है कि इस आइडिया को कार्यान्वित करना बहुत मुश्किल नहीं है. चूंकि हाइपरलूप कैप्सूल में पहियों का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा, इसलिए इस सिस्टम को लैविटेट कराने के लिए चुंबकीय फिल्ड जेनरेट किया जा सकता है. यह तकनीक प्रमाणित हो चुकी है और शंघाई ट्रांसरैपिड के तौर पर चलायी जा रही मैगलेव प्रोजेक्ट इसका सबसे अच्छा प्रमाण है.
उल्लेखनीय है कि चीन में शंघाई मैगलेव ट्रेन 500 किमी प्रति घंटे की स्पीड से यात्रा करने में सक्षम है.हजार गुना कम वायु दाब कंपनी ने इस योजना को साकार करने की जो कल्पना की है, उसके तहत हाइपरलूप ट्यूब में वायु दाब को बेहद कम किया जायेगा. हालांकि, यह ट्यूब बिलकुल निर्वात नहीं होगी, बल्कि धरती की सतह पर मौजूद प्राकृतिक वायुमंडलीय दाब की तुलना में करीब हजार गुना कम वायु उसमें होगी. इतनी कम मात्रा में वायु होने की दशा में ट्यूब के भीतर यात्रियों से युक्त कैप्सूल को सुपरसोनिक स्पीड तक पहुंचने में ऊर्जा की भी बहुत कम जरूरत होगी.
ट्यूब के ऊपर लगाये जाने वाले सोलर पैनलों के माध्यम से इस सिस्टम की बैटरी चार्ज की जायेगी, जिससे इस पूरे सिस्टम को पर्याप्त ऊर्जा मुहैया करायी जायेगी. इसकी बड़ी खासियत यह भी होगी कि भविष्य में जीवाश्म ईंधनों की कमी की आशंका के बीच इसे सौर ऊर्जा से चलाना ऊर्जा क्षेत्र के लिए भी क्रांतिकारी साबित हो सकता है.
बुलेट ट्रेन से भी तेज यात्री परिवहन की संभावनाएं
पिछले कई दशकों से भारत में बुलेट ट्रेन चलाने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है. जापान से तकनीकी आैर आर्थिक मदद हासिल होने के बावजूद फिलहाल भारत में बुलेट ट्रेन का संचालन लोगों के लिए सपना ही है.
इस बीच दुनियाभर में तेज और सस्ते परिवहन मुहैया कराने में जुटी अमेरिकी कंपनी हाइपरलूप भारत में भी बुलेट ट्रेन से तेज परिवहन सेवा की संभावनाएं टटोल रही है. खबरों के मुताबिक, हाइपरलूप के जरिये मुंबई से पूर्ण का सफर महज 25 मिनट में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन ओर मुख्य संचालन अधिकारी बिपॉप ग्रेस्टा ने हाल ही में कहा है कि वे इस मकसद से केंद्रीय सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिले थे और भारत में एक पायलट प्रोजेक्ट स्थापित करने का औपचारिक प्रस्ताव रखा था.
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