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कैसे जियें हम, बन गया बड़ा सवाल

बुजुर्गों की पीड़ा. हालात ऐसे बने कि परिवार छोड़ वृद्धाश्रम में रहने को हुए विवश वृद्धाश्रम में रहनेवाले कुछ बुजुर्गों से बात की गयी. जिंदगी की शाम में इन बुजुर्गों की बेबसी सामाजिक संरचनाओं की कई बेरहम टूटन की कहानी कहते हैं. कोई परिवार पर बोझ बन गये थे. किसी का कोई परिजन ही नहीं […]

बुजुर्गों की पीड़ा. हालात ऐसे बने कि परिवार छोड़ वृद्धाश्रम में रहने को हुए विवश

वृद्धाश्रम में रहनेवाले कुछ बुजुर्गों से बात की गयी. जिंदगी की शाम में इन बुजुर्गों की बेबसी सामाजिक संरचनाओं की कई बेरहम टूटन की कहानी कहते हैं. कोई परिवार पर बोझ बन गये थे. किसी का कोई परिजन ही नहीं है. किसी का परिजन है भी कोई सुध नहीं ले रहा. किसी के बेटे की इतनी आमदनी नहीं है कि वह अपने बुजुर्ग माता-पिता का भरण-पोषण कर सके. जब तक शरीर में ताकत थी, कमाया. लेकिन अशक्त शरीर के बाद खाने तक लाले पड़ गये. इन बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में आकर जीने का आधार मिल गया. लेकिन भयानक सूनापन इन्हें अभी भी कचोटता है. फिर भी ये खुद को खुशनसीब मानते हैं कि उन्हें यहां ठौर मिल गयी है. लेकिन अभी भी हमारे आसपास कई ऐसे बुजुर्ग मिल जायेंगे जो बेहद दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. बुजुर्गों के जीने की समुचित व्यवस्था आज के समय का एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है.
भागलपुर : भागलपुर व आसपास के क्षेत्रों में असहाय बुजुर्गों की परेशानी बढ़ती जा रही है. ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है, जो वृद्धाश्रम में रहने को विवश हो रहे हैं. एक ओर जहां पारिवारिक संबंध की खाई बढ़ रही है, तो दूसरी ओर सामाजिक व आर्थिक संरचना बिगड़ती जा रही है. आखिर ऐसे में जब लोगों को जीवन का आखिरी वक्त परिवार को छोड़ वृद्धाश्रम में गुजारने को विवश होना पड़ता है, उनके दुख का अनुमान लगाना कठिन है. यह सवाल समाज के आज के ताने बाने का कहीं न कहीं एक आइना भी है.
तिलकामांझी स्थित वृद्धाश्रम के बुजुर्गों ने बतायी अपनी कहानी :
तिलकामांझी स्थित वृद्धाश्रम में वर्तमान में 22 बुजुर्ग घर में हो रही परेशानी के कारण या समाज से अलग-थलग पड़ कर इस उम्र में यहां आने को विवश हुए. इuमें सात महिला बुजुर्ग व 15 पुरुष बुजुर्ग हैं. उनमें कुछ से बात की गयी.
किसी को अपने ने ठुकराया तो किसी के पास आजीविका का साधन नहीं
गरीबी के कारण लड़का को अधिक पढ़ा नहीं सका. खुद जब तक शरीर में ताकत रही, तब तक एक निजी होटल में नौकरी पर रहा. इस उम्र में पहुंच कर असहाय महसूस कर रहे हैं. चूंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. पहले से ही बेरोजगार लड़का बाहर नौकरी ढूंढ़ने गया है. पतोहू प्राइवेट में शिक्षिका है, इससे उनका ही खर्च चलने में दिक्कत होती है. इस कारण यहां आने को विवश हुए.
प्रह्लाद वर्मा, बांका,धौरेया-भगवानपुर
बेटा दीपक दास किराना दुकान में नौकरी करता है. वह 10वीं पास है. वह अपना घर भी ठीक से नहीं चला पाता है. वह मेरा कैसे गुजारा करेगा. 67 वर्ष की उम्र में शरीर कमजोर हो गया. आधा कट्ठा की जमीन पर इंदिरा आवास से मकान बनाये हैं. यहां पर ढाई वर्ष से रह रहे हैं.
किशुन दास, नाथनगर, नूरपुर
पति नौशाद का इंतकाल हो जाने के बाद घर में कोई नहीं बचा. जब तक शरीर में ताकत थी, तो बीड़ी बना कर अपना खर्च चलाते थे. धीरे-धीरे शरीर जवाब देने लगा. इसके बाद स्थानीय लोगों से मांग कर खाते-पीते थे. भीख मांगना अच्छा नहीं लगता था. इस कारण शारीरिक स्थिति और खराब हो गयी. घर भी टूट गया. सड़क पर अपना आसरा बना लिया. अब वृद्धाश्रम ही सहारा है.
नजमा खातून, बरहपुरा
पहले से ही अपना घर नहीं था. मायागंज में सरकार की जमीन पर घर बनाये थे. पदाधिकारियों ने घर को तोड़वा दिया. सड़क पर ही रहने को विवश हुए. बेटा-बेटी कोई नहीं है.अब तो पैर इतना कमजोर हो गया है कि चल भी नहीं पाती हूं.
रामवती देवी
घर में कुछ नहीं बचा. बेटा नहीं है. बेटी थी, तो उसकी शादी ओड़िशा में माइंस कंपनी के इंजीनियर से हुई. दामाद व बेटी नहीं पूछते. दाे माह से यहां पर हैं.
लक्ष्मी नारायण शर्मा, रतनपुर, मुंगेर
घर की माली हालत पहले से ही खराब थी. इस कारण दूसरे के घर का काम करके अपना घर चलाती थी. अब बेटा गांव में ही मजदूरी करके अपना घर चला रहा है. वह खुद घर में दिक्कत से जी रहा है. गांव में जब तक रही, तब तक बेटा खाने-पीने तो देता था, लेकिन इलाज के लिए पैसा नहीं दे पाता था. यहां पर दो साल से रह रही हूं.
मानती देवी, भतौड़िया

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