चाईबासा : सिर्फ एक दिनों की जांच के बाद सारंडा में कुपोषण की भयावह तसवीर उभरकर सामने आयी है. मंगलवार को कुछ गांवों में कैंप लागकर हुई जांच में करीब 16.50 प्रतिशत बच्चे कुपोषित पाये गये. अगर, गांव-गांव में कैंप लागकर देखा जाये, तो तसवीर और भी भयावह हो सकती है.
जिला स्वास्थ्य विभाग की तीन-तीन चिकित्सकों की तीन टीम ने कुपोषित बच्चों की खोज के लिए मंगलवार को सारंडा के मनोहरपुर, चिरिया, सलाई व अंकुरा के गांवों में जांच शिविर लगाये गये. चिकित्सकों ने 315 बच्चों की जांच की. इनमें 52 बच्चों को कुपोषित पाया गया. शिविर समाप्त कर जगन्नाथपुर की ओर से मुख्यालय चाईबासा लौटने के क्रम में जगन्नाथपुर सीएचसी का भी टीम ने निरीक्षण किया. टीम के सदस्य डॉ जगन्नाथ हेंब्रम ने बताया कि मनोहरपुर, सलाई, चिरिया व अंकुरा आदि क्षेत्र
सारंडा में सिसक रहा है बचपन…
में कुपोषण बीमारी के लक्षण मिले हैं. बीमारी की रोकथाम के लिए जिले की पांचवीं एमटीएस यूनिट इसी क्षेत्र में खोली जायेगी. यह एक से दो माह के अंदर बनकर मरीजों की सुविधा के लिए शुरू हो जायेगी. टीम में डॉ रामचंद्र सोरेन व डॉ राज कुमार आदि भी शामिल थे. टीम ने जांच रिपोर्ट सिविल सर्जन को सौंप दी है.
315 नौनिहालों की हुई जांच, 52 बच्चे बस जैसे-तैसे सांस लेते भर पाये गये
04 कुल कुपोषण उपचार केंद्र हैं जिले में
20 बेड वाला केंद्र है चाईबासा में
10 बेड वाला केंद्र चक्रधरपुर में
10 बेड वाला मझगांव में है
10 बेड वाला जगन्नाथपुर में
50 बच्चों का चाईबासा में हर
महीने इलाज
10 बेड काउपचार केंद्र मनोहपुर
में खुलेगा
05 बेड का चिरिया में खुलेगा
मनोहरपुर, चिरिया, सलाई व अंकुरा के गांवों में डॉक्टरों की तीन टीम ने लिया जायजा
अज्ञानता व अपौष्टिक खाना कुपोषण के लिए जिम्मेदार
अज्ञानता व भोजन में पौष्टिकता की कमी कुपोषण के मुख्य कारण हैं. इसे जड़ से समाप्त करने के लिये सरकार विभिन्न योजनाएं चला रही है. इसके तहत जन्म देने वाली माताओं को भी पौष्टिक आहार खिलाया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कुपोषण के प्रति और अधिक जागरुकता फैलाने की जरूरत है.
डॉ हिमांशु भूषण वरवार, सिविल सर्जन