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टीबी से मुक्ति पाने की राह आसान नहीं

चर्चा. जिले में संसाधनों का अभाव, फाइलेरिया, कुष्ठ व खसरा रोग स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती सीतामढ़ी : वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से बुधवार को संसद में पेश बजट में स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया गया है. केंद्र सरकार ने 2017 में कालाजार, 2018 में फाइलेरिया व कुष्ठ, 2020 में खसरा व 2025 […]

चर्चा. जिले में संसाधनों का अभाव, फाइलेरिया, कुष्ठ व खसरा रोग स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती

सीतामढ़ी : वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से बुधवार को संसद में पेश बजट में स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया गया है. केंद्र सरकार ने 2017 में कालाजार, 2018 में फाइलेरिया व कुष्ठ, 2020 में खसरा व 2025 तक टीबी से भारत को मुक्त कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. बजट के बाद सीतामढ़ी जैसे इलाके में यह चर्चा का विषय बन गया है कि क्या तय अवधि के भीतर सीतामढ़ी जिला इन रोगों से मुक्ति पा पायेगा. वजह सीमित संसाधनों के बीच जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद लाचार है. ऐसे में लाचार व्यवस्था के बीच इन बड़े बीमारियों पर काबू पाना खुद स्वास्थ्य विभाग के लिये बड़ी चुनौती है.
कालाजार से मुक्ति की राह कुछ हद तक आसान : सीतामढ़ी जिला साल 2017 में कालाजार से मुक्त हो सकता है. वजह पिछले तीन-चार सालों में कालाजार के खिलाफ चल रहे अभियान को व्यापक सफलता मिली है. जिला मलेरिया विभाग द्वारा किये गये प्रयासों की बदौलत जिले के 17 में से 14 प्रखंड कालाजार से मुक्त हो चूके है, वहीं शेष बचे तीन प्रखंडों को भी कालाजार से मुक्त कराने की पहल जारी है. डुमरा, बाजपट्टी व पुपरी प्रखंड के लिये ही कालाजार की चुनौती है. जिसे इस साल के अंत तक समाप्त करना मलेरिया विभाग के लिये कोई बड़ी चुनौती नहीं होगी. हालांकि संसाधनों का अभाव इसकी राह की सबसे बड़ी बाधा के रुप में सामने आयी है.
जिला मलेरिया विभाग में चिकित्सक समेत कुल 122 पद सृजित है. इसके विरूद्ध जिला मलेरिया पदाधिकारी समेत 5 लोग ही कार्यरत है. पिछले कई सालों से जिला मलेरिया विभाग एनजीओ व संविदा आधारित कर्मियों की मदद से कालाजार से लड़ रहा है. जिला मलेरिया पदाधिकारी आरके यादव भी मानते है कि सीमित संसाधनों व विपरित स्थितियों में भी जिला मलेरिया विभाग ने जिले से कालाजार को भगाने में काफी हद तक सफलता पायी है. बताते हैं कि साल 2015 में जिले में टीबी के 343 मामले आये थे,
जबकि 2016 में 272 मामले सामने आये है. डाॅ यादव के अनुसार संसाधन मुहैया कराया जाये तो इस साल जिले को कालाजार मुक्त कराया जा सकता है. लेकिन सूबे के लिये कालाजार अब भी बड़ी चुनौती है. वजह छपरा समेत कई इलाकों में कालाजार के नये मामले सामने आ रहे है.
जब तक रहेगी गरीबी, टीबी पर काबू पाना मुश्किल
80 के दशक में जिले में हजारों लोगों की जिंदगी निगल कहर बरपाने वाले टीबी रोग पर काबू पाने की राह आसान नहीं है. सरकार ने टीबी से मुक्त करने के लिये भले ही 8 साल की लंबी अवधि तय की है, लेकिन इस रोग से मुक्ति पाने के लिये सरकार द्वारा तय लंबी अवधि भी जिले के लिये कम ही है. इलाके में टीबी रोग की सबसे बड़ी वजह है गरीबी. गरीबी से उत्पन्न अशिक्षा, कुपोषण व गंदगी टीबी रोग का प्रसार बढ़ाने में लगे है. तंबाकू उत्पाद जैसे खैनी, बीड़ी व सिगरेट इस रोग को फैला रहे है.
वहीं संक्रामक होने की वजह से इस रोग का फैलाव बढ़ रहा है. सरकार द्वारा लगातार टीबी की आधुनिकतम तकनीक के जरिये योजना चलाकर टीबी रोगियों का खोज करा इलाज करा रहीं है, बावजूद इसके अब भी टीबी रोग इलाके में गंभीर समस्या बना हुआ है. स्थानीय लोगों की माने तो जब तक गरीबी रहेगी, टीबी अपना फन पैलाता रहेगा. एक अनुमान के तहत जिले की 30 फीसदी आबादी टीबी से ग्रस्त है. इनमें 25 फीसदी लोग अपना इलाज निजी चिकित्सक से करा रहे है.
शेष पांच फीसदी लोग ही सरकारी इलाज का लाभ उठा रहे है. जानकारों की माने तो टीबी की सबसे बड़ी वजह गरीबी है. गरीबी के चलते लोग कुपोषण का शिकार बन रहे है. वहीं सर्दी-खांसी जैसी गीमारी का ससमय इलाज नहीं करा पाते है जो टीबी का कारण बन रहा है. दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में झोला छाप चिकित्सकों के गलत इलाज की वजह से भी टीबी का प्रसार बढ़ रहा है. अशिक्षा के चलते लोग सरकारी इलाज की व्यवस्था का लाभ नहीं उठा पा रहे है. दूसरी ओर तंबाकू का सेवन भी इस रोग का वाहक बन रहा है. जाहिर है कि अगले आठ सालों में गरीबी पर लगाम लगना मुश्किल है, नतीजतन टीबी पर काबू पाना भी आसान नहीं है.
उधर, जिले में टीबी के इलाज की सरकारी व्यवस्था भी संसाधनों के अभाव का दंश झेल रहीं है. चिकित्सक व कर्मियों का अभाव है. पीएचसी स्तर पर बलगम जांच की व्यवस्था भी सहीं तरीके से नहीं चल रहीं है. डा आरके यादव के अनुसार टीबी पर काबू पाना बड़ी चुनौती है. वर्तमान में रोगियों पर टीबी की दवायें भी काम नहीं कर रहीं है. ग्रामीण चिकित्सकों द्वारा मरीज की बगैर जांच दवाओं के अधिक डोज देने के चलते उत्पन्न स्थिति अब चिकित्सकों के लिये चुनौती बन गया है. वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग के पास उतना संसाधन भी नहीं है कि वह टीबी रोग से दो-दो हाथ कर पाये. बताते है कि 2025 तक लंबा वक्त है. संभव है कि सरकार संसाधन मुहैया करा व्यवस्था को मजबूत करे. तभी हम टीबी मुक्त समाज का निर्माण कर सकते है.
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