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ललित बाबू में भारतीय अर्थव्यवस्था की गंभीर समझ थी

डॉ जगन्नाथ मिश्र पूर्व मुख्यमंत्री, िबहार पूर्व मुख्यमंत्री (बिहार) एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ललित बाबू एक सच्चे समाजसेवी थे. वे अपने सिद्धांतों का बड़ी दृढ़ता से पालन करते थे. अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं को, गंभीरता से समझा था और समाजवादी ढंग से सुलझाने का रास्ता ही उन्हें भाया […]

डॉ जगन्नाथ मिश्र
पूर्व मुख्यमंत्री, िबहार
पूर्व मुख्यमंत्री (बिहार) एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री
ललित बाबू एक सच्चे समाजसेवी थे. वे अपने सिद्धांतों का बड़ी दृढ़ता से पालन करते थे. अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं को, गंभीरता से समझा था और समाजवादी ढंग से सुलझाने का रास्ता ही उन्हें भाया था. 1950 में उन्हाेंने पटना में पहले बिहार आर्थिक सम्मेलन का आयोजन किया. इसके बाद तो वे कभी पटसन की खेती से संबंधित समस्याओं का हल निकालने में व्यस्त रहे तो कभी खाद्य समस्या को हल करने में. कभी राष्ट्रीय लघु उद्योग सलाहकार समिति में जाकर मजदूरों के हितों की रक्षा करते रहे और कभी कोयला ओर इस्पात उद्योग से संबंधित समस्याओं का हल खोजते रहे. कर्मचारियों के तो वे सच्चे हितैषी थे. वे चाहे श्रम तथा पुनर्वास राज्य मंत्री रहे या केंद्रीय रक्षा उत्पादन मंत्री, विदेशी व्यापार मंत्री रहे या रेल मंत्री-उन्होंने मजदूरों के हितों को आंखों से ओझल नहीं होने दिया.
भारतीय रेल के इतिहास में ललित बाबू संभवत: पहले रेलमंत्री रहे, जिन्हें अपने पूरे कार्यकाल में हड़तालों और काम-बंदी का सामना करने से फुरसत नहीं मिली. मजे की बात यह है कि ललित बाबू किसी सामंती परिवार के न होकर मात्र मध्यम परिवार के थे और रेल कर्मचारियों के प्रति उनके ह्दय में बड़ा स्नेह और सम्मान था. किंतु, उनका नक्षत्र ही कुछ ऐसा था कि उनके कार्यकाल में अभिप्रेरित तरह-तरह के कर्मचारी-आंदोलन व आकस्मिक हड़तालें होती रहीं. मई, 1974 की आम हड़ताल कभी भुलाई नहीं जा सकती. कहना न होगा कि यदि हड़ताल सफल हो गयी होती तो रेल का चक्का जाम होने के साथ-साथ देश का भी चक्का इस तरह जाम हो जाता है कि राष्ट्र की सारीप्रगति ठप हो जाती. सारी योजनाएं ठप हो जातीं तो मंसूबे ज्यों के त्यों धरे रह जाते. किंतुरेल मंत्री ललित बाबू ने असीम धैर्य, संवेदनशीलता दूरदर्शिता और प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया और उक्त हड़ताल का इस तरह डट कर मुकाबला किया कि रेलाें के चक्के जाम करते और कराने वालों के छक्के छूट
गये.
हड़ताल की समाप्ति पर देश के कोने-कोने से ललित बाबू को बधाइयों का तांता लग गया था.हड़ताल के बाद विजेता और विजित की भावना को प्रश्रय न मिले, इसके लिए उन्होंने अधिकारियों को बार-बार चेतावनी दी तथा ‘क्षमा करो और भूल जाओ’ का सिद्धांत अपनाने पर अधिक बल दिया. रेल भवन में 13 जून, 1974 को हुई महाप्रबंधकों की बैठक में उन्होंने कहा-हड़ताल समाप्त हो गयी है, लेकिन कई समस्याएं हैं जिन्हें सुलझाना है. उन्हें तुरंत और गंभीरता से सुलझाना है. साथ ही याद रखिये कि यदि कर्मचारियों की शिकायतें ध्यानपूर्वक सुनो और समय पर दूर कर दी जाती है और उनके लिए कल्याण-व्यवस्थाएं समय पर ही कर ली जाती है, तो ऐसे आंदोलनों की संभावना कम हो जाती है. ललित बाबू के रेल मंत्रित्व काल में ही भारतीय रेलवे ने केवल स्वदेश में बल्कि विदेशों में भी ख्याति अर्जित की. इन्होंने विदेशों में भारत का मान बढ़ाया.
‘बिहार के विकास के लिए ललित बाबू इतने दृढ़ संकल्पित थे कि अपने अंतिम अभिभाषण में वक्तव्य दिया था-हम बिहार के हैं और बिहार हमारा है. हम उसकी उन्नति हर कीमत पर करेंगे-चाहे कोई हमसे खुश रहे या रंज ! हम रहें या न रहें बिहार आगे बढ़ कर रहेगा.’

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