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मां शारदे की पूजा आज आस्था. पूजा पंडालों को दिया जा रहा अंतिम रूप

समस्तीपुर : माघ शुक्ल पंचमी आज है. यह वसंत पंचमी के नाम से ख्यात है. इसी पंचमी तिथि को विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा होती है. पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव ने भगवान विष्णु की आज्ञा से अपने कमंडल के जल को धरती पर छिड़क कर दिव्य […]

समस्तीपुर : माघ शुक्ल पंचमी आज है. यह वसंत पंचमी के नाम से ख्यात है. इसी पंचमी तिथि को विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा होती है. पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव ने भगवान विष्णु की आज्ञा से अपने कमंडल के जल को धरती पर छिड़क कर दिव्य ज्योति वाली नारी शक्ति को उत्पन्न किया था. इनके हाथ में वीणा व पुस्तक थी. वीणा के झंकार से वातावरण गुंजित हुआ. धरती पर एक अलौकिक आनंद प्राप्त हुआ. ब्रह्म देव ने इन्हें सरस्वती का नाम दिया.

यह जीवों को ज्ञान प्रदान करती है. इसका उपयोग कर मनुष्य सतत विकास की ओर अग्रसर हो रहा है. मान्यता है कि तभी से ऋतुओं के राजा वसंत जो माघ महीने में आरंभ होता है. इस महीने के शुक्ल पंचमी तिथि के दिन माता सरस्वती की पूजा अर्चना होती आ रही है. बदलते समय में खास कर शिक्षक और छात्र इस पूजा में विशेष रुचि लेते हैं. अन्य वर्षों की भांति ही इस बार बुधवार को होने वाली इस पूजा के लिए छात्र व युवाओं की टोली करीब एक महीने से सक्रिय हैं. मां सरस्वती की पूजा के लिए जगह-जगह पंडाल निर्माण कराने में जुटे रहे. शिक्षण संस्थानों में पूजा को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. सार्वजनिक स्थलों पर भी पंडालों में मंगलवार की दोपहर तक मूर्ति पहुंच चुकी थी. देर रात मूर्ति को रंग बिरंगे परिधानों व आभूषणों से सजाने का कार्य चलता रहा. युवकों की टोली में पूजा स्थल व मूर्तियों की सजावट में सबसे आगे निकले जैसी प्रतिस्पर्धा प्रतीत होती रही. शहर के निजी स्कूलों व शिक्षण संस्थानों में संचालकों की ओर से इस पूजा में कोई कसर बाकी नहीं रखी गयी. पंडित जयशंकर झा बताते हैं कि इस वर्ष मंगलवार की देर रात से ही पंचमी तिथि आरंभ हो रही है. इसलिए बुधवार की सुबह से पूजा आरंभ हो सकती है. दोपहर तक पूजा के लिए अच्छा समय है.

मूर्तिकारों को नहीं मिल रहा उचित मूल्य : पूजा के अवसरों पर मूर्ति का निर्माण कर लोगों की आस्था में चार चांद लगाने वाले मूर्तिकार मायूस हैं. उन्हें मूर्तियों पर आने वाली लागत के अनुरूप मूल्य व मजदूरी नहीं मिल पा रही है. जितवारपुर हसनपुर गांव के प्रमोद पंडित, चंदेश्वर पंडित, मनोज पंडित आदि कहते हैं कि पुश्तैनी कला को अपने हाथ में लेकर उसे विरासत की तरह ही ढो रहे हैं. क्योंकि आधुनिकता की चकाचौंध पूजा पर भी सर चढ़ कर बोलने लगी है. इसके कारण मूर्ति को आकर्षक बनाने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और साज शृंगार के सामान लगाने पड़ते हैं. जब मूर्ति बिक्री की बारी आती है, तो मोल-जोल होने लगता है. हजार रुपये से लेकर दस हजार रुपये तक की मूर्तियां बनाते हैं. लेकिन उसे बेचने में उन्हें पसीने बहाने पड़ते हैं.
रोसड़ा. लक्ष्मीपुर मोहल्ले के कलाकार शिव कुमार पंडित ने बताया कि इस बार वे 45 मूर्ति का निर्माण किये हैं. सभी मूर्ति बिक चुकी है़ मूर्ति का डिमांड था, परंतु समयाभाव के कारण अधिक मूर्ति का निर्माण नहीं हो सका. रॉकी राज, सुधीर पंडित, हरेराम पंडित, कैलाश पंडित,रामचंद्र पंडित आदि ने ने बताया कि मूर्ति का सही मूल्य नहीं मिल रहा है. इधर, पूजा को लेकर प्रसाद में काम आने वाले गाजर का भाव 20 रुपये, बैर, अमरूद व खीरा का भाव 40 रुपये तक रहे.

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