II उर्मिला कोरी II
फिल्म: रईस
निर्माता: एक्सेल एंटरटेनमेंट और रेड चिल्लीज
निर्देशक: राहुल ढोलकिया
कलाकार: शाहरुख़ खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी,माहिरा खान, अतुल कुलकर्णी,नरेंद्र और अन्य
रेटिंग: तीन
लार्जर देन लाइफ सिनेमा और उसके नायकों की अगली कड़ी फिल्म ‘रईस’ है. 80 के बैकड्रॉप पर बनी निर्देशक राहुल ढोलकिया की फिल्म सिस्टम के खिलाफ अपनी एक अलग सिस्टम चलाने वाले रॉबिनहुड अंदाज़ में सबकी मदद करने वाले रईस की कहानी है.
फिल्म का बैकड्रॉप गुजरात का फतेहपुरा है. जहाँ उसके बचपन से फिल्म की शुरुआत होती है. रईस का बचपन मुफलिसी में बीत रहा है. कोई धंधा छोटा नहीं होता है और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है ,जिससे किसी का नुकसान न हो.
फिल्म की कहानी रईस की माँ के इसी संवाद के इर्द गिर्द घूमती है. इस संवाद के बाद ही रईस बचपन में ही शराब तस्करी के धंधे में घुस जाता है और बड़ा बनने की उसकी चाहत उसे शराब के लिए गुटों में झगड़ा, राजनीतिक दलों की राजनीति और चोर-पुलिस के खेल के बीच ला खड़ा कर देती है.
फिल्म की 80 के बैकड्रॉप है इसलिए कहानी भी उसी दौर की है और नायक भी. नायक यहाँ पॉजिटिव नहीं ग्रे है. वह दिल से अच्छा है गरीब लोगों का मसीहा है लेकिन वह सिस्टम के खिलाफ है. फिल्म का फर्स्ट हाफ बेहतरीन है.कहानी जिस तरह परदे पर घटित होती है.
उससे आप पूरी तरह से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं हाँ सेकंड हाफ उस प्रभाव को बरक़रार नहीं रख पाया. रईस के किरदार के हीरोइज्म को बड़ा दिखाने में नवाज़ के किरदार कमतर कर दिया गया है जिससे फिल्म भी कमज़ोर हो जाती है. क्लाइमेक्स को ज़रूरत से ज़्यादा खिंचा गया है.
अभिनय की बात करें तो एक अरसे बाद शाहरुख़ खान का यह अंदाज़ रुपहले परदे पर नज़र आया है.उनके स्टारडम का करिश्मा रईस के किरदार को और खास बना जाता है. जिस अंदाज़ के लिए शाहरुख़ जाने जाते हैं उनका वह सिग्नेचर स्टाइल फिल्म के हर फ्रेम में उनके आवाज़ और अंदाज़ में मौजूद है. जिस वजह से शाहरुख़ के प्रशंसकों के लिए यह फिल्म एक ट्रीट की तरह साबित होगी यह कहना गलत न होगा.
अभिनेता के तौर पर नवाजुद्दीन एक बार फिर परदे पर बेहतरीन रहे हैं. वह हर सीन लुभा जाते हैं फिर चाहे उनका कॉमिक अंदाज़ हो या सीरियस. माहिरा खान की मौजूदगी ने भले ही खूब चर्चा बटोरी हो लेकिन फिल्म में उनकी मौजूदगी वह जादू नहीं जगा पायी है. फिल्म में उन का लुक औसत है. अभिनय में भी वह प्रभावित नहीं कर पायी. जीशान अपनी भूमिका में छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं. अतुल कुलकर्णी, अहलवात, नरेंद्र झा सहित बाकी के किरदारों ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं.
फिल्म के कलाकारों का अभिनय इस फिल्म की यूएसपी है जो कहानी की खामियों को कम कर देता हैं. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. लैला गीत याद रह जाता है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की कहानी को रोचक बना देता है.
दृश्यों का संयोजन प्रभावशाली है. फिर चाहे शराब की बोतलों पर बुल डोजर चलाने सीन हो या शराबबंदी के लिए हुआ पाशा का मार्च वाला दृश्य निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर तारीफ के पात्र हैं. एक्शन सीन अच्छे हैं. हाँ शाहरुख़ और किलर के साथ वाला मारपीट सीन में ज़रूरत से ज़्यादा वीएफएक्स शाहरुख़ खान को स्पाइडरमैन बना जाता है. जिस तरह से वह दीवारों और घर की छत पर चढ़ते हैं. वह सीन थोड़ा रीयलिस्टिक ढंग से शूट होता तो बेहतर होता था.
यह फिल्म 80 के दशक के बैकड्रॉप पर बनी फिल्म है. फिल्म का ट्रीटमेंट लार्जर देन लाइफ वाला है. फिल्म में उस दशक के लुक को बरकार रखने की अच्छी कोशिश हुई है. फिल्म के संवाद फिल्म की दूसरी यूएसपी है. जिसे सुनकर सीटी और तालियां मारने से खुद को नहीं रोक पाएंगे. कुलमिलाकर फिल्म के ट्रीटमेंट में भले ही वास्तविकता की कमी हो और कहानी भी साधारण है लेकिन ‘रईस’ एक मसाला फिल्म है जो एंटरटेन करने में कामयाब रही है.