लंदन : ब्रिटिश सरकार आज एक ऐतिहासिक कानूनी चुनौती हार गयी. देश के सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री टेरीजा मे को ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने के लिए हर हालत में संसद की मंजूरी हासिल करनी चाहिए. इस फैसले का अर्थ यह है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ब्रिटेन के सांसदों की मंजूरी हासिल किए बिना आधिकारिक रूप से ब्रेक्जिट करार पर यूरोपीय संघ के साथ वार्ता शुरू करने के लिए लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 को प्रभाव में नहीं ला सकतीं.
सरकार ने यह तर्क दिया था कि उसके पास अनुच्छेद 50 को प्रभाव में लाने के लिए कार्यकारी शक्तियां हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजों ने तीन के मुकाबले आठ के बहुमत से मामले को नामंजूर कर दिया. ब्रिटेन के अटार्नी जनरल जेरेमी राइट ने कहा कि सरकार ‘निराश’ है लेकिन वह ‘अनुपालन’ करेगी और अदालत के फैसले को लागू कराने के लिए ‘सभी जरुरी कदम उठाएगी.’
यूरोपीय संघ से बाहर होने के मामलों के ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड डेविस द्वारा सरकार द्वारा अपना केस हारने के कुछ ही घंटों के भीतर हाउस आफ कामन्स में बयान दिये जाने की संभावना है. डाउनिंग स्टरीट कई सप्ताह से फैसले की तैयारी कर रहा था और समझा जाता है कि उसने अनुच्छेद 50 को लागू कराने की संसदीय मंजूरी हासिल करने के लिए एक छोटे विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया था.
मे ने कहा था कि वह मार्च के अंत तक ब्रेक्जिट से बाहर होने की अपनी योजना पर कायम रहेंगी. यूरोपीय संघ से ब्रिटेन की वापसी को ब्रेक्जिट के तौर पर जाना जाता है. पिछले वर्ष 23 जून को हुए एक जनमत संग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 2017 तक अनुच्छेद 50 को लागू करने की प्रक्रिया शुरु किए जाने की संभावना थी.