मैं अंतरराष्ट्रीय हिंसा की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि हमारे दिमाग, हमारे अवचेतन में हिंसा और हमारी आत्मा में चलनेवाले संघर्ष की बात कर रहा हूं. राष्ट्रपित ने भांगड़ में हाल के प्रदर्शनों और तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को लेकर चलनेवाले प्रदर्शन के परिप्रेक्ष्य में कहा कि मैं रोजाना की छोटी घटनाओं की बात कर रहा हूं, न कि अंतरराष्ट्रीय हिंसा की. पहले भी संघर्ष और वैचारिक मतभेद थे. लेकिन इस तरह की स्थिति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. श्री मुखर्जी ने कहा कि पहले इस तरह के संघर्ष को स्थानीय स्तर पर रोक दिया जाता था, लेकिन अब यह बढ़ता जा रहा है.
राष्ट्रपति ने दुनिया के ज्यादा हिंसक होने पर चिंता जताते हुए कहा कि यह मानव समाज का आम रुख नहीं है. लोग एक दूसरे को प्यार करते थे, एक दूसरे को स्वीकार करते थे न कि खारिज करते थे. मानवीय सोच एक दूसरे से प्यार करने की है, न कि घृणा फैलाने की. उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में परस्पर सम्मान बढ़ाने की काफी जरुरत है. उन्होंने कहा कि पहले लोगों को हिंसा की घटनाओं के बारे में पता नहीं चलता था, लेकिन अब उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चल जाता है.
दांतन ग्रामीण मेले के बारे में श्री मुखर्जी ने कहा कि इस तरह के ग्रामीण मेले लोगों के बीच भाईचारा, सौहार्द और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व लाते हैं. उन्होंने कहा कि आप इस तरह के मेले शहरी इलाकों में नहीं देख सकते. हमेशा काफी भीड़ होती है. इस तरह के मेले ग्रामीण इलाकों की शाश्वत भावना को प्रदर्शित करते हैं. इस तरह के मेले समाज के विभिन्न तबकों के बीच व्यक्तिगत संपर्क को बढ़ावा देते हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि वैश्विक संदर्भ में यह काफी महत्वपूर्ण है. राष्ट्रपति ने मशहूर बंगाली लेखक ताराशंकर बंद्योपाध्याय की कुछ पंक्तियों को उद्धृत किया, जिसका भाव है कि मैं कब उस मेले में जाऊंगा. पता क्या है.
जहां गाने लगातार बजते हैं और जहां हमेशा रोशनी होती है. उन्होंने कहा कि दांतन को दंडाभुक्ति के रुप में भी जाना जाता है जो पुरी में जगन्नाथ मंदिर के रास्ते में है. उन्होंने कहा कि कहा जाता है कि इस रास्ते से 16वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु गुजरे थे. कई संस्कृतियों और इतिहास का गवाह रहा दांतन अब भी साहित्य और संस्कृति से समृद्ध है. समारोह में राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष, दांतन ग्रामीण मेला समिति के अध्यक्ष आलोक नंदी भी मौजूद थे.